‘देश की सेना का तनाव दूर करने के लिए’ ‘तुरंत कदम उठाने की जरूरत’ (पंजाब केसरी)

1 अप्रैल, 1895 को अस्तित्व में आई भारतीय सेना आज विश्व की सबसे बड़ी सेना बन चुकी है जिसने कई युद्धों में अपनी वीरता के झंडे गाड़े तथा विश्व के अनेक भागों में राहत और बचाव अभियानों में सफलतापूर्वक भाग लिया ....

1 अप्रैल, 1895 को अस्तित्व में आई भारतीय सेना आज विश्व की सबसे बड़ी सेना बन चुकी है जिसने कई युद्धों में अपनी वीरता के झंडे गाड़े तथा विश्व के अनेक भागों में राहत और बचाव अभियानों में सफलतापूर्वक भाग लिया है।

1971 में बंगलादेश को पाकिस्तान के चंगुल से आजाद करवाने और 1988 में मालदीव सरकार का राजनीतिक संकट सुलझाने में भारतीय सेना ने सहायता की थी जो ‘आप्रेशन कैक्टस’ के नाम से इतिहास में दर्ज है। परंतु अपनी वीरता से भारत को विश्वव्यापी प्रतिष्ठा दिलाने वाली हमारी सेना के जवानों के तनाव में पिछले दो दशकों के दौरान भारी वृद्धि हुई है। इस कारण प्रतिवर्ष भारतीय सेना आत्महत्याओं तथा अन्य असुखद कारणों से अपने जांबाज सैनिकों से हाथ धो रही है। 

पिछले कुछ वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों से आई खबरों के अनुसार भारतीय सेना में ‘क्वालिटी आफ लाइफ’ अच्छी नहीं रही जिस कारण सेना के जवान तनाव और नकारात्मकता के शिकार हो रहे हैं। हाल ही में रक्षा मंत्रालय के सबसे बड़े ‘थिंक टैंक’ (‘द युनाईटेड सर्विस इंस्टीच्यूशन आफ इंडिया’) ने भारतीय सेना में तनाव पर एक वर्ष के अनुसंधान के बाद जारी अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन किए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस समय भारतीय सेना के आधे से अधिक जवान मुख्यत: आतंकवाद ग्रस्त क्षेत्रों में लम्बी तैनाती तथा कार्य संबंधी अन्य समस्याओं के कारण गंभीर तनाव के शिकार हैं। सर्वाधिक चिंताजनक बात यह है कि यह तनाव अधिकांशत: वरिष्ठ अधिकारियों के व्यवहार के कारण पैदा हो रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार : ‘‘तनाव का सबसे बड़ा कारण जवानों को जरूरत के समय पर छुट्टी न मिलना या देर से मिलना, काम ज्यादा और आराम कम, घरेलू परेशानियां, वरिष्ठ सेनाधिकारियों से कम संवाद और उनकी समस्याओं के प्रति उनका उपेक्षापूर्ण रवैया, उन्हें परेशान करना, अपेक्षित सम्मान न मिलना, मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर अनुचित प्रतिबंध तथा मनोरंजन की सुविधाओं का अभाव आदि है।’’‘‘स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, अपर्याप्त रेल रिजर्वेशन, प्रशासन से पर्याप्त सहायता न मिलना, वित्तीय समस्याएं, परिवार से लम्बी दूरी, फील्ड एरिया में रहने की पर्याप्त जगह का न होना, वरिष्ठ अधिकारियों का दुव्र्यवहार, पदोन्नतियों में पारदर्शिता का अभाव, वित्तीय दावों के भुगतान में देरी, घटिया राशन आदि भी तनाव का कारण बन रहे हैं।’’ 

‘‘यही नहीं सैनिकों की पत्नियों के कल्याण के लिए गठित ‘आर्मी वाइव्स वैल्फेयर एसोसिएशन’ (ए.डब्ल्यू.डब्ल्यू.ए.) के कार्यक्रमों में लम्बी ड्यूटी देते समय या दूसरे मौकों पर हाजिरी देने के दौरान अकारण लम्बे समय तक खड़े रहना आदि भी जवानों और जे.सी.ओ. को तनाव दे रहा है।’’ इसी अनुसंधान के अनुसार युवा अधिकारियों में तनाव का सबसे बड़ा कारण वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उन पर अनावश्यक काम का बोझ डालना और उन्हें फिजूल के कामों में लगाना, उन्हें दिए गए किसी काम को असंभव रूप से कम समय में पूरा करने का दबाव और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा ढुलमुल फैसले लेने की प्रवृत्ति है। 

कर्नल (रिटा.) गुरुराज गोपीनाथ ने गत वर्ष अक्तूबर में कहा था कि : ‘‘30 से 40 वर्ष के सेनाधिकारियों की प्रतिक्रियाओं संबंधी एक रिपोर्ट के अनुसार 87 प्रतिशत अधिकारियों ने बताया कि वे काम के दबाव के चलते छुट्टी नहीं ले पाते, 85 प्रतिशत ने कहा कि खाना खाते समय भी उन्हें सरकारी फोन का जवाब देना पड़ता है, 73 प्रतिशत ने कहा कि यदि वे छुट्टी ले भी लें तो उन्हें काम के कारण बुला लिया जाता है और 63 प्रतिशत का कहना था कि काम के चलते उनका वैवाहिक जीवन प्रभावित हुआ है।’’अत: हमारी सेना के जवानों में नकारात्मकता की भावना पैदा करने वाले कारणों को दूर करने की जरूरत है ताकि देश की शौर्य पताका फहराने वाले हमारे वीरों पर आंच न आए। वे खुश और उनके परिवार खुशहाल रहें और वे देश की सरहदों तथा देशवासियों की पूरी ताकत के साथ रक्षा करने में समर्थ हों।—विजय कुमार

सौजन्य - पंजाब केसरी।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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