हर्ष वी पंत, प्रोफेसर, किंग्स कॉलेज, लंदन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी, एल-1 और अन्य अस्थाई कार्य परमिटों को निलंबित करने के साथ-साथ कुछ ग्रीन कार्डों के जारी करने पर लगी रोक को आगे बढ़ाने संबंधी आदेश पर आखिरकार हस्ताक्षर कर दिया। उन्होंने यह कदम तब उठाया है, जब चुनाव-प्रचार उनके लिए बहुत सुकूनदेह नहीं है और मतदाताओं में उनकी लोकप्रियता घट रही है। यह आदेश इस साल के अंत तक प्रभावी हो जाएगा। इसका मकसद अमेरिका में दूसरे देशों से आने वाले कामगारों का प्रवेश रोकना है। ट्रंप को उम्मीद है कि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी, जो कोरोना वायरस महामारी के कारण अभी दबाव में है। यह तर्क देते हुए कि ‘हमारा (अमेरिका का) यह नैतिक कर्तव्य है कि हम ऐसा आव्रजन तंत्र बनाएं, जो हमारे नागरिकों के जीवन और आजीविका की रक्षा कर सके’, ट्रंप प्रशासन यह उम्मीद पाल रहा है कि इससे अमेरिकियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
इस बाबत काफी अरसे से प्रयास हो रहे थे। अमेरिका की बिगड़ती आर्थिक सेहत ने ट्रंप प्रशासन को इस पर अमल करने का मौका दे दिया। अमेरिकी अर्थव्यवस्था अब भी शटडाउन से उबरने के लिए संघर्ष कर रही है। यहां बेरोजगारी दर अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। नतीजतन, हाल के दिनों में अधिकाधिक सरकारी प्रोत्साहन की मांग बढ़ी है, जबकि हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस वर्ष गोता लगाकर 6.5 फीसदी तक आ जाएगी। हालांकि, बीते मार्च से स्थिति में मामूली सुधार हुआ है, लेकिन बेरोजगारी की दर अब भी 1940 के दशक के बाद से सर्वाधिक है।
संभव है कि इस नए कदम से नवंबर में ट्रंप को कुछ चुनावी फायदा हो जाए और उनके मतदाताओं की संख्या बढ़ जाए, मगर अधिकांश व्यापारिक समूह इसकी खुलकर मुखालफत कर रहे थे, क्योंकि इससे आर्थिक सुधार को ठेस पहुंचने का अंदेशा है, जो फिलहाल शैशव अवस्था में है। टेक्नोलॉजी उद्योग तो कहीं ज्यादा हमलावर है, और कह रहा है कि यह कदम उस समय इनोवेशन यानी नवाचार को धीमा कर देगा, जब इसकी सबसे अधिक जरूरत है। अनुमान है कि इस फैसले से इस साल करीब 2,19,000 विदेशी कुशल कामगार अमेरिका में नहीं आ सकेंगे।
देखा जाए, तो कोरोना वायरस और यात्रा-प्रतिबंधों की वजह से वीजा-प्रक्रिया पहले ही काफी हद तक बाधित है, इसीलिए हाल-फिलहाल में ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से कोई बड़ा बदलाव शायद ही आएगा। मगर इस आदेश को सिर्फ आर्थिक चश्मे से देखना उचित नहीं है। इसे सियासत की नजर से भी देखना चाहिए। उल्लेखनीय है कि 2016 के चुनाव में ट्रंप ने आप्रवासन को सीमित करने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। यह मसला आज भी उनके लिए काफी मायने रखता है, और संभव है कि चंद महीनों के बाद होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव में वह फिर से इसे तवज्जो दें। इससे वह अपने डेमोक्रेट प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन पर भी भारी साबित होते हैं, जो आम अमेरिकियों की बेरोजगारी को लेकर अपनी चिंता अब तक जाहिर करते नहीं देखे गए हैं। कोविड-19 की चुनौतियों के बहाने ट्रंप ने अमेरिका की आव्रजन नीतियों में फेरबदल किया है। अप्रैल में जो कार्यकारी आदेश उन्होंने जारी किया था, यह उसकी अगली कड़ी है। उस आदेश में ग्रीन कार्ड जारी करने की प्रक्रिया को दो महीने के लिए निलंबित कर दिया गया था। जाहिर है, प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियां बेशक फ्रिकमंद हों कि इससे प्रतिभा की हानि व नवाचार पर नकारात्मक असर पडे़गा, लेकिन अन्य लोग इसे अमेरिका की आव्रजन नीति को बुनियादी तौर पर बदलने के उपाय के तौर पर ही देख रहे हैं।
बहरहाल, ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से भारत खासतौर से प्रभावित होगा। विशेष रूप से एच1-बी वीजा को लेकर यहां असर पड़ेगा, क्योंकि यह वीजा अमेरिकी कंपनियों को खास क्षेत्रों में अत्यधिक कुशल विदेशी कामगारों को नियुक्त करने की अनुमति देता है। अमेरिका हर वर्ष 85,000 एच1-बी वीजा जारी करता है, जिनमें से लगभग 70 फीसदी भारतीयों को मिलता है। इसीलिए यह खासकर उन भारतीय आईटी कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका होगा, जो इस वीजा का लाभ उठाते रहे हैं। हालांकि, यह प्रतिबंध नए आवेदकों पर लागू होगा, अमेरिका में रहने वाले पुराने वीजा धारक इससे प्रभावित नहीं होंगे, पर इससे भारत सरकार की स्थिति स्वाभाविक तौर पर जटिल हो जाती है।
दरअसल, भारत सरकार ट्रंप प्रशासन के सामने एच1-बी वीजा का मसला लगातार उठाती रही है, और यह कहती रही है कि ‘आर्थिक और व्यापारिक संबंध हमारी रणनीतिक साझेदारी के मजबूत स्तंभ हैं, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और नवाचार के मामले में’। वाकई, 2015 की नैसकॉम रिपोर्ट भी बताती है कि भारतीय आईटी क्षेत्र न सिर्फ अमेरिका में चार लाख से अधिक नौकरियों में मदद करता है, बल्कि 2010 से 2015 तक संघीय करों में इसने 20 अरब डॉलर से अधिक का योगदान भी दिया है। यही वजह है कि इस साल अप्रैल की शुरुआत में नई दिल्ली ने वाशिंगटन के सामने यह मसला उठाते हुए गुजारिश की थी कि कोविड-19 महामारी की अवधि में अमेरिकी सरकार सभी भारतीय नागरिकों के एक1-बी वीजा और अन्य वीजा बढ़ाने पर गौर करे।
अभी संभावना इस बात की ही अधिक है कि ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को भारत कम महत्व देगा, क्योंकि चीन के साथ चल रहा तनाव उल्लेखनीय मोड़ पर है। वैसे भी, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय एजेंडे में वीजा सबसे महत्वपूर्ण मसला नहीं है, और इसका निपटारा आमतौर पर बैक चैनल्स यानी अनौपचारिक माध्यमों से ही होगा। यह देखते हुए कि एच1-बी वीजा से अमेरिका को अपने यहां प्रतिस्पद्र्धात्मक माहौल बनाने और तकनीकी श्रेष्ठता हासिल करने में लंबे समय से फायदा मिलता रहा है, नई दिल्ली यह उम्मीद कर सकती है कि अमेरिका उसकी बातों पर गौर करेगा। यह इसलिए भी मुमकिन है, क्योंकि चीन-अमेरिका तनातनी में भू-प्रौद्योगिकी का मसला नया केंद्र-बिंदु बनता जा रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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