पिछले कई दशकों का इतिहास यह बताने के लिए काफी है कि सीमा पर बेवजह तनाव की स्थिति बनाए रखना शायद पाकिस्तान की फितरत में शामिल हो चुका है। हालांकि हर ऐसे मौके पर जब भारत की ओर से उसे मुंहतोड़ जवाब मिलता है तब वह अगले कुछ समय के लिए शांत हो जाता है और विश्व समुदाय के सामने खुद को निर्दोष बताने की कोशिश करता है।
लेकिन पिछले कुछ महीनों से चीन की ओर से भी सीमा पर जिस तरह की बाधाएं खड़ी की जा रही हैं, वह भारत के लिए ज्यादा गंभीर चुनौती है। सही है कि भारत इस तरह के किसी बड़े संकट का भी आसानी से सामना करने के लिए तैयार है और अमूमन हर मौके पर इसने साबित भी किया है, मगर ऐसी परिस्थितियों में अनावश्यक होने वाली उथल-पुथल और परेशानी में ऊर्जा बर्बाद होती है।
दरअसल, पिछले कुछ समय से सीमा पर पाकिस्तान के साथ-साथ चीन ने भी जिस तरह के हालात पैदा कर रखे हैं, उसका कोई वाजिब कारण नहीं है। बल्कि प्रथम दृष्ट्या ही इसके पीछे भारत के प्रति उनका कपट से भरा हुआ बर्ताव दिखता है, जिसके जरिए वे अपनी विस्तारवाद की नीतियों को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
यों अपने कपट और दुराग्रहपूर्ण रवैये के बावजूद उन्हें अब तक इस बात का अंदाजा हो गया होगा कि भारत की ताकत के बारे में उनका अंदाजा किस खोखली बुनियाद पर आधारित है और ठीक समय पर मोर्चे पर उन्हें कैसी चुनौती देखने को मिलती है। इसलिए सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने यह ठीक ही कहा है कि पाकिस्तान और चीन मिल कर देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं।
उनके कपटपूर्ण सोच से होने वाले खतरे को अनदेखा नहीं किया जा सकता, मगर भारतीय सैनिक भी किसी स्थिति से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए बहुत उच्च स्तर की लड़ाकू तैयारी के साथ मोर्चे पर हैं। इसके समांतर यह उम्मीद भी कूटनीति के लिहाज से समय के अनुकूल है कि भारत और चीन परस्पर और समान सुरक्षा के आधार पर सैनिकों की वापसी और तनाव कम करने के लिए एक समझौते पर पहुंच पाएंगे।
गौरतलब है कि पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित कुछ रणनीतिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर कब्जे को लेकर उठे विवाद के बीच सेना ने यह साफ कर दिया है कि वह देश के हितों और लक्ष्यों के अनुरूप पूर्वी लद्दाख में स्थिति कायम रखेगी। दूसरी ओर, पाकिस्तान के साथ लगी सीमा पर अक्सर कैसे हालात पैदा होते रहते हैं, यह जगजाहिर रहा है। खासतौर पर पाकिस्तान स्थित ठिकानों से संचालित आतंकवाद को अघोषित तौर पर राजकीय नीति के एक औजार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है।
इसके अलावा, यह भी ध्यान रखने की जरूरत होगी कि चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य और असैन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ रहा है। पिछले कई दशकों का इतिहास बताता है कि पड़ोस के ये दोनों देश आमतौर पर विश्वास का माहौल बनाने के बजाय किसी नाजुक मौके पर धोखे और कपट का सहारा लेते हैं। यानी भारत को ‘दो मोर्चों’ पर लगातार बने खतरे से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
सौजन्य - जनसत्ता।
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