आर राजगोपालन
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव का स्पष्ट संकेत है कि तेलंगाना में भाजपा का उभार दिख रहा है। निश्चित रूप से भाजपा ने इस चुनाव में बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है। इसकी झलक चुनाव प्रचार के दौरान ही मिल रही थी, जब पार्टी ने अपने कद्दावर नेताओं को प्रचार में उतार दिया था। क्या इसका मतलब यह है कि भाजपा 2023 में तेलंगाना विधानसभा चुनाव में के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति को निशाने पर लेगी? कर्नाटक में तो पहले से ही उसकी सरकार है। क्या तमिलनाडु में नई राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने वाले रजनीकांत के साथ भाजपा गठजोड़ करेगी? केरल में भाजपा/ संघ अपना रास्ता बना रहा है।
गृह मंत्री अमित शाह ने दक्षिण की कई बार यात्रा की है और दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक एवं तेलंगाना में यात्रा प्रस्तावित है। राजनीति में रजनीकांत के प्रवेश के साथ तमिलनाडु सुर्खियों में है। रजनीकांत तमिलनाडु की राजनीति में निश्चित रूप से एक लहर पैदा करेंगे। वह द्रमुक के वोट बैंक में ज्यादा सेंध लगाएंगे। रजनीकांत ने 'अभी नहीं तो कभी नहीं' नारे के साथ हिंदू वोट हासिल करने के लिए आध्यात्मिक राजनीति का मार्ग अपनाया है। रजनीकांत की राजनीति के वास्तुकार एस गुरुमूर्ति दावा करते हैं कि सात करोड़ की तमिल आबादी में से अधिकांश मतदाता द्रविड़ राजनीति को खत्म करने के इच्छुक हैं।
नवंबर के मध्य में अमित शाह की चेन्नई यात्रा ने तमिलनाडु के चुनावी शिल्प को नाटकीय ढंग से बदल दिया। निश्चित रूप से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु में भाजपा के लिए गठबंधन के इतिहास की पुनर्रचना की है। वार्ता के एक ही झटके में उन्होंने अन्नाद्रमुक और भाजपा के बीच गठबंधन किया। गठबंधन के लिए अन्नाद्रमुक के नई दिल्ली आने के बजाय राष्ट्रीय पार्टी भाजपा एक क्षेत्रीय दल से गठबंधन करने चेन्नई गई। इसने कांग्रेस को द्रमुक के सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया है। इसी वजह से मेरा मानना है कि अमित शाह ने गठबंधन के इतिहास की पुनर्रचना की है।
तमिलनाडु एक विचित्र राज्य है, जहां दलितों के लिए 69 फीसदी आरक्षण है और सवर्ण वर्चस्व भी अभी कायम है। गहराई में जड़ जमाया द्रविड़ दर्शन निश्चित रूप से अब ढलान पर है। 234 सीटों वाली तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव अप्रैल 2021 में होने वाले हैं। अप्रैल 2021 का चुनाव पलानीस्वामी बनाम एम के स्टालिन होगा। पहली बार जयललिता और करुणानिधि जैसे कद्दावर नेताओं के बगैर। कई लोगों का मानना है कि दोनों द्रविड़ पार्टियां अपने आप खत्म हो जाएंगी। लेकिन अपने गाइड पन्नीरसेलवम को साथ लेकर पलानीस्वामी के प्रभावी नेतृत्व ने तमिलनाडु को चार वर्षों के लिए स्थिर सरकार दी है। इसी तरह एम के स्टालिन के नेतृत्व में द्रमुक ने लोकसभा के 39 में से 23 सीटों पर जीत हासिल की थी।
