पाबंदी के विरुद्ध (जनसत्ता)

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने जब एच-1 बी वीजा नियमों में बदलाव करने का प्रस्ताव पेश किया था और बाद में इसे मंजूरी भी दे दी गई थी, तब उसे अमेरिकी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश के तौर पर ही देखा गया था। यह अलग बात है कि इस मसले पर उन्हें अंतिम कामयाबी नहीं मिली, क्योंकि वे राष्ट्रपति चुनाव हार चुके हैं।

लेकिन विश्व में अमेरिका को जैसा देखा-समझा जाता है, उसमें उनके उस फैसले को कोई सकारात्मक कदम नहीं माना गया। बल्कि चुनावों के दौरान ही अगस्त में राष्ट्रपति पद के दूसरे उम्मीदवार जो बाइडेन की टीम ने कहा था कि अगर उनकी जीत होती है तो उनका प्रशासन एच-1बी वीजा प्रणाली में सुधार करेगा और ग्रीन कार्ड के लिए ‘कंट्री कोटा’ को हटाने पर भी काम करेगा।

बाइडेन की कोशिशों को भी तब अमेरिका में आप्रवासी भारतीय समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करार दिया गया था। लेकिन अब अमेरिका की एक अदालत ने जिस तरह एच-1बी वीजा नियमों पर ट्रंप के फैसलों पर रोक लगा दी है, उससे बाइडेन सहित आप्रवासी नागरिकों के पक्ष के सही होने की पुष्टि हुई है।

गौरतलब है कि कैलीफोर्निया के उत्तरी जिले की अदालत ने मंगलवार को ट्रंप प्रशासन की उस नीति पर रोक लगा दी, जिसमें दर्ज नियम विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अमेरिकी कंपनियों की क्षमता को बाधित करते थे।

इसके तहत रोजगार प्रदाता को एच-1बी वीजा पर विदेशी कामगारों को अनिवार्य रूप से ज्यादा मजदूरी देनी पड़ती। इसके अलावा, अदालत ने अमेरिकी कंपनियों और रोजगार प्रदाताओं के लिए एच-1बी वीजा की अर्हता को कम करने वाली एक अन्य नीति को भी खारिज कर दिया।

जाहिर है, अदालत के ताजा फैसले के बाद मसले पर प्रभावी नियम अब अमान्य हो गया है और इसे ट्रंप के लिए एक झटके के तौर पर देखा जाएगा। दरअसल, ट्रंप की चुनावी नीतियों के तहत किए गए बदलावों के बाद अमेरिका में काम कर रही भारतीय आइटी कंपनियों को स्थानीय लोगों को काम पर रखने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते।

इसका मतलब यह भी हुआ कि अगर प्रवासी भारतीयों या दूसरे देशों के पेशेवरों को रोजगार मिल रहा था तो इसकी एक बड़ी वजह अपेक्षया सस्ता श्रम भी था। महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था ठप होने और भारी पैमाने पर लोगों के रोजगार से वंचित होने के दौर में आप्रवासियों को दरकिनार करके अमेरिकियों के लिए मौका निकालने का नारा आकर्षक तो था, लेकिन उसे एक आदर्श हल के तौर पर नहीं देखा गया।

सच यह है कि लंबे समय में अमेरिका की लोकतांत्रिक व्यवस्था ने जैसा ढांचा खड़ा किया है, उसमें आप्रवासियों को देश के आर्थिक हित में योगदान देने वाले तबके के तौर पर देखा गया। यही वजह है कि आज अमेरिका में बड़ी तादाद में दूसरे देशों के लोग रहते हैं और उनमें से बहुत सारे एच-1बी वीजा नियमों के तहत अलग-अलग क्षेत्रों में पेशेवर नौकरी भी करते हैं।

यह वीजा एक गैर-आव्रजक वीजा है, जिसके तहत अमेरिका में काम करने वाली कंपनियां सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता से संबंधित कुछ खास व्यवसायों के लिए दूसरे देशों के लोगों को रोजगार दे सकती हैं। यों यह मसला केवल रोजगार देने तक सीमित नहीं है।

बल्कि आज अर्थव्यवस्था और तकनीक की दुनिया में अमेरिका अगर एक ताकतवर देश के रूप में खड़ा है, तो उसमें आप्रवासियों की भी बड़ी भूमिका है। जरूरत इस बात की है कि अगर महामारी या दूसरी वजहों से अमेरिका आर्थिक संकट का सामना कर रहा है तो उसके लिए ठोस वैकल्पिक उपाय किए जाएं। आप्रवासियों की कीमत पर संभाली गई अर्थव्यवस्था वैसे भी स्थायी या दीर्घकालिक नहीं होगी!

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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