आकाश प्रकाश
कई निवेशकों के मन में यह आशंका घर कर गई है कि वे फिलहाल अधिक प्रतिफल देने वाले शेयरों, खासकर अमेरिका की तकनीकी कंपनियों के शेयरों में आई अप्रत्याशित तेजी के दौर से गुजर रहे हैं। क्या इस डर के कारण तकनीकी शेयरों से निवेश निकालकर बैंक एवं औद्योगिक खंड की कंपनियों के शेयरों में निवेश का विकल्प चुनना चाहिए? दुनिया के लगभग सभी बाजारों के निवेशकों के मन में यह प्रश्न घूम रहा है।
निवेशक चिंतित हैं जिसे आसानी से भांपा जा सकता है। अमेरिका में केवल छह शेयरों की वर्ष 2015 से अमेरिकी शेयरों के तगड़े प्रदर्शन में अहम भूमिका रही है। इन छह शेयरों में फेसबुक, एमेजॉन, ऐपल, नेटफ्लिक्स, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट शामिल हैं। इस अवधि में इन शेयरों में चार गुना से अधिक तेजी आई है, जबकि शेष एसऐंडपी 494 में मात्र 40 प्रतिशत तेजी देखी गई है। 2015 से इन शेयरों की
कमाई दोगुना से भी अधिक बढ़ी है, जबकि एसऐंडपी 494 की कमाई न के बराबर रही है। एसऐंडपी500 में अब इन छह तकनीकी शेयरों की हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत हो गई है और इनका संयुक्त मूल्यांकन बाजार पूंजीकरण के लिहाज से सभी तेजी से उभरते बाजारों की परिसंपत्ति श्रेणी के बराबर हैं। ये छह शेयर शेष बाजार के मुकाबले 100 प्रतिशत पी/ई बढ़त के साथ कारोबार कर रहे हैं जो एक कीर्तिमान है। खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी और मार्जिन ट्रेडिंग के साथ इन आंकड़ों ने निवेशकों के मन में डर और बढ़ा दिया है। इन छह तकनीकी शेयरों से बची खुची कसर टेस्ला ने पूरी कर दी। महज एक दिन में टेस्ला का बाजार पूंजीकरण फोर्ड मोटर के पूरे बाजार पूंजीकरण से अधिक बढ़ गया। इस कामयाबी के बाद कंपनी सूचकांकों में शामिल कर ली गई। हालांकि वास्तविकता यह है कि शेयरों का मूल्यांकन काफी ऊंचे स्तर पर पहुंचने के समय के बारे में अनुमान लगाना कठिन कार्य है। इसके साथ ही यह जान पाना भी उतना ही मुश्किल है कि हम बाजार में एक अप्रत्याशित ऊंचे मूल्यांकन के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में इस तेजी के कुछ पहलुओं पर विचार और आज की परिस्थितियों के संदर्भ में उनकी व्याख्या करना जरूरी हो जाता है।
सबसे पहले केवल मूल्यांकन ही बाजार में अप्रत्याशित तेजी मापने का जरिया नहीं हो सकता है। शेयर कभी भी महंगे हो सकते हैं और मूल्यांकन पर विचार दूसरी परिसंपत्ति श्रेणियों को ध्यान में रखते हुए तुलनात्मक आधार पर होता है। इन दिनों शेयर काफी महंगे हो सकते हैं, कम से कम पिछले एक दशक के दौरान ज्यादातर मौकों पर ये ऊंचे स्तरों पर रहे हैं। हालांकि ये बॉन्ड के मुकाबले सस्ते हैं और इसलिए उनमें तेजी बदस्तूर जारी है। मूल्यांकन से आप संभावित प्रतिफल का अंदाजा लगा सकते हैं, लेकिन उसके लिए निवेश पांच वर्षों से अधिक समय तक के लिए बनाए रखना पड़ सकता है। जिस तरह आप केवल मूल्यांकन के आधार पर शेयर का चयन नहीं कर सकते हैं उसी तरह ज्यादातर संस्थागत निवेशकों के लिए केवल मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए शेयरों से निकलना बुद्धिमानी नहीं होगी।
मूल्यांकन आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण जरूर होता है, लेकिन परिसंपत्ति आवंटन से जुड़ा निर्णय लेते वक्त केवल इसे आधार नहीं बनाया जा सकता है। परिसंपत्ति आवंटन के संबंध में पहल करने से पहले बाजार का मिजाज बताने वाले संकेतक, व्यावहारिक आंकड़े, रकम प्रवाह और खुदरा निवेशकों की गतिविधियों पर भी विचार करना होगा।
