कोरोना संकट से त्रस्त दुनिया को महामारी से उबारने के साथ ही उन उपायों को करने की भी जरूरत है जो भविष्य में किसी भी ऐसी नयी चुनौती से मुकाबले के लिये स्थायी तंत्र उपलब्ध करा सके। सवाल सिर्फ कोरोना का ही नहीं है, भविष्य में आने वाली नयी महामारियों का भी है। मौजूदा संकट से सबक लेकर भविष्य की रणनीति तैयार करने की जरूरत है। बीते रविवार जिनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठक में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम ने दुनिया के देशों से आह्वान किया कि हमें भविष्य की महामारियों के मुकाबले तथा दुनिया को स्वस्थ बनाने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में अधिक से अधिक निवेश करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इतिहास बताता है कि यह पहली महामारी नहीं होगी। महामारी हमारे जीवन का सत्य तथ्य है। उन्होंने कहा कि साल में एक दिन ऐसा होना चाहिए, जिसमें हम भविष्य की महामारियों से निपटने के प्रयासों पर चिंतन करें। निस्संदेह मौजूदा संकट से सबक लेकर हमें भविष्य की रणनीतियां तैयार करनी चाहिए, जिसमें सरकारों व समाज की रचनात्मक भूमिका हो सकती है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि हमारी आने वाली पीढ़ी ऐसी महामारियों का मुकाबला करने में सक्षम बने। बच्चों को एक सुरक्षित दुनिया विरासत में मिले। डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने बताया कि महामारी रोकने और उससे जुड़ी तैयारी के महत्व को रेखांकित करने हेतु वर्ष में एक दिवस जागरूकता के लिये निर्धारित किया गया है, जिसमें मानवता के कल्याण से जुड़े विमर्श में दुनिया के सभी देशों की भागीदारी होगी। इसी मकसद से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी कहा कि दुनिया में सत्रह लाख से अधिक लोगों की मौत के साथ ही दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाएं तबाह हो चुकी हैं, जिसने आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर बनाने की जरूरत बतायी है।
डब्ल्यूएचओ की इस बैठक में कहा गया है कि मौजूदा संकट से मुकाबले के लिये पैसा पानी की तरह बहाने के बजाय स्थायी व दूरगामी नीतियों पर बल दिया जाना चाहिए। एक स्थायी तंत्र विकसित होना चाहिए जो भविष्य की आपदाओं को समय रहते नियंत्रित करने में सहायक हो। निस्संदेह यह अंतिम महामारी नहीं है, भविष्य में ऐसी चुनौतियां नये रूप में हमारे सामने आ सकती हैं। मानव को उन कारकों पर भी विचार करना होगा जो महामारी के विस्तार को आधारभूमि उपलब्ध कराती हैं। यह संकट हमारे लिये चुनौती के साथ एक बड़ा सबक भी है जो हमारे खानपान-जीवन व्यवहार तथा आर्थिक नीतियों के निर्धारण से जुड़े पहलुओं पर प्रकाश डालता है। मनुष्य के साथ ही वन्यजीवों के कल्याण तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के प्रयासों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। दरअसल, इनके प्रभावों से मानव स्वास्थ्य भी जुड़ा है। स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों को समग्र दृष्टि से देखने की जरूरत है। यदि हम सिर्फ एक महामारी पर तमाम पैसा बहा देंगे तो अन्य रोगों से लड़ने की हमारी तैयारी बाधित होगी। इस दौर में दुनिया में अशांति व अस्थिरता से जूझ रहे देशों में महिलाओं व बच्चों के टीकाकरण के कार्यक्रम बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। संकट ने इस लड़ाई को कमजोर किया है। अभी इन इलाकों में कोरोना वैक्सीन लगाने का अभियान भी चलाया जाना है। लंबे समय से भय व असुरक्षा के माहौल में जी रही दुनिया के जीवन को सामान्य बनाने के लिये ऐसे ही रचनात्मक अभियान चलाये जाने की जरूरत है। निस्संदेह कोरोना काल के अनुभव हमें भविष्य की ऐसी चुनौतियों से मुकाबले के लिये आधारभूमि उपलब्ध करायेंगे। विडंबना यह है कि हम एक महामारी के खत्म होते ही ऐसी नयी चुनौती के बारे में सोचना छोड़ देते हैं जो एक अदूरदर्शी सोच है। दरअसल, कोई भी महामारी मनुष्य के स्वास्थ्य, जीवों तथा धरती के अंतरंग रिश्तों के असंतुलन को भी उजागर करती है। कुल मिलाकर प्रकृति से बेहतर रिश्ते बनाने की जरूरत है। यह धरती को रहने लायक बनाने के लिये अनिवार्य शर्त भी है।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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