इन दिनों देश में भारी राजनीतिक उथल-पुथल का दौर चल रहा है और सभी पार्टियों के साथ जुड़े नेताओं की अपने शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी के कारण दल-बदली का खेल लगातार जारी है जिसके उदाहरण निम्र में दर्ज हैं :
* 12 मार्च को केरल कांग्रेस के महासचिव विजयन थामस विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। विजयन ने पार्टी नेतृत्व की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘उन्हें पता ही नहीं है कि क्या हो रहा है।’’
* 17 मार्च को जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को बड़ा झटका लगा जब उनकी ‘पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी’ (पी.डी.पी.) के संस्थापक-सदस्यों में से एक तथा पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर बेग एवं उनकी पत्नी सफीना बेग अपने समर्थकों के साथ ‘पीपुल्स कांफ्रैंस’ में शामिल हो गए।
मुजफ्फर बेग ने अपना राजनीतिक जीवन 80 के दशक में ‘पीपुल्स कांफ्रैंस’ के साथ ही शुरू किया था। वह पार्टी के संस्थापक अब्दुल गनी लोन के काफी निकट थे जिनकी 21 मई, 2002 को श्रीनगर के पुराने शहर की ईदगाह में आतंकवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। मुजफ्फर बेग ने 1999 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ मिल कर ‘पी.डी.पी.’ की नींव रखने के लिए ‘पीपुल्स कांफ्रैंस’ को अलविदा कह दिया था परंतु पी.डी.पी. में हो रही उपेक्षा के कारण उन्होंने इसे अलविदा कह कर अपनी पुरानी पार्टी में ‘घर वापसी’ करना ही उचित समझा।
* 17 मार्च के ही दिन पी.डी.पी. के राज्य महासचिव सुरेंद्र चौधरी ने पार्टी के महासचिव पद व राजनीतिक मामलों की कमेटी से त्यागपत्र दे दिया।
* 17 मार्च को तेलंगाना में कांग्रेस के पूर्व लोकसभा सांसद कोंडा विश्वेश्वर रैड्डी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अपनी बात न सुने जाने के विरुद्ध रोष स्वरूप पार्टी छोड़ दी। उन्होंने कहा कि जो काम वह पार्टी में रह कर न कर सके, अब अपने समर्थकों के साथ खुद का एक नया राजनीतिक दल बना कर उसे पूरा करने का प्रयास करेंगे।
* 17 मार्च को एक झटका भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र के जलगांव में लगा जहां जलगांव नगर पालिका में भाजपा के 27 निगम पार्षद पाला बदलकर शिवसेना में शामिल हो गए।
* 19 मार्च को चुनावी राज्य असम के ‘नागाओ’ जिले में पूर्व मंत्री ‘अरधेंदु कुमार डे’ के नेतृत्व में 2000 कांग्रेस वर्कर पार्टी से त्यागपत्र देकर भाजपा में चले गए। इससे पहले पूर्व विधायक ‘दुर्लभ चामुआ’ भी कांग्रेस को छोड़ कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं।
* 20 मार्च को आरिफ अमीन, फैजान इलाही, अमान जरगर तथा रियाज वानी सहित पी.डी.पी. के अनेक युवा नेता इसे अलविदा कह कर ‘पीपुल्स कांफ्रैंस’ में शामिल हो गए।
* 21 मार्च को पी.डी.पी. के वरिष्ठ नेता तथा विधान परिषद के पूर्व सदस्य खुर्शीद आलम तथा एक अन्य नेता यासिर रेशी ने पी.डी.पी. से त्यागपत्र दे दिया। खुर्शीद आलम ने अपने बयान में कहा, ‘‘पार्टी में मेरा दम घुट रहा था, हम लोग मुख्यधारा के राजनीतिज्ञ हैं, पृथकतावादी नहीं।’’
* 22 मार्च को अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के पूर्व महासचिव हरविंद्र सिंह कांग्रेस छोड़कर अपने साथियों सहित भाजपा में शामिल हो गए।
* और अब 24 मार्च को विधान परिषद के पूर्व सदस्य बी.आर. कुंडल ने यह कहते हुए ‘नैशनल कांफ्रैंस’ से त्यागपत्र दे दिया कि पार्टी में किसी ने उनकी सेवाओं का लाभ उठाने की कोशिश ही नहीं की।
उन्होंने यह भी कहा कि जब वह ‘नैशनल कांफ्रैंस’ में शामिल हुए थे तो फारुक अब्दुल्ला ने उन्हें जम्मू-पुंछ संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाने की बात कही थी लेकिन यह सीट बाद में किसी और को दे दी गई। पुराने जमाने में जहां राजनीतिज्ञ सिद्धांतों पर आधारित राजनीति करते थे, इसके विपरीत आज राजनीतिज्ञों का एकमात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्ति ही रह गया है। इसके अलावा अपनी मूल पार्टी से नाराजगी का एक कारण पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उनकी उपेक्षा करना और पार्टी में उनकी बात न सुनना भी है। अत: राजनीतिक पार्टियों के नेतृत्व का कत्र्तव्य है कि वे यह बात सुनिश्चित करें कि पार्टी में वर्करों की अनदेखी न हो और उनकी आवाज सुनी जाए तभी दल-बदली रुकेगी और राजनीतिक पार्टियों में सच्चा लोकतंत्र आएगा।
राजनीतिज्ञों को भी चाहिए कि जिस पार्टी में उन्होंने अपना स्थान बनाया है उसे छोडऩे की बजाय उसी में रह कर संघर्ष करें क्योंकि दूसरी पार्टी में जाने से उस पार्टी के साथ पहले से जुड़े लोग उनकी आसानी से जगह नहीं बनने देते। लिहाजा दूसरी पार्टी में उपेक्षित महसूस करने पर व्यक्ति वापस अपनी पहली मूल पार्टी में जब लौटता है तो उसे पहले वाला सम्मान प्राप्त नहीं होता और उसके करियर पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। अत: इसे रोकने के लिए सरकार ऐसा कानून भी बनाए कि एक पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल होने वाला कोई भी पार्षद, सांसद या विधायक एक निश्चित अवधि तक चुनाव न लड़ सके।—विजय कुमार
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