समय-समय पर भारतीय शासकों द्वारा पाकिस्तान सरकार पर भारत में हथियारों, नशीले पदार्थों और जाली करंसी की तस्करी करवाने के आरोप लगाए जाते रहते हैं परंतु अनुभव बताता है कि इन घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं हमारे अपने सुरक्षा प्रबंधों की चूक का हाथ भी रहा है। भारत ने लगभग 10 वर्ष पूर्व भी पाकिस्तान के साथ यह मुद्दा उठाया था जब 28 मार्च, 2010 को वाघा में भारत-पाकिस्तान के बीच बी.एस.एफ. के एडीशनल डी.आई.जी. श्री पी.पी.एस. सिद्धू ने पाक रेंजर्स के महानिदेशक ब्रिगेडियर मोहम्मद याकूब से यह मामला उठाया तो याकूब ने साफ शब्दों में हमारे मुंह पर तमाचा जड़ते हुए कहा था कि :
‘‘भारत की ओर से सीमा पर कांटेदार तार बाड़ है। तस्करों पर नजर रखने के लिए फ्लड लाइट्स लगी हैं। भारतीय सीमा पर चौकसी व गश्त की व्यवस्था है। इसके बावजूद यदि सीमा पर तस्करी की घटनाएं होती हैं तो इस बारे भारतीय अधिकारियों को ही सोचने की जरूरत है।’’ फिर 1 जुलाई, 2012 को भी पाकिस्तान रेंजर्स के महानिदेशक मियां मो. हिलाल हुसैन व मेजर जनरल मो. रिजवान अख्तर ने भी इस बारे भारतीय आरोपों को दो टूक शब्दों में नकारते हुए इसके लिए भारतीय सुरक्षाबलों को ही जिम्मेदार ठहराते हुए कहा :
‘‘पाकिस्तान पर हमेशा भारतीय सीमा में घुसपैठियों को भेजने तथा तस्करी करवाने के आरोप लगाए जाते हैं परंतु भारतीय सीमा की तरफ से ही सुरक्षा के सर्वाधिक प्रबंध किए गए हैं।’’ ‘‘सीमा पर भारत की ओर से ही फैंसिंग लगाई गई है। इसके अलावा सर्च लाइट व फैंसिंग में करंट भी बी.एस.एफ. द्वारा छोड़ा गया है। ऐसे में भला हम भारत में घुसपैठ व तस्करी कैसे करवा सकते हैं? किसी की आज्ञा के बिना किसी के मकान में भला कोई कैसे घुस सकता है!’’ हमने अपने 5 जुलाई, 2012 के सम्पादकीय ‘पाकिस्तानियों की भारत के मुंह पर एक और चपत’ में भारत सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया था परंतु अभी तक इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला है।
पाकिस्तान की ओर से भारत में हथियारों, नशीले पदार्थों और जाली करंसी की तस्करी लगातार जारी है और सुरक्षा व्यवस्था में हमारी कमजोरियां बार-बार सामने आ रही हैं। इसका ताजा उदाहरण सीमा सुरक्षा बल द्वारा जम्मू-कश्मीर के हीरा नगर सैक्टर के सीमांत गांव बेबिया में पाकिस्तान द्वारा बनाई गई एक पुरानी सुरंग का पर्दाफाश करने से मिला है जिसके बारे में भारतीय सुरक्षा बलों को अब पता चला है।
इस सुरंग में बरामद बोरियों में शकरगढ़ और कराची की सीमैंट फैक्टरियों के टैग लगे थे तथा उनमें रेत भरी हुई थी। इन बोरियों पर 2016-2017 की तारीख छपी हुई है जिससे स्पष्ट है कि यह सुरंग 3-4 साल पहले की बनाई हुई है। पाटी मेरु के पास मिली यह सुरंग 150 मीटर लम्बी और 25-30 फुट गहरी है। भारतीय क्षेत्र में 20 मीटर अंदर तक बनी इस सुरंग का एक हिस्सा भारत में और बाकी 130 मीटर हिस्सा पाकिस्तान में आतंकवादियों के गढ़ और लांच पैड माने जाने वाले शकरगढ़ में निकलता है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले गत वर्ष 29 अगस्त और 20 नवम्बर को साम्बा में 2 सुरंगों का पता चला था और वहां भी ऐसी ही बोरियां मिली थीं। यह सही है कि हमारे सुरक्षाबलों के सदस्यों ने इस सुरंग का पता लगाया है परंतु इतने लम्बे समय तक इसका पता न लग पाने से स्पष्ट है कि कहीं न कहीं गड़बड़ जरूर है अत: इस ‘सफलता’ पर अपनी पीठ थपथपाने की बजाय हमें अपनी कमजोरियों पर भी ध्यान देना जरूरी है।
इस सुरंग का देर से पता लगने के कारण अब तक न जाने इस रास्ते से कितने गोला-बारूद, नशीले पदार्थों तथा नकली करंसी आदि की भारत में तस्करी करवाई जा चुकी होगी। सीमांत क्षेत्रों में लगातार गश्त करने वाले हमारे सुरक्षा बलों को शत्रु की ऐसी गतिविधियों व मशीनों आदि के चलने से होने वाली हलचल, उनकी आवाज और मिट्टी निकाले जाने की गतिविधियों का समय रहते पता क्यों नहीं चल पाया जबकि पिछले दस वर्षों में इस क्षेत्र में मिलने वाली यह नौवीं सुरंग है। इन हालात में यह जरूरी हो जाता है कि हम अपनी सतर्कता संबंधी त्रुटियों की ओर देखें। इसे अधिक चुस्त करें तथा गश्त भी बढ़ाएं। सीमा पर सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाने की भी जरूरत है।
यही नहीं, भारतीय सुरक्षा बलों तथा आम नागरिकों में छिपे उन गद्दारों का पता लगाना भी जरूरी है जो अपने ही देश की गुप्त सूचनाएं शत्रु को देकर देश के साथ छल कर रहे हैं जैसे कि गत वर्ष जम्मू-कश्मीर पुलिस के डी.एस.पी. देवेंद्र सिंह को आतंकवादियों के साथ मिलीभगत के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके साथ ही पाकिस्तान के साथ लगती पूरी सीमा पर एक योजनाबद्ध तरीके से सर्च आप्रेशन चलाना और पाकिस्तानी साजिश से बनी ऐसी सुरंगों का पर्दाफाश करके सीमा की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। तभी हम पाकिस्तानी चुनौती का मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं।—विजय कुमार
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‘सीमा पर 150 मीटर लंबी सुरंग’‘इसके लिए असली कसूरवार कौन?’ (पंजाब केसरी)
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