कोरोना के मामलों में कमी या स्थिरता नहीं आने के बीच यह भी कहा जा रहा था कि आरटी-पीसीआर किट के जरिए इसकी जांच की जो कीमत तय की गई है, वह बहुत सारे लोगों को भारी पड़ रही है और इसमें कमी की जाए। हालांकि शुरुआती दौर में इसी जांच के लिए साढ़े चार हजार रुपए चुकाने पड़ रहे थे। शायद तब जांच के लिए आरटी-पीसीआर किट की उपलब्धता कम रही होगी और संक्रमण से बचाव के पूर्व-इंतजाम के मकसद से मामूली लक्षणों के दिखने पर भी काफी लोग इसकी जांच करवा रहे थे।
लेकिन जांच किट की उपलब्धता और बढ़ते मामलों के थोड़ा काबू में आने के साथ-साथ इसकी कीमत में कमी की गई और फिलहाल आरटी-पीसीआर जांच के लिए बारह सौ रुपए चुकाने पड़ रहे हैं। अब दिल्ली सरकार ने इस दर में भी कमी की है और जांच की कीमत आठ सौ रुपए तय कर दी गई है। हालांकि लक्षण वाले लोगों के घर जाकर सैंपल या नमूना लेने पर अब भी बारह सौ रुपए ही चुकाने होंगे। अब भी कोरोना की जांच के लिए तय की गई रकम कोई कम नहीं है, लेकिन शुरुआती कीमतों से लेकर अब तक के लिहाज से देखें तो इसमें काफी राहत दी गई है, ताकि इस जांच तक ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुंच सुनिश्चित हो सके।
दरअसल, पिछले करीब दो हफ्ते के दौरान दिल्ली में कोरोना के मामलों में आई तेजी को देखते हुए इसके नियंत्रण को लेकर सरकार ने अतिरिक्त कदम उठाए हैं। जांच की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ इसकी निर्धारित कीमत कम करने से ज्यादा लोगों की जांच कर संदिग्ध और पुष्ट मामलों की पहचान की जा सकेगी। उसके बाद कोरोना संक्रमितों के इलाज की तयशुदा व्यवस्था, मसलन एकांतवास और चिकित्सकों की निगरानी में उपचार मुहैया कराने में सुविधा होगी।
जाहिर है,कोरोना के बढ़ते मामलों को काबू में लाने के लिए इस दिशा में सबसे ठोस कदम मामूली लक्षण वाले लोगों की भी जांच करना है, ताकि समय पर मामले पकड़ में आ सकें। इसलिए जांच की कीमत को घटाना एक सकारात्मक कदम कहा जा सकता है। यों अब भी अलग-अलग राज्यों में कोरोना की आशंका होने पर अगर कोई आरटी-पीसीआर जांच कराता है, उसके लिए तय राशि अलग-अलग है। लेकिन शुरुआती दरों के मुकाबले उसमें काफी कमी की गई है।
गौरतलब है कि फिलहाल विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर तय मानकों के मुताबिक आरटी-पीसीआर के जरिए ही कोरोना के मामलों की जांच की जाती है। लेकिन भारत में इसके अलावा एंटीजन और एंटीबॉडी जांच के तरीके अपनाए गए। हालांकि इन दोनों प्रक्रिया को पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना गया है, लेकिन एक हद तक कोरोना के मामलों की पहचान करने में ये सहायक जांच के लिए प्रयोग में लाए गए।
मौजूदा समय में आरटी-पीसीआर जांच को ही संक्रमण की पहचान के मामले में सबसे बेहतर नतीजा देने वाला माना जाता है। मगर भारत जैसे देश में इस जांच के लिए वसूली जाने वाली राशि एक अहम पक्ष बन जाती है। यह देखने की जरूरत है कि इस आरटी-पीसीआर किट को तैयार करने से लेकर जांच की प्रक्रिया पूरी होकर नतीजा आने तक इस पर लागत कितनी आती है और जांच की दर क्या है!
इस महामारी का सामना के क्रम में देश भर में आर्थिक मोर्चे पर भी जो स्थितियां पैदा हुई हैं, उसमें बहुत सारे लोगों की आमदनी पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ा है। इसलिए सभी राज्य सरकारों को आरटी-पीसीआर जांच में लागत को ध्यान में रखते हुए उसकी कीमत को इस हद में जरूर रखना चाहिए जिसे चुका कर जांच कराने में लोग हिचके नहीं।
सौजन्य - जनसत्ता।
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