होम लोन की ब्याज दर घटकर 15 साल के निचले स्तर पर, क्या मंदी से उबर पाएगा रियल एस्टेट? (अमर उजाला)

नारायण कृष्णमूर्ति  

घर की खोज करते समय घर खरीदार सबसे ज्यादा विचार होम लोन की ब्याज दर पर करते हैं। पिछले एक साल में होम लोन की ब्याज दर घटकर 15 साल के निचले स्तर 6.6 फीसदी पर पहुंच गई है। ऐसी कम दरों पर, एक आकस्मिक पर्यवेक्षक के लिए भी होम लोन की ब्याज दरें आकर्षक लगती हैं। इसलिए घर खरीदने के इच्छुक लोगों के लिए कम ब्याज दर से लाभ उठाने का यह अच्छा समय हो सकता है। इसके अलावा प्रतिस्पर्धी बैंक और एचएफसी (हाउसिंग फाइनांस कॉरपोरेशंस) कर्ज लेने वालों को प्रोत्साहन की भी पेशकश करते हैं। उदाहरण के लिए, ऑनलाइन आवेदन करने वालों, पहली बार कर्ज लेने वालों और किफायती घर खरीदने वालों के लिए अतिरिक्त छूट की रणनीति अपनाई जाती है। हालांकि हम कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में अभूतपूर्व समय में जी रहे हैं, जिसने लोगों की आजीविका और वेतन को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसलिए कम ब्याज दरों का लाभ उठाने से पहले अपने सपनों के घर के लिए आंख मूंद कर कर्ज लेने से पहले संभावनाओं पर विचार करें। 



आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा अपनाई जा रही मौद्रिक नीतियों की बदौलत ब्याज दरें ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंच गई हैं और बचतकर्ताओं और पेंशनभोगियों के लिए भी सामान्य रूप से ब्याज दरें घट रही हैं। क्या यह दर और नीचे जाएगी? इसकी संभावना नहीं है, क्योंकि बढ़ती खुदरा मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक की बेंचमार्क ब्याज दर में कटौती करने की क्षमता को प्रभावित करेगी, यह देखते हुए कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति को लगभग चार प्रतिशत रखने का आदेश दिया गया है। इसलिए अगर आपने 15 साल की अवधि के लिए 30 लाख रुपये का होम लोन लिया है, तो नौ फीसदी ब्याज दर पर ईएमआई 30,500 रुपये होगी। यदि अन्य चीजें समान रहती हैं, तो आपकी ईएमआई वार्षिक 6.75 प्रतिशत की ब्याज दर पर लगभग 26,500 रुपये होगी। कुछ लोगों को 4,000 रुपये ज्यादा नहीं लग सकते हैं, लेकिन 15 साल की अवधि को देखते हुए यह उच्च ईएमआई की तुलना में लगभग 14 फीसदी बचत है। पर इसकी गारंटी नहीं है कि यह ब्याज दर ऋण की पूरी अवधि तक रहेगी, क्योंकि जब बेस रेट बढ़ना शुरू हो जाएगा, तो यह ब्याज दर भी बदल सकती है।



पुराने उधारकर्ता इस निम्न ब्याज दर से लाभ नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि उनके ऋणों को फंड-आधारित उधार दर की सीमांत लागत (एमसीएलआर) के लिए बेंचमार्क किया गया था, जबकि नए ऋण पर ब्याज दरें एक्सटर्नल बेंचमार्क पर आधारित हैं, जो रेपो रेट है। घर केवल तभी खरीदें, जब आपको इसकी जरूरत हो और उसका कर्ज चुकाने की क्षमता हो। केवल उतना ही कर्ज लें, जितना आप चुका सकते हों और निश्चित रूप से सिर्फ इसलिए घर खरीदने के लिए अपना बजट न बढ़ाएं कि होम लोन सस्ता है। उदाहरण के लिए, इसी मामले में चूंकि आज आपको लगता है कि आप 30,500 रुपये ईएमआई का भुगतान कर सकते हैं, आपको अपना कर्ज नहीं बढ़ाना चाहिए, बल्कि इसके बदले कम उधार लेकर कम ईएमआई का लाभ उठाएं या शुरुआती वर्षों में अतिरिक्त उधार चुकाकर कर्ज ली गई पूंजी में कमी कर सकते हैं।


