विवेक शुक्ला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को नए संसद भवन की आधारशिला रखेंगे। इसके साथ ही एडविन लुटियन तथा हरबर्ट बेकर के डिजाइन की संसद भवन की इमारत, जिसके निर्माण में हजारों भारतीय मजदूरों ने दिन-रात एक किया था, इतिहास के पन्नों में चली जाएगी। 12 फरवरी, 1921 को ब्रिटेन के ड्यूक आफ कनॉट ने इसकी आधारशिला रखी थी। यह छह सालों में 83 लाख रुपये के कुल खर्च में बनी थी। देश को जो नया संसद भवन मिलने जा रहा है, उसके निर्माण पर 971 करोड़ रुपये की लागत आएगी। नया संसद भवन पुराने संसद भवन से 17,000 वर्गमीटर बड़ा होगा। इसे 64,500 वर्गमीटर क्षेत्र में बनाया जाएगा।
देश को नया संसद भवन ही नहीं मिलने जा रहा है। अब देश को साउथ और नॉर्थ ब्लॉक की भी जरूरत नहीं रही या कहें कि अब इन इमारतों से आगे सोचने का समय आ गया है। ये राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के बीच 1911 से 1931 के दौरान बनी थीं। नई दिल्ली के इस दिल को सेंट्रल विस्टा भी कहा जाता है। अभी तक स्पष्ट नहीं है कि मौजूदा संसद भवन का आगे किस तरह से उपयोग होगा। पर नॉर्थ और साउथ ब्लॉक संग्रहालय बनने जा रहे हैं। इनके स्थान पर एक सेंट्रल विस्टा, जिसे राजपथ भी कहते हैं, पर कम से कम चार बड़ी और आधुनिक इमारतें खड़ी की जा रही हैं, जहां केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को स्थानांतरित कर दिया जाएगा। इनमें 45 हजार सरकारी बाबू काम कर सकेंगे।
इतना सब कुछ करने की जरूरत क्यों महसूस की गई? क्या इन मौजूदा इमारतों में सुधार करके काम नहीं चलाया जा सकता था? इन सवालों के दो उत्तर हैं। पहला, इन तीनों महान इमारतों में जरूरी बदलाव संभव थे। आखिर अमेरिका और यूरोप में बहुत-सी इमारतें 150 साल तक उपयोग में रहती हैं। दूसरा, हमें साउथ और नॉर्थ ब्लॉक के स्थान पर नए दफ्तरों की इमारतें इसलिए बनानी पड़ रही हैं, क्योंकि इनकी स्थिति बेहद खराब हो रही है। इनमें एयर कंडीशन की व्यवस्था करने के कारण व्यापक स्तर पर टूट-फूट होती रही है। अब इनमें सीलिंग की समस्या गंभीर होती जा रही है। नॉर्थ ब्लॉक के भूतल में कुछ साल पहले प्रिंटिंग प्रेस लगाने से इस इमारत का हाल बेहाल हो गया है। फिर 1931 की और मौजूदा दौर की दिल्ली में जमीन आसमान का अंतर हो चुका है।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी कहते हैं कि फिलहाल सरकार के बहुत से दफ्तर निजी इमारतों से भी काम कर रहे हैं, जिसका सरकार को हर साल एक हजार करोड़ रुपये देना पड़ रहा है। जाहिर है, नई इमारतें बनने के बाद कोई भी सरकारी दफ्तर किराये के भवनों से नहीं चलेगा। जब लुटियन और बेकर देश की नई राजधानी की सरकारी इमारतों के डिजाइन बना रहे थे, तब दिल्ली की आबादी 14-15 लाख के आसपास थी। अब यह ढाई करोड़ को पार कर रही है। सरकार ने सेंट्रल विस्टा के विकास के लिए जिस फर्म को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी दी, उसका अभी तक का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है। इस फर्म ने मुंबई पोर्ट कॉम्प्लेक्स, गुजरात राज्य सचिवालय, आईआईएम, अहमदाबाद आदि के लाजवाब डिजाइन तैयार किए हैं। यहां यह बताना समीचीन होगा कि जब नई इमारतें बनेंगी, तो शास्त्री भवन, उद्योग भवन, कृषि भवन, विज्ञान भवन और निर्माण भवन जैसी पचास और साठ के दशकों में बनी इमारतें भी जमींदोज होंगी। इसके साथ ही रॉबर्ट टोर रसेल द्वारा लोक कल्याण मार्ग पर स्थित प्रधानमंत्री निवास भी इतिहास के पन्नों मे दर्ज होगा। नया प्रधानमंत्री आवास डलहौजी रोड में बनेगा।
नई दिल्ली की सारी प्रमुख इमारतों को बनने में करीब 20 वर्षों का समय लगा था। पर इधर तो काम मार्च 2024 तक समाप्त भी हो जाएगा। सरकार की चाहत है कि संसद की नई इमारत 2022 तक बन जाए, जब देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा हो। मगर इतने मेगा प्रोजेक्ट को चरणबद्ध तरीके से भी किया जा सकता था। बहरहाल, नई दिल्ली के शुरुआती दौर के स्थापत्य और लैंड स्केपिंग पर जब भी चर्चा होगी, तो लुटियन और बेकर का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता रहेगा। हालांकि यह मुमकिन है कि नई इमारतों के बनने से राजधानी और सुंदर हो जाए।
सौजन्य - अमर उजाला।
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