डॉ अश्विनी महाजन, राष्ट्रीय सह संयोजक स्वदेशी जागरण मंच
इन दिनों अर्थशास्त्री कोरोना काल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के नुकसान की गणना में व्यस्त हैं. भारत के केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) ने जुलाई और सितंबर के बीच जीडीपी में 15.7 प्रतिशत (वार्षिक आधार पर) के संकुचन का आकलन किया है. इससे पहले सीएसओ ने चालू वित्त वर्ष (2020-21) की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में जीडीपी के संकुचन का अनुमान 23.9 प्रतिशत लगाया था. भारत सरकार के पिछले मुख्य सांख्यिकीविद प्रोनाब सेन ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में में लगभग 10 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है. उनके अनुसार वृहद आर्थिक स्थिति बहुत अनिश्चित है. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इस संकुचन के 7.5 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया है.
संकुचन के कारण को समझने के लिए किसी रॉकेट विज्ञान की आवश्यकता नहीं है. किसी देश की जीडीपी उस देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है, जो आम तौर पर एक वर्ष के लिए मापी जाती है. चूंकि आर्थिक गतिविधियां, विशेष रूप से विनिर्माण और सेवाएं, इस वर्ष बुरी तरह से प्रभावित हुईं और महामारी के कारण लोगों की आवाजाही कम हो गयी है, जीडीपी में गिरावट स्वाभाविक ही थी. केवल कृषि क्षेत्र ही प्रभावित नहीं हुआ.
पिछली दो तिमाहियों में कृषि में 3.4 प्रतिशत (दोनों तिमाहियों) की सकारात्मक संवृद्धि हुई है, जबकि विनिर्माण में 39.3 प्रतिशत और 0.6 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी है. व्यापार, होटल, परिवहन व संचार में क्रमशः 47 प्रतिशत और 15.6 प्रतिशत का संकुचन आया. तीसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियां शुरू हो गयी हैं और हम कई वस्तुओं में विनिर्माण में पुनः प्रवर्तन देख रहे हैं. एक ओर मांग बढ़ने लगी है, वहीं कई अड़चनें भी दूर हो रही हैं. उपभोक्ता मांग का एक संकेतक यात्री वाहन की बिक्री है, जहां हम पिछले साल नवंबर की तुलना में नवंबर, 2020 में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि देख रहे हैं.
पिछले साल नवंबर की तुलना में बीते नवंबर में ऋण की मांग 5.5 प्रतिशत बढ़ी है. हम पाते हैं कि खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआइ) पिछले चार महीनों से सेवाओं और विनिर्माण क्षेत्रों दोनों के लिए 50 से ऊपर है और अक्टूबर में पीएमआइ 58.9 दर्ज किया गया था, जो 13 वर्षों में सबसे तेज वृद्धि है. हालांकि यह नवंबर में 56.3 तक कम हो गया है, पर हम यह निष्कर्ष अवश्य निकाल सकते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग चार महीनों के गंभीर आर्थिक संकट के बाद चमक वापस आ रही है.
जहां एक ओर महामारी थी, तो दूसरी ओर आर्थिक गतिविधियों में गिरावट हुई और रोजगार का नुकसान हुआ. सरकारी वित्त की हालत भी बहुत खराब थी. एक तरफ आर्थिक गतिविधियां बंद होने से राजस्व में गिरावट आ रही थी, तो दूसरी तरफ सरकार पर गरीबों के कल्याण पर अधिक खर्च करने का भारी दबाव भी था. नवंबर तक सरकार लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन प्रदान कर रही थी, जो बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न क्षेत्रों के लिए विस्तृत बूस्टर पैकेज लेकर आयी है.
उनमें सक्रिय दवा सामग्री (एपीआइ) और इलेक्ट्रॉनिक व दूरसंचार क्षेत्रों के उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं शामिल हैं. सरकार ने लाभकारी रोजगार को बढ़ावा देने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से योजनाओं की घोषणा की है. रियल एस्टेट सेक्टर को प्रोत्साहन देने और विभिन्न वस्तुओं में आयात प्रतिस्थापन की योजनाएं भी पेश की गयी हैं. सभी ने सरकारी वित्त पर भारी दबाव डाला है, लेकिन इसने महामारी से त्रस्त अर्थव्यवस्था को बढ़ावा भी दिया है.
आर्थिक विश्लेषक एकमत हैं कि अर्थव्यवस्था का तेज पुनरुद्धार हो रहा है. हालांकि पुनः प्रवर्तन के आकार के बारे में अलग-अलग विचार हैं. आधिकारिक दृष्टिकोण यह है कि अर्थव्यवस्था वी-आकार से बेहतरी की ओर बढ़ रही है, जबकि कुछ अन्य लोग यू आकार यानी थोड़ी देर के लिए स्थिर और फिर ठीक होनेवाली अर्थव्यवस्था या डब्ल्यू आकार यानी पहले ऊपर जाकर फिर डुबकी लेने के बाद फिर से उठने के पुनः प्रवर्तन की उम्मीद कर रहे हैं. पर सर्वसम्मति यह है कि पुनः प्रवर्तन का आकार जो भी हो, अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से ठीक होने जा रही है. इसका एक कारण है मांग में तेजी. महामारी में आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के कारण जो मांग गायब हो गयी थी, वह वापिस आ रही है.
दूसरा, घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए हो रहे सरकारी प्रयासों के कारण सुधार अपेक्षा से अधिक तेजी से हो रहा है. उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था को महामारी से संबंधित आर्थिक नुकसान से बाहर लाने और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लगभग 20 लाख करोड़ रुपये का एक बेलआउट पैकेज दिया गया है. तीसरा, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की नयी नीति ने विशेष रूप से चीन से आयात को हतोत्साहित करके घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया है. चौथी बात, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रिकवरी उम्मीद से ज्यादा तेज रही है. माना जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में भी तेज आर्थिक सुधार होगा और बेरोजगारी में कमी हो सकती है.
दुनिया ने एक सदी से अधिक समय के बाद महामारी देखी है और यह सामान्य स्थिति नहीं है, जीडीपी बढ़ाने विकास या उसके संकुचन को देखना विवेकपूर्ण नहीं होगा. बेहतर तरीका यह है कि इस महामारी वर्ष को ‘शून्य वर्ष’ मान लिया जाए. वर्ष 2019-20 से जीडीपी वृद्धि की गणना करें और 2020-21 को छोड़ ही दें. महामारी से नये सबक सीखते हुए, 2020 को पीछे छोड़ते हुए, एक बड़ी छलांग लगाने की जरूरत है. आइए, ग्रामीण स्तर पर डेयरी, पोल्ट्री, बागवानी, फ्लोरीकल्चर, बांस की खेती, कुटीर उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, उच्च मूल्य वाली फसलों और ग्राम स्तर पर अधिक व मूल्यवर्धन के साथ रोजगार सृजन करते हुए आत्मनिर्भर गांवों के एक नये युग में प्रवेश करें.
एक नयी व्यवस्था बनायें, जहां हमारे ग्रामीण शहरों की ओर पलायन के लिए मजबूर न हों. अपना देश मैन्युफैक्चरिंग में चीन या किसी अन्य देश पर निर्भर न हो. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए विश्व स्तर का सामान बनायें, जैसा कि प्रधानमंत्री कहते हैं, शून्य दोष और शून्य (पर्यावरण) प्रभाव के साथ. चीन से मोहभंग होने के बाद पूरी दुनिया एक विकल्प के रूप में भारत की ओर देख रही है. आइए सब मिलकर इस संकट को अवसर में बदल दें.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
सौजन्य - प्रभात खबर।
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