ये सलाह आपको उबाऊ लग सकती हैं, लेकिन उन कर्जदारों की दुर्दशा के बारे में सोचिए, जिन्होंने 2020 में लॉकडाउन के कारण वित्तीय कठिनाइयों का सामना किया और जो होम लोन की ईएमआई नहीं चुका सके। ऐसी स्थिति फिर से हो सकती है, यदि अर्थव्यवस्था अपेक्षित रूप से आगे नहीं बढ़ती है और वेतन बढ़ोतरी नहीं होती अथवा उसमें और कटौती हो जाती है। ऐसी परिस्थिति का सामना करने के बजाय, जहां ऋण चुकाना चुनौती है, आप अपने हित का ध्यान रखें। जैसे, आप इस तरह का घर खरीदें, जो रेडी टू मूव हो, ऐसा घर नहीं खरीदें, जिसमें आपको ईएमआई के साथ किराये का भी भुगतान करना पड़े। पुराने एमसीएलआर व्यवस्था के तहत कर्ज लेने वाले उधारकर्ता के लिए उससे बाहर निकलने का शुल्क चुकाकर नई ब्याज दरों में बदलाव करना समझदारी हो सकती है, जब तक लागत लाभ विश्लेषण ऐसा कदम उठाने के लिए उनके हित में होता है। लागत लाभ का मूल्यांकन किए बिना आंख मूंद कर एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में बदलाव नहीं करें और निश्चित रूप से ऐसा करना आपके कर्ज चुकाने की अवधि में विस्तार न करता हो। होम लोन स्वाभाविक रूप से संपत्ति निर्माण है, लेकिन हाल के दिनों में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां चार-पांच साल की अवधि में किसी घर की कीमत नहीं बढ़ी है और सर्किल रेट भी कुछ इलाकों में घटी है। निश्चित रूप से घर की कीमत में उच्च वृद्धि अब अतीत की बात है, भविष्य में आवासीय अचल संपत्ति की कीमतों में भारी वृद्धि देखने की संभावना नहीं है। आवासीय रियल एस्टेट क्षेत्र में सुस्ती का अर्थव्यवस्था पर भी काफी असर पड़ता है, क्योंकि रियल एस्टेट एक ऐसा क्षेत्र है, जो संगठित एवं असंगठित दोनों क्षेत्रों में रोजगार देता है। इससे संबंधित क्षेत्रों के बारे में सोचें, जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर, सीमेंट, पेंट, स्टील फिक्सर्स, पाइप, बिजली के सामान आदि। 


कुछ वर्षों से रियल एस्टेट में मंदी के कारण बड़े शहरों में कई मकान बिना बिके हुए पड़े हैं, इसके साथ-साथ कई परियोजनाएं विभिन्न चरणों में अपूर्ण हैं। रियल स्टेट टैक्स और अन्य माध्यमों (बिजली, पानी व अन्य सुविधाएं) से सरकार को राजस्व प्रदान करता है। इसके अलावा, रियल एस्टेट के विकास से इलाके में स्कूलों, अस्पतालों और अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों का विकास होता है, जो अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाता है। इसलिए रियल एस्टेट में किसी भी मंदी का आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इससे मौजूदा ब्याज दर और अन्य आर्थिक कारकों पर भी असर पड़ता है। फिर से कम ब्याज दर पर लौटें, तो वर्ष 2016 के बीच जब  एक वर्ष का एसबीआई एमसीएलआर 9.15 फीसदी था, जो 2017 में घटकर 8 फीसदी रह गया और 2019 में 8.4 फीसदी तक बढ़ गया, और अब केवल 7 फीसदी से कम है। एक उधारकर्ता के रूप में यह ध्यान रखें कि गिरती ब्याज दरों का रुझान स्थायी नहीं है; अर्थव्यवस्था में बदलाव में कुछ ही तिमाहियों का समय लगता है, जिससे ब्याज दरों के रुझान में बदलाव हो जाता है और मूल्य में वृद्धि हो जाती है। 

सौजन्य - अमर उजाला।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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