तमिलनाडु की राजनीति में कई खिलाड़ी हैं। शशिकला, टीटीवी दिनाकरन का तमिलनाडु के दक्षिणी इलाके में थेवर जाति में वर्चस्व है। वे अपने धुर विरोधी द्रमुक की हार सुनिश्चित करना चाहते हैं। हाल ही में एएमएमके का नेतृत्व करने वाले दिनाकरन ने द्रमुक की ताकत को कम करने का संकल्प लिया था। इसके अलावा पीएमके के संस्थापक डॉ. एस रामदौस की पार्टी वेन्नियार जाति आधारित है। एमडीएमके का नेतृत्व करने वाले वाइको भी द्रमुक के वोट में सेंध लगाएंगे, क्योंकि उन्होंने करुणानिधि के जीवनकाल में द्रमुक का विभाजन किया था। तमिलनाडु में साक्षरता दर अब करीब सौ फीसदी है।स्वाभाविक रूप से विचारधाराओं, नीतियों और कार्यक्रमों का प्रभुत्व काम करेगा। समाचार पत्रों, टीवी बहसों के कारण लोकप्रिय भावनाओं के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 के चुनाव में अनुमानतः आठ लाख नए मतदाता होंगे। ये युवा उज्ज्वल भविष्य और विदेश में पढ़ाई के आकांक्षी हैं। ये द्रविड़ पार्टियों के वोटों में कटौती करेंगे।
अन्नाद्रमुक भाजपा का स्वाभाविक सहयोगी है। उसने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने और राम मंदिर आंदोलन का समर्थन किया था। नरेंद्र मोदी पलानीस्वामी की सरकार को लगातार समर्थन देते रहे हैं। लेकिन कुछ मुद्दे तमिलनाडु में स्थायी हैं। तमिल दुराग्रह उसे उत्तर भारत से अलग करती है, जैसे नीट परीक्षा, हिंदी थोपे जाने, संस्कृत विरोधी भावना, ब्राह्मणवाद विरोध, आरक्षण के भीतर आरक्षण, कावेरी, श्रीलंकाई तमिल मुद्दे। ये मुद्दे पिछले पचास वर्षों से तमिलनाडु में हावी हैं, क्योंकि राष्ट्रवाद का अभाव है। भाजपा दक्षिण भारत में लामबंद होने की इच्छुक है। मोदी-अमित शाह और नड्डा की जोड़ी छह दक्षिणी राज्यों के 2024 लोकसभा चुनावों में अधिकतम लाभ हासिल करना चाहती है। कर्नाटक में भाजपा सत्ता में है ही, तेलंगाना में उसने अपनी पैठ बढ़ाई है। निश्चित रूप से केरल में सबरीमाला मुद्दे और तमिलनाडु के द्रविड़ भूमि में हिंदुत्व के साथ भाजपा अपनी जगह बनाने के लिए तैयार है।
भाजपा का मुख्य उद्देश्य तमिलनाडु में द्रमुक को हराना है। राज्य भाजपा नेतृत्व उसे हिंदू विरोधी बताता है। द्रमुक अल्पसंख्यकों को लुभाने की कोशिश करती है। लेकिन तमिलनाडु की जनसांख्यिकी ऐसी है कि उच्च जातियों का वर्चस्व न्यूनतम है। फिर भी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपने हिंदुत्व एजेंडे पर जोर दे रहा है। भाजपा ने तमिलनाडु के अंदरूनी हिस्सों में ताकत हासिल की है। अमित शाह ने उत्तर प्रदेश की तरह वहां पुराने लोगों को किनारे कर दिया है और सोशल इंजीनियरिंग के लिए दलित एवं पिछड़ी जाति के नए चेहरों को शामिल किया है। भाजपा के मौजूदा राज्य प्रमुख एल मुरुगन काफी प्रभावशाली दलित नेता हैं।
चूंकि तमिलनाडु में हिंदी विरोधी भावना को उकसाया गया, इसलिए तमिलनाडु में राष्ट्रीय पार्टियों को पैर जमाने का मौका नहीं मिला। लेकिन नरेंद्र मोदी की विकास योजनाओं, जैसे उज्ज्वला, किसानों को प्रत्यक्ष धन हस्तांतरण, गांवों में शौचालय, लंबी दूरी के राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण आदि के कारण भाजपा का जनाधार बढ़ रहा है।
सौजन्य - अमर उजाला।
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