जे सुशील, स्वतंत्र शोधार्थी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ कांग्रेस में दूसरी बार महाभियोग लगाया गया है. अमेरिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राष्ट्रपति के खिलाफ दो बार महाभियोग लगाया गया हो. दो साल पहले जब उनके विरुद्ध महाभियोग चला था, तब आरोप साबित नहीं हुए थे, लेकिन इस बार उनकी ही रिपब्लिकन पार्टी के कई नेताओं ने महाभियोग चलाने का समर्थन किया है. इस बार उन पर आरोप हैं सशस्र विद्रोह के लिए लोगों को भड़काने का.
यह मामला कुछ दिन पहले कैपिटल हिल में प्रदर्शनकारियों के धावा बोलने से जुड़ा हुआ है, जब राष्ट्रपति ट्रंप के आह्वान पर बड़ी संख्या में लोग कैपिटल हिल में घुस आये थे. कैपिटल हिल यानी अमेरिका का संसद भवन, जहां नवंबर के चुनाव में राष्ट्रपति निर्वाचित हुए जो बाइडेन के चुने जाने पर आधिकारिक मुहर लगनेवाली थी. डोनाल्ड ट्रंप चुनाव के बाद से लगातार कहते रहे हैं कि चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है, जबकि अदालतों और चुनाव से जुड़े अधिकारियों ने धांधली के ऐसे आरोपों को सही नहीं पाया है.
पूरा मामला इतना संगीन है कि कैपिटल हिल पर हमले को लेकर कई गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और सौ से अधिक लोगों की खोज की जा रही है. इन पर हमले में शामिल होने के आरोप हैं तथा घटना के वीडियो और तस्वीरों के आधार पर इनकी पहचान करने की कोशिश चल रही है. इस मामले में कैपिटल हिल की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले दो अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है. ट्रंप प्रशासन से भी कुछ लोगों ने अपना असंतोष व्यक्त करते हुए त्यागपत्र दिया है. अमेरिकी राजनेताओं का एक तबका चाहता है कि इस मामले में ट्रंप को छोड़ा न जाये और उन्हें सजा मिले, लेकिन यह कैसे संभव हो पायेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है.
महाभियोग की प्रक्रिया से पहले प्रतिनिधि सभा में डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्यों ने यह कोशिश भी की थी कि संविधान का 25वां संशोधन लागू हो, जिसके एक प्रावधान के तहत उपराष्ट्रपति चाहे, तो राष्ट्रपति के अधिकार अपने हाथ में ले सकता है. उस स्थिति में यह माना जाता है कि राष्ट्रपति अपने दायित्व को निभाने में सक्षम नहीं हैं. हालांकि इस बारे में प्रतिनिधि सभा में मतदान के बावजूद उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने ऐसा फैसला करने से इनकार कर दिया. इसके बाद ही महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया, जो अब पारित हो गया है.
महाभियोग के प्रस्ताव पर बहस और वोटिंग अगले हफ्ते ही संभव है और अगले हफ्ते ट्रंप का कार्यकाल भी खत्म हो जायेगा. इसका सीधा मतलब यह है कि ट्रंप को महाभियोग के तहत पद से हटाया नहीं जा सकता है. वे राष्ट्रपति पद से बीस जनवरी को ऐसे भी हट ही जायेंगे क्योंकि उनका कार्यकाल खत्म हो जायेगा.
लेकिन उनके पद से हटने के बाद भी महाभियोग के प्रस्ताव पर बहस होगी और वोटिंग भी. इस वोटिंग में उम्मीद की जा रही है कि सीनेट के कुछ रिपब्लिकन सदस्य भी ट्रंप को दोषी साबित करने के लिए वोट देंगे. महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के लिए सीनेट में दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है. अगर प्रस्ताव पारित भी हो जाता है तो ट्रंप को पद से हटाना संभव नहीं होगा, लेकिन ये जरूर संभव होगा कि वो आगे किसी भी पद पर नियुक्त नहीं हो सकेंगे.
