इसमें संदेह नहीं कि देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली देश के तमाम लोकतांत्रिक आंदोलनों का केंद्र रही है। दूसरे राज्यों में किसी मुद्दे पर होने वाले आंदोलनकारी भी दिल्ली का रुख करते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात की उम्मीद होती है कि केंद्र सरकार उनके मुद्दों पर ज्यादा शिद्दत से गौर करेगी। नए कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का केंद्र भी इसीलिए दिल्ली बन गया है।
यों देश के अलग-अलग हिस्से से इस मसले पर किसानों के विरोध प्रदर्शन की खबरें हैं, लेकिन खासतौर पर पंजाब और हरियाणा के किसान भारी तादाद में दिल्ली पहुंच कर नए कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहते थे। उनका काफिला दिल्ली की ओर चला भी, मगर फिलहाल दिल्ली प्रवेश के पहले सिंधु बॉर्डर पर रुका हुआ है। वहां भारी तादाद में किसान जमे हुए हैं। लेकिन इस सबके बीच एक समस्या यह खड़ी हो गई है कि आसपास के राज्यों से दिल्ली में आवाजाही के ज्यादातर मुख्य रास्ते लगभग बंद हो गए हैं। उत्तर प्रदेश और हरियाणा से दिल्ली में आने वाली सड़कें जाम हैं और लोग आपात स्थिति में वैकल्पिक रास्तों या उपायों का सहारा ले रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि चारों ओर से दिल्ली का रास्ता बाधित होने के बावजूद यहां की सरकार और उसके प्रतिनिधियों के बीच इसकी फिक्र नहीं दिख रही है कि अगर यह सब लंबा खिंचा तो कैसे हालात पैदा हो सकते हैं। खासतौर पर मौजूदा समय में महामारी से सामना करती दिल्ली में अगर जाम की वजह से आपात स्थितियां खड़ी हुर्इं तो उससे निपटने के क्या इंतजाम हैं! सरकार के नुमाइंदों को जहां शहर के जाम, बंद रास्तों और उससे उपजी समस्याओं के हल का रास्ता निकालना चाहिए था, वहां वे इस पक्ष की अनदेखी करने में नहीं हिचक रहे हैं।
कुछ दिन पहले किसान आंदोलन के चलते दिल्ली में आॅक्सीजन आपूर्ति सेवाएं प्रभावित होने की खबरें आई थीं। कोरोना से लड़ती दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं में आॅक्सीजन की सहज उपलब्धता सबसे संवेदनशील पक्ष है। लेकिन इस खबर को गंभीरता से लेने के बजाय दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने इस सवाल को खारिज कर दिया और कहा कि यहां आॅक्सीजन की कोई कमी नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि दो दिन पहले आॅक्सीजन की कमी पेश आई थी, जिसे अब दूर कर लिया गया है। सवाल है कि अगर आंदोलन की वजह से रास्ते बाधित रहने की अवधि लंबी खिंची तो वैसे में आपात स्थितियों से निपटने के लिए सरकार ने कौन-से विकल्प तैयार रखे हैं!
यह एक जगजाहिर तथ्य है कि दिल्ली के कारोबारी ढांचे से लेकर रोजी-रोजगार सहित पढ़ाई-लिखाई या दूसरी बहुत सारी गतिविधियां इसकी सीमा से सटे इलाकों पर अभिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं। इस हकीकत को देखते हुए ही एक समय दिल्ली के दायरे को व्यावहारिक विस्तार देते हुए एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का स्वरूप दिया गया, जिसमें इसकी सीमा से सटे चारों ओर के सभी बड़े शहर शामिल हैं।
अगर इन शहरों से दिल्ली की आवाजाही के रास्ते रोक दिए जाएं तो समूचे एनसीआर पर इसका विपरीत असर पड़ेगा। पूर्णबंदी में राहत के बावजूद अब भी आर्थिक गतिविधियां सामान्य नहीं हो पाई हैं। लेकिन इसमें फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में किसी भी तरह की बाधा खड़ी न हो। इसके लिए कम से कम आपात सेवा से संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए सभी इलाकों में निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करना सरकारों की जिम्मेदारी है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि सड़कों के बाधित होने के चलते महज कुछ पलों की देरी से किसी मरीज की जान जा सकती है।
सौजन्य - जनसत्ता।
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