अमेरिकी संसद की शर्मसार कर देने वाली घटना, इससे तमाम कमजोरियों की भी खुलती है पोल (दैनिक जागरण)

यह किसी से छिपा नहीं कि राष्ट्रपति चुनाव के पहले ही अमेरिकी समाज के बीच एक खाई बन गई थी। पुलिस की बेजा सख्ती के खिलाफ अश्वेत समुदाय के आक्रोश प्रदर्शन के दौरान यह साफ दिखने लगी थी।


दुनिया भर को लोकतंत्र का उपदेश देने और यहां तक कि कई बार अन्य देशों में लोकतांत्रिक तौर-तरीकों को थोपने की कोशिश करने वाले अमेरिका में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया के दौरान जैसा उपद्रव संसद के बाहर और भीतर हुआ, वह उसे शर्मसार करने के साथ ही उसकी तमाम कमजोरियों की पोल भी खोलता है। इसमें संदेह नहीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ही अपने उन समर्थकों को उकसाया, जिन्होंने संसद में घुसकर अराजकता फैलाई, लेकिन सवाल है कि आखिर दुनिया के सबसे सशक्त लोकतांत्रिक देश का राष्ट्रपति चुनाव नतीजों को इस तरह अस्वीकार करने में सक्षम कैसे हुआ?


यह संभव हुआ खामियों और जटिलताओं से भरी चुनाव प्रक्रिया के कारण। अब तो अमेरिका को यह समझ आना चाहिए कि उसे अपनी चुनाव प्रणाली को दुरुस्त करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उसे समाज को बांटने वाली राजनीति से तौबा करने की भी आवश्यकता है। यह किसी से छिपा नहीं कि राष्ट्रपति चुनाव के पहले ही अमेरिकी समाज के बीच एक खाई बन गई थी। पुलिस की बेजा सख्ती के खिलाफ अश्वेत समुदाय के आक्रोश प्रदर्शन के दौरान यह साफ दिखने लगी थी। चुनावों के दौरान इस खाई को और चौड़ी करने का ही काम किया गया।

भले ही संसद में हिंसा के बाद ट्रंप ने हथियार डाल दिए हों और शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण के लिए सहमत हो गए हों, लेकिन संसद में जो अनर्थ हुआ, उससे अमेरिका की प्रतिष्ठा को तगड़ी चोट पहुंची है। जब अमेरिका तमाम आंतरिक समस्याओं से घिरा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे चीन की ओर से गंभीर चुनौती मिल रही है, तब सत्ता संभालने जा रहे जो बाइडन की चुनौतियां कहीं अधिक बढ़ने वाली हैं। पता नहीं वह इन चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे, लेकिन अमेरिका में जो कुछ हुआ, उससे उसके साथ-साथ दुनिया को भी सबक सीखने की जरूरत है।

पहला सबक इस बुनियादी बात को समझने का है कि असहमति अराजकता का पर्याय नहीं होती। ट्रंप चुनाव नतीजों से अपनी असहमति को अराजकता की हद तक ले गए। यदि वह चौतरफा निंदा से घिर गए हैं तो इसके लिए अपने अलावा अन्य किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।


ट्रंप के अलोकतांत्रिक रवैये के साथ ही इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि हाल के समय में अमेरिका में कई ऐसे आंदोलन हुए हैं, जिनमें असहमति और अराजकता के बीच का अंतर खत्म होते दिखा है। दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी ऐसे तत्व हैं, जो असहमति के बहाने अराजकता को हवा देने और उसे जायज ठहराने का काम करते रहते हैं। उनसे न केवल सावधान रहना होगा, बल्कि उन्हें हतोत्साहित भी करना होगा।

सौजन्य - दैनिक जागरण।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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