निस्संदेह पंजाब के वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल द्वारा सोमवार को विधानसभा में पेश बजट में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के चुनावी चक्रव्यूह की छाया स्पष्ट नजर आती है। लक्षित समूहों को ध्यान में रखते हुए रियायत, लाभ व उपहार दिये गये हैं। वैसे भी आगामी वर्ष में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले राज्य की कांग्रेस सरकार का यह आखिरी बजट है। स्वाभाविक है कि बजट मीठा-मीठा होना ही था। किसान आंदोलन की तपिश को पार्टी की ऊर्जा में तब्दील करने की सुनियोजित कोशिश भी हुई है। कैप्टन को पता है कि पंजाब के किसान केंद्र द्वारा लागू किये कृषि सुधार कानूनों की खिलाफत में अगुआ हैं। इसके चलते इस बड़े वोट बैंक को आकर्षित करने के लिये कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने करीब 1.13 लाख किसानों का 1,186 करोड़ रुपये का ऋण माफ करने की घोषणा की है। इसके अलावा भूमिहीन किसानों को 526 करोड़ रुपये का कर्ज नहीं चुकाना पड़ेगा। कमोबेश यह दांव वर्ष 2017 में घोषित उस फसली ऋण माफी योजना का ही विस्तार है, जिसके बूते कांग्रेस अकाली भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार से सत्ता छीनने में कामयाब हुई थी। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि ऋणमाफी जैसे लोकलुभावन कदम इस समस्या का फौरी उपचार तो दे सकते हैं, लेकिन यह पूर्णरूप से स्थायी समाधान नहीं है। सही मायनों में ऋण माफी का राजनीतिक उपक्रम ऋण लेने की नई शृंखला को ही विस्तार देता है। कालांतर में राज्य की अर्थव्यवस्था को बीमार करने में इनकी बड़ी भूमिका भी होती है। ऐसी ही लोकलुभावनी राजनीति के कारण पंजाब की कृषि समस्याओं के समाधान की दिशा में कारगर पहल नहीं हो पायी है। अलाभकारी खेती, गिरता जलस्तर, भूमि की उर्वरता में गिरावट तथा फसलों की कटाई में होने वाली समस्याएं ऐसी ही लोकलुभावन राजनीति हथकंडों की वजह से विकट हुई हैं जिस पर दीर्घकालीन लक्ष्यों के अनुरूप विमर्श की जरूरत है।
इन तमाम लोकलुभावन वादों-इरादों के बीच यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि राज्य की आर्थिक हालत खस्ता है। बजट पेश करने के दौरान वित्तमंत्री मनप्रीत बादल लगातार बढ़ते वित्तीय संकट के प्रति चिंता तो जताते हैं लेकिन उससे उबरने के लिये कोई ठोस रणनीति का जिक्र नहीं करते। यह सार्वजनिक तथ्य है कि पंजाब के सिर पर कर्ज 2,73,730 करोड़ रुपये हो गया है। वर्ष 2016-17 में यह लगभग 1,53773 करोड़ रुपये था। इसके बावजूद सरकार ने किसानों को मुफ्त बिजली देने के लिये 7180 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं। राज्य सरकारों के लिये इस तरह की सब्सिडी अपना जनाधार बढ़ाने का हथियार रहा है। इसके बावजूद कि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग इसे राज्य की चरमराती अर्थव्यवस्था के कारकों में मुख्य घटक बताते रहे हैं। कैग राज्य सरकार को इस स्थिति से उबरने को कहता रहा है। बहरहाल, इसके बावजूद वित्तमंत्री ने फसलों के विविधीकरण को प्रोत्साहित करने और बागवानी को बढ़ावा देने के लिये कतिपय योजनाओं की भी घोषणा अपने बजट में की है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि इन योजनाओं को व्यावहारिक व दीर्घकालीन दृष्टि से लाभदायक बनाया जाये। लक्षित समूहों को ध्यान में रखते हुए कैप्टन अमरेंद्र सरकार ने बड़े समूहों को कुछ न कुछ देने का प्रयास किया है। अब चाहे वे सरकारी कर्मचारी हों, वृद्धावस्था पेंशन पाने वाले लोग हों या कारोबारी लोग। इसके बावजूद कि राज्य सरकार संसाधनों के संकुचन के चलते आर्थिक तंगी से गुजर रही है। राज्य की अर्थव्यवस्था के सुचारु संचालन के लिये नये वित्तीय संसाधन जुटाने और राजकोषीय अनुशासन लागू करने की जरूरत है। यह जानते हुए भी कि सामाजिक क्षेत्र के लिये वित्तीय संसाधन जुटाने की अनदेखी होती रही है। साथ ही कर चोरी पर भी लगाम लगाने की जरूरत है जो राज्य के राजस्व में बड़ी सेंध लगा रही है। इसके अलावा सब्सिडी को तर्कसंगत बनाकर वित्तीय भार को कम करने की कोशिश तो की ही जा सकती है। यह मानते हुए कि राज्य के हित चुनावी लाभ से महत्वपूर्ण हैं।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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