एक गौर करने वाली दूसरी बात यह है कि जब भी मौद्रिक नीति काफी सरल और लचीली रही है तब परिसंपत्तियों की कीमतों में खासी तेजी आई है। दरें निचले स्तर पर रहने और बाजार में नकदी की उपलब्धता पर्याप्त रहने से परिसंपत्तियों की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखी गई है। वित्तीय परिस्थितियां भी प्रोत्साहनों से भरपूर रही हैं। इतिहास गवाह रहा है कि परिसंपत्तियों में बड़ी उछाल आने से पहले मौद्रिक नीतियां सरल और लचीली रही हैं। यह परखना भी आसान है कि आखिरकार आसान मौद्रिक नीतियों के बाद कीमतों में जबरदस्त उछाल क्यों आती है। ब्याज दरें कम होने के बाद ज्यादातर निवेशक अधिक से अधिक प्रतिफल की खोज में अधिक जोखिम लेने निकल पड़ते हैं। शुरू में निवेशकों को उनके निवेश पर अधिक प्रतिफल मिल जाता है, जिसके बाद वे अधिक रकम अपने पोर्टफोलियो में झोंकने लगते हैं। नकदी की हालत सुगम रहने से उन्हें निवेश बढ़ाने में और आसानी होती है। इसका नतीजा यह होता है कि कई निवेशक एक के बाद एक दांव लगाने लगते हैं। आसपास के लोगों को बाजार में रकम लगाते देखकर दूसरे निवेशक भी उनकी राह पर निकल पड़ते हैं।
एक और महत्त्वपूर्ण बात यह देखी गई है कि परिसंपत्तियों की कीमतों में अचानक आई तेजी नकदी की प्रचुरता बनी रहने तक बरकरार रहती है। ब्याज दरें बढऩे और नकदी की उपलब्धता कम होने के बाद ही तेजी टूटने लगती है। वास्तव में मौद्रिक नीति कड़ी होने के बाद ही लगभग सभी बड़े बुलबुले (मूल्यांकन में जबदस्त तेजी) फूटते हैं और अक्सर दरें पहली बार बढऩे के दो वर्षों के भीतर ऐसा होता है। ब्याज दरें बढऩे से परिसंपत्तियों में अचानक आई तेजी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाती है, क्योंकि दूसरी परिसंपत्तियों का मूल्यांकन भी ऊपर भागने लगता है। ऐसे में बाजार में विभिन्न विकल्प उपलब्ध हो जाते हैं और निवेशक तुलनात्मक रूप से अध्ययन करने के बाद ही निवेश करते हैं। इस तरह, बाजार में उछाल की रफ्तार कम होने लगती है। विभिन्न श्रेणियों में उछाल आने के बाद लोग तुलनात्मक रूप से जोखिम का भी अध्ययन करने लगते हैं। बाजार में निवेश के नए विकल्प आने से निवेशक किसी एक शेयर या परिसंपत्ति श्रेणी तक सीमित नहीं रह जाते हैं। वर्ष 2000 में 'डॉटकॉम बबल' का गुबार ऐसी ही परिस्थितियां बनने के बाद टूटा था। वित्तीय नवाचार भी परिसंपत्ति में आई उछाल के लिए जिम्मेदार होते हैं। वित्तीय नवाचार से किसी खास शेयर या परिसंपत्ति श्रेणी में निवेश की वजह बढ़ जाती है या वैसे निवेशकों की संख्या बढ़ देती है जो इन परिसंपत्तियों में कारोबार कर सकते हैं। नवाचार परिसंपत्तियों के कारोबार की राह में आने वाली बाधाएं भी दूर कर देते हैं।
पूर्व परिसंपत्तियों की कीमतों में आई उछाल से जुड़े सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद अब इस बात पर बहस की जा सकती है कि हम फिलहाल तकनीकी शेयरों में आई उछाल के बीच हैं या नहीं। मूल्यांकन अधिक जरूर है लेकिन फिक्स्ड इनकम के मुकाबले कम ही है। हालांकि कुछ संकेत जोखिम की ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में ऐसा कोई ऐसा कारण नजर नहीं आ रहा है जो किसी संभावित तेजी की गुंजाइश कम या इस पर विराम लगा सकता है। भविष्य में मौद्रिक नीति को लेकर ढिलाई जारी रहने वाली है।
फिलहाल तो ऐसा नहीं लग रहा है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व या दुनिया का दूसरा कोई केंद्रीय बैंक दरें बढ़ाने की जल्दबाजी करेगा या बाजार से नकदी खींचने की पहल करेगा। हालांकि बाजार में नकदी आगे भी बहाल होती रहेगी, यह भी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है। इसके बावजूद नए निर्गम सूचीबद्ध होने की कतार में हैं, लेकिन वे अगले कई महीनों में बाजार में दस्तक देंगे। तकनीकी कंपनियों के बीच शेयर पुनर्खरीद रोकने के लिए संभावित कानून आड़े आ सकता है। हालांकि ऐसा होता नहीं दिख रहा है। नियामकीय जोखिम को लेकर चिंता है, लेकिन इससे तकनीकी क्षेत्र की इन कंपनियों कारोबारी अर्थशास्त्र को नुकसान पहुंचेगा या इससे बाजार में अधिक शेयर आएंगे इसकी आशंका अधिक नहीं लग रही है।
जैसा कि चर्चा हो चुकी है यह स्पष्ट नहीं है कि हम तकनीकी शेयरों में आई अप्रत्याशित तेजी के दौर से गुजर रहे हैं या नहीं। इतना जरूर साफ है कि यह संभावित तेजी जल्द खत्म होने वाली नहीं है। दरें जब तक निचले स्तर पर बनी रहेंगी तक तब निवेश के ढर्रे में कोई बदलाव नहीं आएगा। निवेश का माहौल बदलेगा या नहीं यह चर्चा का एक अलग विषय हो सकता है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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