बैंकिंग साख - वृद्धि दर पर ध्यान से नीतिगत दर में बदलाव नहीं (बिजनेस स्टैंडर्ड)

तमाल बंद्योपाध्याय  

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया। उसके इस कदम पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अगले वर्ष फरवरी में पेश होने वाले बजट से पूर्व मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अंतिम बैठक थी। उम्मीद के अनुरूप केंद्रीय बैंक ने स्वीकार किया है कि महंगाई दर उसके अनुमान से अधिक रहेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार भी अक्टूबर में उसके द्वारा व्यक्त अनुमानों की तुलना में मजबूत रहेगी। हालांकि इन बातों के बावजूद आरबीआई ने कम से कम फिलहाल और अगले वर्ष उदार नीतिगत कदमों की गुंजाइश बरकरार रखी है। उसने स्पष्टï कर दिया है कि कोविड-19 महामारी से तबाह अर्थव्यवस्था की मदद के लिए वह कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार है। बाजार को इस बात का डर सता रहा था कि वित्तीय तंत्र में मौजूद अतिरिक्त नकदी खींचने के  लिए केंद्रीय बैठक कुछ कदम उठा सकता है। हालांकि आरबीआई ने ऐसा कुछ नहीं किया। वित्तीय तंत्र में अधिक नकदी मौजूद होने से ओवरनाइट रेट आबीआई की रिवर्स रीपो रेट से नीचे आ गई हैं और लघु अवधि में प्रतिफल की चाल भी बेहाल हो गई है। रिवर्स रीपो रेट वह दर होती है, जिस पर व्यावसायिक बैंक अपनी अतिरिक्त नकदी केंद्रीय बैंक के पास जमा करते हैं। रीपो रेट (4 प्रतिशत) और रिवर्स रीपो रेट (3.35 प्रतिशत) दोनों अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं। इन बातों के मद्देनजर बढ़ती महंगाई के बावजूद अत्यधिक लचीली मौद्रिक नीति और अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दोनों थोड़ा उलझन में डालने वाले हैं। दुनिया भर में केंद्रीय बैंकों का रवैया भी कुछ ऐसा ही है। 

 

अगर महंगाई ऊंचे दर पर बनी रही तो भी अप्रैल 2021 से पहले दरें बढऩे की गुंजाइश नहीं लग रही है। मौद्रिक नीति के जो मायने सामने आए हैं, उन पर विचार करना जरूरी है। नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। दरें निर्धारित करने वाली मौद्रिक नीति समिति ने जरूरत महसूस होने तक उदार रवैया बरकरार रखने का निर्णय लिया है। समिति ने यह स्पष्टï कर दिया है कि कम से कम चालू वित्त वर्ष और अगले वर्ष के शुरू तक अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए वह उदारवादी रुख अपनाएगा। समिति ने यह भी कहा कि वह आगे चलकर महंगाई सीमित दायरे में रखने की भी कोशिश करेगा। अक्टूबर में दरों पर निर्णय लेने के दौरान समिति का एक सदस्य इतने लंबे समय तक के लिए उदार रवैया अपनाने के संकेत दिए जाने के खिलाफ था। अक्टूबर 2020 में खुदरा महंगाई बढ़कर 7.6 प्रतिशत हो गई, जो पिछले छह वर्षों में सर्वाधिक और सभी विश्लेषकों के अनुमानों से अधिक रही। आरबीआई ने महंगाई के सिर उठाने के मद्देनजर यह माना है कि पिछले दो महीनों में जताए गए अनुमानों के मुकाबले महंगाई की चाल तेज हो गई है। उसने दिसंबर तिमाही के लिए महंगाई दर का अनुमान बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2021 की मार्च तिमाही के लिए बढ़ाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया है। केंद्रीय बैंक के अनुसार 2022 की पहली छमाही में महंगाई दर 5.2 से 4.6 प्रतिशत के बीच रह सकती है और जोखिम मोटे तौर पर सामान्य स्तर पर रहेगा। यह बाजार के अनुमानों से थोड़ा अधिक है। अक्टूबर में आरबीआई ने 2021 की पहली छमाही में महंगाई दर 5.4 से 4.5 प्रतिशत और 2022 की पहली तिमाही में 4.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। मौद्रिक नीति समिति ने पाया है कि ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरी क्षेत्रों में भी मांग जोर पकड़ रही है और विनिर्माण कंपनियों का कारोबार को लेकर उत्साह बढ़ रहा है। हालांकि निजी निवेश लगातार कमजोर बना हुआ है और वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी में कुल 7.5 प्रतिशत कमी रह सकती है। चालू वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों में जीडीपी में क्रमश: 23.9 और 7.5 प्रतिशत गिरावट आने के बाद समिति को लगता है कि दिसंबर और मार्च तिमाही में वृद्धि दर 0.1 और 0.7 प्रतिशत रह सकती है, जिससे 2022 की पहली छमाही में वृद्धि दर 21.9 से 6.5 प्रतिशत तक रह सकती है। अक्टूबर में मौद्रिक नीति समीक्षा में 2021 में जीडीपी में 9.5 प्रतिशत कमी (दिसंबर तिमाही में -5.6 प्रतिशत और मार्च तिमाही में 0.5 प्रतिशत) आने का अंदेशा जताया गया था।