इसके पीछे यह तर्क भी दिया जा रहा है कि महाभियोग साबित होने पर ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से भी हटाये जायेंगे और वे अगली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव नहीं लड़ पायेंगे. उधर इस समय ट्रंप क्या सोच रहे हैं, यह पहले उनके ट्विटर हैंडल से पता चलता था, जहां वे लगातार ट्वीट करते रहते थे. लेकिन अब ट्रंप को न केवल ट्विटर ने, बल्कि फेसबुक और यूट्यूब ने भी प्रतिबंधित कर दिया है. यह भी सोशल मीडिया में पहली बार हुआ है कि किसी देश के राष्ट्रपति को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया हो.
महाभियोग से पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस के जरिये बयान जारी कर लोगों से अपील की है कि वे किसी भी तरह की हिंसा न करें. यह बयान इस संदर्भ में देखा जा सकता है कि फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआइ) ने देश के कई राज्यों की संसद पर चढ़ाई किये जाने की आशंका जतायी थी. राजधानी वाशिंगटन अभी भी सुरक्षा के मामले में हाई अलर्ट जैसी स्थिति में ही है, जहां बीस जनवरी को जो बाइडेन राष्ट्रपति पद के लिए शपथ लेनेवाले हैं. बीस जनवरी को राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की सुरक्षा पेंटागन ने अपने हाथ में ले ली है और बताया जाता है कि सुरक्षा के लिए नेशनल गार्ड तैनात किये जायेंगे.
राष्ट्रपति ट्रंप के चार साल के कार्यकाल का अंत जिस तरह से हुआ है, वह किसी भी तरह से एक आदर्श स्थिति तो नहीं कही जा सकती है, पर जो भी हुआ है, उसने कई गंभीर सवाल खड़े किये हैं. मसलन, क्या ट्विटर, फेसबुक या गूगल जैसी कंपनियां किसी राष्ट्राध्यक्ष को अपने प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंधित कर सकती हैं? कॉरपोरेट कंपनियों की ताकत पर एक अलग बहस अमेरिका में छिड़ चुकी है. साथ ही, पारंपरिक मीडिया की भूमिका को लेकर भी कई तरह की बातें हो रही हैं.
ट्विटर के प्रमुख जैक डॉरसी ने एक सीरीज में ट्वीट करते हुए न केवल ट्रंप पर पाबंदी लगाने के फैसले को सही बताया है, बल्कि यह भी कहा है कि इस तरह का फैसला लेना कंपनी के लिए अत्यंत कठिन था. जैक के अनुसार, ऐसा फैसला यह भी दर्शाता है कि एक प्लेटफॉर्म के तौर पर ट्विटर समाज में एक स्वस्थ बहस लाने में सफल नहीं रहा है.
दूसरी तरफ, फेसबुक ने ऐसी किसी नैतिक बहस से खुद को दूर रखते हुए कंपनी में सिविल राइट के लिए एक वाइस प्रेसिडेंट नियुक्त किया है. फेसबुक के इस कदम को कंपनी को नयी सरकार के किसी कठोर फैसले से बचने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है. कई डेमोक्रेट सांसद लगातार फेसबुक की आलोचना करते रहे हैं कि वह गोरे राष्ट्रवादियों को अपनी गलतबयानी और फेक न्यूज फैलाने का मंच देता रहा है.
ट्रंप के कार्यकाल से कई और नैतिक सवाल भी खड़े हुए हैं कि अमेरिका आखिर किसका है. क्या यह गोरे राष्ट्रवादियों का देश है या फिर जैसा कि लगातार एक बड़ा तबका कहता रहा है कि अमेरिका प्रवासियों का देश है, जहां लंबे समय तक दूसरे देशों के लोग आते रहे और अपना भविष्य बनाते रहे. नये राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने कोविड, बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था के सवालों को छोड़कर अमेरिका के उच्च नैतिक आदर्शों को भी पुनर्स्थापित करने की चुनौती होगी.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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