कोरोना महामारी के प्रसार के लिए विश्व व्यापी आलोचना झेल रही चीन सरकार और आस्ट्रेलिया के बीच चल रही ट्रेड वार का असर भारत सहित दूसरे देशों पर भी पडऩे लगा है। अमरीका ने कोरोना वायरस के प्रसार के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया था तथा इसकी जांच की मांग की थी और आस्ट्रेलिया ने अमरीका के इस कदम का समर्थन किया था जिस पर भड़क कर चीन ने आस्ट्रेलिया पर अनेक व्यापारिक पाबंदियां लगा दी हैं। इन्हीं पाबंदियों के तहत आस्ट्रेलिया और चीन के झगड़े के परिणामस्वरूप चीन ने आस्ट्रेलिया से कोयला लेकर आए ‘एमवी अनास्तासिया’ नामक जहाज को अपनी ‘कैफेडिएन’ बंदरगाह के निकट बीच समुद्र में गत 20 सितम्बर से रोक रखा है।
एक अन्य जहाज ‘एमवी जगआनंद’ को चीन की ‘जींगतांग’ बंदरगाह पर गत वर्ष 13 जून से रोक कर रखा हुआ है। इन दोनों जहाजों के कर्मचारियों में 39 भारतीय नाविक भी शामिल हैं जो उक्त जहाजों के अन्य कर्मचारियों के साथ समुद्र में ही फंसे हुए हैं। न तो चीनी अधिकारी उक्त दोनों जहाजों को बंदरगाहों पर जाने की अनुमति दे रहे हैं, न ही माल उतारने दे रहे हैं और न ही भारतीय नाविकों को अपने घरों को जाने की अनुमति दे रहे हैं। कहा जाता है कि न केवल ये भारतीय नाविक चीन और आस्ट्रेलिया के इस झगड़े में पिस रहे हैं बल्कि चीन इन्हें भारतीय होने के कारण तंग भी कर रहा है क्योंकि इन जहाजों के समुद्र में रोके जाने के बाद भी यहां दूसरे देशों से आने वाले कई जहाज सामान उतार कर चले गए केवल भारतीय नाविकों को ही तट पर आने से रोक रहा है।
हालांकि भारत सरकार ने चीन से अनुरोध किया था कि महीनों से जहाज पर फंसे इन नाविकों को भारत आने की इजाजत दे दी जाए परंतु चीनी अधिकारी कोरोना का बहाना करके इसकी अनुमति नहीं दे रहे परंतु दूसरे देशों के जहाजों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है। हालांकि चीनी अधिकारी भारतीय नाविकों को हर तरह की मदद देने का दावा कर रहे हैं परंतु उनका यह दावा सच्चाई से कोसों दूर है। इन नाविकों को अन्य सुविधाएं देने की बात तो दूर उन्हें तो पीने के लिए स्वच्छ पानी भी नहीं मिल रहा। नाविकों को इतने लम्बे समय तक जहाज पर ही रोके रखना और आवागमन की अनुमति न देने के कारण उनमें मानसिक तनाव बढ़ रहा है और वे अवसाद का शिकार हो रहे हैं।
जहाज पर फंसे भारतीय नाविकों के अनुसार वे बहुत परेशान हैं। उन्हें कहीं से भी कोई सहायता नहीं मिल पा रही है इसलिए अब वह घर वापसी के लिए भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं। एक नाविक ने अपने भेजे संदेश में कहा है कि ‘‘हमें अपने घर जाना है। आप से निवेदन है कि हमारी आवाज सरकार तक पहुंचाइए।’’ भारत ने चीनी अधिकारियों के इस आचरण पर आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव के अनुसार पेइचिंग स्थित भारतीय दूतावास लगातार चीन के संबंधित अधिकारियों से संपर्क बनाए हुए है और उनसे जहाजों को माल उतारने तथा नाविकों को बदलने की अनुमति देने का अनुरोध करता आ रहा है जिसका अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला।
चीन द्वारा भारत का अनुरोध किसी न किसी बहाने टालते जाने के कारण पीड़ित परिवारों में रोष बढ़ रहा है और चीन की नीयत के बारे में संदेह पैदा हो रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दल इस स्थिति को लेकर सरकार से नाविकों को वापस बुलाने की व्यवस्था करने का अनुरोध कर रहे हैं। शिवसेना प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को पत्र लिखकर शिकायत की है कि ‘‘केंद्र सरकार ने 39 नाविकों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया है। नाविकों के परिवार दर-दर भटक रहे हैं और कोई भी उनकी मदद नहीं कर रहा है।’’अत: भारत सरकार को इस संबंध में चीनी अधिकारियों के साथ मजबूती से यह मामला उठाना चाहिए ताकि नाविक सकुशल घर लौट सकें और उनके परिजनों की चिंता समाप्त हो।—विजय कुमार
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‘चीन में फंसे भारतीय नाविकों की’ ‘सुध ले भारत सरकार’ (पंजाब केसरी)
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