 

अब प्रश्न यह है कि महंगाई दर ऊंचे स्तर पर बनी रहने और भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार दिखने के बावजूद आरबीआई ने अगले वर्ष के लिए ढीली मौद्रिक नीति की गुंजाइश क्यों बरकरार रखी है? इसने वित्तीय प्रणाली से अतिरिक्त बाहर निकालने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाए हैं? इसके दो कारण हो सकते हैं। पहली बात तो यह कि महंगाई दर मांग-आपूर्ति समीकरण पर निर्भर करती है और अर्थव्यवस्था में सुधार वृहद पैमाने पर नहीं हो रहा है। सुधार लगातार जारी रहने के लिए नीतिगत समर्थन की जरूरत है। एमपीसी का मानना है कि सर्दियों में अस्थायी कमी को छोड़कर मोटे तौर पर महंगाई दर ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी जिससे दरों में कटौती की उम्मीद तत्काल नहीं है। आरबीआई की भाषा में ऊंची महंगाई दर मौजूदा समय में मौद्रिक नीति को वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए उपलब्ध गुंजाइश का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देती है। तो क्या अगले वर्ष दर में कटौती की संभावना मौजूद है? मुझे ऐसा नहीं लगता। आरबीआई के अनुसार आपूर्ति तंत्र में आई बाधा, क्रय एवं विक्रय मूल्य में अधिक अंतर और अप्रत्यक्ष करों की वजह से ऊंचे स्तर पर पहुंची महंगाई पर नियंत्रण के लिए सक्रिय आपूर्ति प्रबंधन रणनीतियों के लिए थोड़ी गुंजाइश उपलब्ध है। इससे स्पष्टï है कि महंगाई पर अंकुश लगाने के उपाय करने की जिम्मेदारी आरबीआई ने कुछ समय के लिए सरकार को दी है। अगर महंगाई नियंत्रण में नहीं आई तो नीतिगत दर बढऩे की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि अप्रैल 2021 से पहले यह नहीं होगा। 

 

आरबीआई को वित्तीय प्रणाली में उपलब्ध अतिरिक्त नकदी खींचने का उपाय नहीं करते देख बैंकों के शेयर चढ़ गए और बॉन्ड बाजार में भी तेजी देखी गई। हालांकि बाजार में लंबे समय तक जरूरत से अधिक नकदी मौजूद रहने नहीं दी जा सकती। फिलहाल आरबीआई अर्थव्यवस्था को आगे धकेलने के लिए थोड़ा इंतजार कर रहा है। 

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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