सबसे गर्म साल (नवभारत टाइम्स)

साल 2020 का 2016 के साथ संयुक्त रूप से ज्ञात इतिहास में दुनिया के सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज होना एकबारगी चौंका देता है। पहली बात तो यह कि साल 2016 अल नीनो इफेक्ट के लिए चर्चा में रहा था जो वातावरण में गर्मी बढ़ाता है। इसके उलट साल 2020 में ला नीना इफेक्ट रहा जिसे अल नीनो के उलट दुनिया को ठंडी करने वाली परिघटना कहा जा सकता है। इससे भी बड़ी बात यह है कि 2020 में कोरोना वायरस ने ऐसा तहलका मचाया कि मानव समाज के सारे चक्के जैसे एकाएक थम गए।

लॉकडाउन के चलते तमाम लोग अपने घरों में बंद हो गए और हवाई जहाज, गाड़ी, मोटर आदि से लेकर फैक्ट्रियों की मशीनें तक जाम हो गईं। इसका नतीजा इस रूप में सामने आया कि आसमान साफ नजर आने लगा, हवा में प्रदूषण का स्तर नीचे चला गया, नदियों में गंदगी कम दर्ज की गई और मनुष्यों से इतर बाकी सारे जीव ज्यादा चैन और सुकून से घूमने लगे। यह स्थिति साल के तीन चौथाई हिस्से में व्याप्त रही, जिससे यह नतीजा निकालना स्वाभाविक था कि कार्बन उत्सर्जन में कमी के कारण कम से कम ग्लोबल वॉर्मिंग की दृष्टि से यह साल आदर्श माना जाएगा।

इन अनुमानों के विपरीत 2020 का सबसे गर्म साल साबित होना इस मायने में निराश करता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था ठप होने के बावजूद ग्लोबल वॉर्मिंग के मोर्चे पर हम कुछ हासिल नहीं कर पाए। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की प्रक्रिया को यहां तक लाने में भले मनुष्य समाज का सीधा हाथ रहा हो, पर अब यह इतनी जटिल हो चुकी है कि हम चाहकर भी इसपर सीधा नियंत्रण नहीं बना सकते। ऐसी ग्रह-स्तरीय समस्याओं से निपटने के लिए इंसानी समाज के लिए जैसा आचरण जरूरी बताया जा रहा था, अनिच्छा से ही सही पर पिछले साल हमने उसे अपने ऊपर लागू किया। इसके बावजूद हालात बिगड़ते गए।

आर्कटिक के कुछ हिस्सों और उत्तरी साइबेरिया में इस साल तापमान में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया। पश्चिमी साइबेरिया क्षेत्र में भी ठंड और बसंत अस्वाभाविक रूप से गर्म रहे। सबसे बड़ी बात यह कि जंगलों की आग ने आर्कटिक क्षेत्र में इस साल कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखाई। आर्कटिक सर्कल और नॉर्थ पोल के बीच वाइल्डफायर की वजह से 2020 में 244 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड निकली जो 2019 के मुकाबले 33 फीसदी ज्यादा है।

कुल मिलाकर इसका मतलब यह कि पर्यावरण विनाश की ओर बढ़ती मानव सभ्यता के कदमों पर ब्रेक लगाने की क्षमता भी अब हमारे पास नहीं बची है। साफ है कि सुधार के लिए अंतिम पलों का इंतजार आत्मघाती होगा। हमें ग्लोबल वॉर्मिंग की रफ्तार घटाने के हर संभव प्रयास अभी से और लगातार जारी रखने होंगे ताकि हमारे ग्रह का असंतुलित पर्यावरण इस सदी के बीतने से पहले अपना संतुलन वापस पा ले।

सौजन्य - नवभारत टाइम्स। 

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment