स्वतंत्रता के बाद बने ‘फॉरेन एक्सचेंज रैगुलेशन एक्ट’ (फेरा) के अंतर्गत 1 मई, 1956 को प्रवर्तन इकाई (एनफोर्समैंट यूनिट) बनी थी, जिसका नाम 1957 में बदल कर ‘डायरैक्टोरेट ऑफ एनफोर्समैंट’ या ‘एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट’ कर दिया गया। इसे ही अब ई.डी. के संक्षिप्त नाम से बुलाया जाता है।
यह वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली सरकारी एजैंसी है। इसका गठन आर्थिक अपराधों, मनी लांड्रिंग से जुड़े मामलों, धन की हेराफेरी करके कमाई गई सम्पत्ति की जांच, उसे जब्त करना, विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन रोकना, भगौड़े अपराधियों पर शिकंजा कसना और विदेश भाग चुके अपराधियों की सम्पत्ति को कुर्क करना है। इस समय ई.डी. के राडार पर कई वर्तमान मुख्यमंत्रियों से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री तथा अधिकारी आए हुए हैं। अभी हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री को कथित शराब घोटाले में ई.डी. ने गिरफ्तार किया है।
इससे पहले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया गया था। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पश्चिम बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री पार्थ चटर्जी तथा तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी आदि ई.डी. की जांच के घेरे में आए हुए हैं। इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री ने 27 मार्च को कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में गरीबों से लूटा और प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) द्वारा जब्त किया गया धन जनता को वापस मिले।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मैं कानूनी सलाह ले रहा हूं। ई.डी. ने पश्चिम बंगाल में 3000 करोड़ रुपए अटैच किए हैं। यह गरीबों का पैसा है। किसी ने टीचर तो किसी ने क्लर्क बनने के लिए पैसा दिया। यह रकम गरीबों की है जिन्होंने पैसा रिश्वत में दिया है, मैं उनका पैसा वापस करना चाहता हूं। जरूरत पडऩे पर ऐसा करने के लिए कानूनी विकल्प भी तलाशा जाएगा।’’ ई.डी. द्वारा पश्चिम बंगाल में जब्त की गई 3000 करोड़ रुपए की राशि लोगों में बांटने का विचार सही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार ऐसा कर पाती है या प्रधानमंत्री की यह घोषणा एक जुमला ही बन कर रह जाएगी।—विजय कुमार
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