लापरवाही की आग (जनसत्ता)

मुंबई के भांडुप उपनगर में एक कोविड अस्पताल के आग की चपेट में आ जाने से दस लोगों की मौत की घटना दहला देने वाली है। इससे एक बार फिर यह साबित हो गया कि अब तक के अग्निकांडों से कोई सबक नहीं लिया गया और आग से बचाव के लिए सुरक्षा के जो जरूरी उपाय होने चाहिए, वे नहीं किए जा रहे। यह घटना बताती है कि सरकार और उसके कारिंदों की नजर में आम लोगों की जान कितनी सस्ती है। अगर इमारतों और अस्पतालों जैसी जगहों पर आग से बचाव के पुख्ता बंदोबस्त हों तो अव्वल तो ऐसी घटनाएं हो ही नहीं, और अगर हो भी जाएं तो कम से कम लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया जाए। पर ऐसा देखने में आ नहीं रहा। मुंबई के अस्पताल में आग की यह पहली घटना तो है नहीं। पहले भी यहां अस्पताल आग की लपटों में घिरते रहे हैं और ऐसे हादसों के बाद सरकार और मुंबई का स्थानीय प्रशासन हमेशा की तरह मामले को रफा-दफा करता रहा है और फिर आंखें मूंद कर बैठ जाता है नए हादसे का इंतजार में।

ताजा घटना में चौंकाने वाली बात यह है कि मुंबई के जिस अस्पताल में यह हादसा हुआ, वह एक मॉल की सबसे ऊपरी मंजिल पर चल रहा था। यही अपने में बड़ा सवाल है कि आखिर कैसे एक मॉल में अस्पताल चलाने को मंजूरी दे दी गई। मुंबई की महापौर ने तो खुद इस पर हैरानी जताई कि एक मॉल की इमारत में अस्पताल कैसे चल रहा था। अस्पताल ने अपनी सफाई में कहा कि आग उसके यहां नहीं, बल्कि मॉल में लगी और उसका धुंआ व लपटें ऊपर तक पहुंच गईं। इसके बाद मरीजों को निकालने का काम शुरू कर दिया गया। जो सात मरीज जीवनरक्षक प्रणाली पर थे, उनकी मौत हो गई।

महानगर में कोरोना संक्रमण से बिगड़ते हालात को देखते हुए पिछले साल कुछ अस्पतालों को कोविड केंद्र के रूप में मंजूरी दी गई थी और यह अस्पताल भी उन्हीं से एक है। घटना के वक्त के वहां छिहत्तर मरीज थे, जिनमें से तिहत्तर कोविड मरीज थे।


अस्पताल का दावा है कि उसने प्रशासन और दमकल विभाग से सारी मंजूरियां हासिल कर रखी हैं। पर साथ ही यह खुलासा भी हुआ है कि अग्नि सुरक्षा संबंधी नियमों के उल्लंघन के मामले में इस मॉल को पिछले साल ही बृहन मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने पालिका ने नोटिस भेजा था। अगर ऐसा था तो निश्चित रूप से दमकल विभाग भी इस तथ्य से अनजान तो नहीं रहा होगा। ऐसे में भी अगर मॉल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो इसके लिए क्या सीधे तौर पर सरकार, बीएमसी के अधिकारियों और मॉल के मालिक को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए?


पिछले साल देश के कुछ राज्यों में कोविड अस्पतालों में आग की घटनाओं और इनमें हुई मौतों ने सबको झकझोर कर रख दिया था। एक के बाद एक ऐसी घटनाओं से परेशान केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश भेजे थे और अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम करने को कहा था। गुजरात के राजकोट और अमदाबाद में कोविड अस्पतालों में आग लगने से हुई मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाया और अग्नि सुरक्षा इंतजामों की रिपोर्ट मांगी थी। लेकिन इतना सब होने पर भी सरकारों ने कैसी गंभीरता दिखाई है, इसका सबूत मुंबई का यह ताजा हादसा है। अस्पताल, नर्सिंग होम आदि खोलने के लिए निर्धारित मानदंडों को ताक पर रखते हुए घूस लेकर लाइसेंस कैसे दिए जाते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है और इस भ्रष्टाचार की कीमत लोगों को जान देकर चुकानी पड़ती है।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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