विभिन्न आर्थिक सूचकांकों में लगातार बेहतरी से इंगित होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के भंवर से बाहर निकल चुकी है. महामारी रोकने के लिए लगे लॉकडाउन की वजह से चालू वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों- अप्रैल से जून तथा जुलाई से सितंबर- में आर्थिक वृद्धि ॠणात्मक रही थी.
यदि लगातार दो तिमाही में वृद्धि दर नकारात्मक रहती है, तो तकनीकी आधार पर इसे मंदी का दौर कहा जाता है. लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों के धीरे-धीरे हटने के साथ औद्योगिक और कारोबारी गतिविधियों में तेजी की वजह से अक्तूबर से दिसंबर के बीच अर्थव्यवस्था में धनात्मक बढ़ोतरी होने की पूरी उम्मीद है. आकलनों की मानें, तो 2020 के अंतिम तीन महीनों में सकल घरेलू उत्पादन की वृद्धि दर में 2019 की इस अवधि की तुलना में 0.5 प्रतिशत की बढ़त हो सकती है. शुक्रवार को तीसरी तिमाही के आंकड़े आनेवाले हैं. अर्थव्यवस्था में सुधार की इस उम्मीद का एक अहम आधार यह है कि जनवरी में लगभग सभी क्षेत्रों में बढ़ोतरी हुई है.
सेवा क्षेत्र में लगातार चौथे महीने विस्तार हुआ है. बिक्री और निर्यात में वृद्धि से निर्माण व उत्पादन में तेजी आयी है. आर्थिक गतिविधियों में बढ़त की वजह से रोजगार बढ़ने के संकेत भी स्पष्ट हैं. रोजगार और आमदनी का सीधा संबंध मांग बढ़ने से है. उल्लेखनीय है कि बीते साल अर्थव्यवस्था को अधिक मुद्रास्फीति से भी जूझना पड़ा है. मांग, उत्पादन और आमदनी के गतिशील होने से मुद्रास्फीति के भी स्थिर होने की आशा है. यात्री वाहनों की बिक्री मांग का महत्वपूर्ण सूचक होती है. इस साल जनवरी में पिछले साल जनवरी की तुलना में इसमें 11.4 प्रतिशत की बढ़त हुई है.
इस वर्ष कृषि उपज में रिकॉर्ड बढ़ोतरी से खाद्यान्न मुद्रास्फीति में कमी हो रही है. महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को सहारा देने तथा लोगों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार ने लगातार पैकेज दिया था. आगामी बजट प्रस्ताव में भी आर्थिकी के विस्तार के प्रावधानों से उद्योग जगत और बाजार में भरोसे का संचार हुआ है. पिछले साल कृषि उत्पादों के निर्यात ने जहां अर्थव्यवस्था को आधार दिया था, वहीं इस वर्ष जनवरी में इंजीनियरिंग वस्तुओं, कीमती पत्थर, लौह अयस्क, आभूषण और कपड़ा के निर्यात में तेजी आयी है.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी विश्वास व्यक्त किया है कि अर्थव्यवस्था विकास के अहम मोड़ पर खड़ी है. फरवरी में हुए रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण में उपभोक्ताओं ने नवंबर के सर्वेक्षण की तुलना में वर्तमान स्थिति को बेहतर माना है तथा उन्हें आशा है कि आगामी वित्त वर्ष भी अच्छा होगा. उपभोक्ताओं का भरोसा आर्थिक वृद्धि के लिए बेहद अहम है क्योंकि इसी आधार पर वे खरीदारी और निवेश करते हैं. अर्थव्यवस्था के भविष्य में भरोसा होने की वजह से ही शेयर बाजार में भी तेजी है. हालांकि वृद्धि दर के पहले की तरह गतिशील होने में समय लग सकता है, पर मौजूदा रुझान आगे लिए आश्वस्त करते हैं.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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