उम्मीदों का सवेरा ( दैनिक ट्रिब्यून)

फिर एक नये साल ने दस्तक दी है। यह समय का अनवरत चक्र है। महत्वपूर्ण यह है कि हमने बीते वक्त में विषम परिस्थितियों का कितने आत्मविश्वास के साथ मुकाबला किया और उनसे क्या सीखा। निस्संदेह, एक सदी के बाद दुनिया पर कहर बरपाती महामारी ने विकास का पहिया थाम दिया। जीवन पर संकट बड़ा था लेकिन इस संकट ने हमें जीवनशैली की विसंगतियों और कुदरत से इनसानी रिश्तों पर पुनर्विचार करने का अवसर भी दिया। यह भी बताया कि परमाणु शक्ति संपन्न और अंतरिक्ष विजय का दंभ पाले देशों को एक अदृश्य विषाणु ने लाचार कर दिया। महाशक्ति का दंभ भरने वाले देश इस विषाणु हमले में घुटनों पर आ गये लेकिन संकट के बाद ही नयी संरचना सामने आती है। जीवन की नयी कोंपलें उगती हैं। संकटों में तपकर इनसान मजबूत होता है। लेकिन इस संकट ने हमें हमारे खानपान, रहन-सहन और सामाजिक व्यवहार के कृत्रिम रूप का अहसास कराया। यह अहसास कराया कि बड़ी कोठी-बंगले और बड़ी-बड़ी कारों से बढ़कर जीवन में कुछ और भी महत्वपूर्ण है। यह भी कि जब सेहत का धन होता है तो बाकी धन बेकार हो जाते हैं। इस संकट में धनाढ्य लोग भी लाचार नजर आये। हमें इस मुश्किल समय को एक सबक के रूप में लेना चाहिए। पारिवारिक संस्था के महत्व को समझना चाहिए। हमें अपनी आवश्यकताओं की प्राथमिकता के बारे में सोचना चाहिए। इस दौरान विलासिता की चीजें और बाह्य आडंबर के तमाम साधन महज कागज के फूल ही साबित हुए। हमारी जीवनशैली से हासिल प्रतिरक्षा क्षमता ही मददगार बनी। इस चुनौती ने हमें बचत की महत्ता बतायी। यह बताया कि कैसे संकट के समय खून के रिश्ते भी विमुख हो जाते हैं और कैसे  अनजान व बेगाने लोग तारणहार बन जाते हैं। यह भी कि मुश्किल वक्त में अपना घर ही सब कुछ होता है। दशकों बाद यह समय आया जब परिवार के लोग सबसे अधिक समय साथ रह सके। एक-दूसरे को समझ सके।


ऐसा भी नहीं है कि यह संकट अंतिम है। आने वाले समय में हमें कई ऐसी चुनौतियों के लिये तैयार रहना चाहिए। यह संकट सरकारों के लिये भी सबक है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनायें। वहीं व्यक्ति के लिये सबक है कि जितना हो सके, प्रकृति के सान्निध्य में अपनी जीवनशैली विकसित करे। इस संकट में जब आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था असहाय नजर आई तो भारत की परंपरागत चिकित्सा प्रणाली जीवनदायिनी साबित हुई। योग और आयुर्वेद हमारा सुरक्षा कवच बना।  हमारी रसोई दवाखाना बनी। कैलेंडर का बदलना यह संदेश देता है कि बीते सबकों के आलोक में नये जीवन की शुरुआत की जाये। नये संकल्पों को हकीकत में बदलने का प्रयास करें। बीते वक्त पर मंथन करें और नये लक्ष्य निर्धारित करें। यह जानते हुए कि हर समय एक जैसा नहीं रहता। पहले वाला समय नहीं रहा तो यह भी नहीं रहेगा। कुदरत अपनी चाल चलती रहेगी। संकट पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है बल्कि नये रूप में चुनौती दे रहा है। कुछ चीजें तो हमारे जीवन में हमेशा के लिये बदल जायेंगी। जिसे नये सिरे से सामान्य कहकर परिभाषित किया जायेगा। कुछ वर्जनाएं कुछ आने वाले वर्षों तक जीवन का हिस्सा बनी रहेंगी। जरूरत इस बात की होगी कि हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक रहे। जीवन में उल्लास व उमंग का अभाव न हो। कुछ बंदिशें हों मगर तीज-त्योहारों के देश में पर्व का उल्लास कम न हो। यह हमारी सोच पर निर्भर करता है। यदि हम हर परिस्थिति में सकारात्मक रहते हैं तो समस्या का समाधान भी जल्दी हो जाता है। संकट मनुष्य को मनुष्यता के दायित्वों का भी अहसास करा गया है। समाज के अंतिम व्यक्ति के अहसासों से जुड़ने के लिये प्रेरित कर गया है। मनुष्य व प्रकृति के रिश्तों को नये सिरे से परिभाषित करने का संदेश दे गया है कि प्रकृति के रौद्र के सामने आज भी इनसान बौना है। कुदरत से सामंजस्य व वन्यजीवों का संरक्षण हमारे सुखद जीवन की आधारशिला है। 

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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