महेंद्र वेद
कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी दूसरे देश-बांग्लादेश की दो दिवसीय यात्रा पर गए हैं। ढाका के हजरत शाह जलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उनकी अगवानी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने की। प्रधानमंत्री मोदी ने यात्रा से पहले ट्वीट किया था-'बांग्लादेश के साथ हमारी साझेदारी हमारी पड़ोसी पहले की नीति का प्रमुख स्तंभ है और हम इसे और गहरा व विविधता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।' इस रिश्ते को और मजबूत बनाने तथा बांग्लादेश की स्वर्ण जयंती समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश गए हैं। बांग्लादेश इस वर्ष को अपने संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की सौवीं जयंती के मौके पर ‘मुजीब वर्ष’ के रूप में मना रहा है। इसके अलावा भारत और बांग्लादेश, दोनों इस वर्ष अपने राजनयिक संबंधों की स्वर्ण जयंती भी मना रहे हैं। आज दोपहर प्रधानमंत्री मोदी की शेख हसीना के साथ बांग्लादेश के प्रधानमंत्री कार्यालय में बात होगी, जहां कम से कम पांच सहमति पत्र पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है और कई परियोजनाओं का आभासी तरीके से उद्घाटन होगा।
गौरतलब है कि भारत ने 1971 में बांग्लादेश की आजादी में मदद करते हुए वास्तव में अपना खून बहाया था। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में गृहयुद्ध छिड़ने की वजह से भारत को एक करोड़ से ज्यादा लोगों को खिलाना और शरण देना पड़ा था, क्योंकि इस बड़ी चुनौती का सामना करने के अलावा भारत के पास कोई विकल्प नहीं था। हालांकि वर्ष 1971 में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में हिंसा और रक्तपात के बारे में विश्व समुदाय के बीच कूटनीतिक अभियान भी चलाया था। और जब हमला हुआ, तो भारत ने सैन्य तरीके से जवाब दिया। उसके पांच हजार सैनिक शहीद हो गए। 16 दिसंबर, 1971 को 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के संयुक्त कमान के समक्ष आत्मसमर्पण किया और तुरंत बांग्लादेश का जन्म हुआ। इसलिए खून से पैदा हुआ यह रिश्ता खास बना हुआ है। दक्षिण एशिया के सभी पड़ोसियों में भारत का सबसे अच्छा रिश्ता बांग्लादेश के साथ है। यह पूर्वोत्तर क्षेत्र और दक्षिण पूर्वी एशिया के लिए पूरब में भारत का प्रवेश द्वार है। यह भारत की ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी की कुंजी है।
भारत और बांग्लादेश, दोनों तेजी से काम कर रहे हैं, खोए हुए अवसरों को पकड़ रहे हैं और आपस में संचार संबंध बना रहे हैं, जो आवाजाही, व्यापार और परियोजनाओं में सहायक होंगे, जिससे दोनों देशों को लाभ होगा। चटगांव बंदरगाह को पूर्वोत्तर भारत के साथ वैकल्पिक नदी मार्ग से जोड़ने का प्रयास जारी है। भारत ने पांच प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण करने में मदद की है, जिसमें से सबसे ताजा फेनी नदी पर 'मैत्री पुल' है। विगत नौ मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा खोला गया यह पुल पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के बीच एक व्यापारिक गलियारे का हिस्सा है। इस परियोजना के साथ और अधिक योजनाएं बनाई जा रही हैं, जिनसे बांग्लादेश को अन्य दक्षिण एशियाई देशों तक पहुंच प्राप्त होगी और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद से पहली बार भारत अपने पृथक पूर्वोत्तर क्षेत्र में बेहतर पहुंच बना सकता है।
मोदी ने पुल के उद्घाटन समारोह में कनेक्टिविटी को रेखांकित किया-'यह दक्षिण असम, मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा के साथ बांग्लादेश और दक्षिण पूर्व एशिया की कनेक्टिविटी में सुधार करेगा।' अपने सभी पड़ोसियों में से भारत की सबसे लंबी सीमा (4,300 किलोमीटर) बांग्लादेश के साथ है। इतना बड़ा, नदियों से घिरा, घनी आबादी वाला यह क्षेत्र स्वाभाविक रूप से लोगों के लिए समस्या पैदा करता है, जैसे लोगों, पशुओं और सामान की तस्करी होती है। लेकिन दोनों देशों ने अगर पूरी तरह से नहीं, तो काफी हद तक उसका समाधान निकालना सीख लिया है और लाखों लोगों के निवास वाले सीमा क्षेत्र विवाद को सुलझाया है। 1947 में तैयार भू-सीमा को लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए युक्तिसंगत बनाया गया है। सीमाओं पर पहरा देने और कट्टरपंथियों व विभिन्न आदिवासी समूहों का मुकाबला करने के दौरान सुरक्षा पर ध्यान दिया जाता है। बहुत से बकाया विवादों को शेख हसीना सरकार ने सुलझा लिया है।
हालांकि दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी से कुछ फर्क पड़ा है। भारत को छोड़कर इस क्षेत्र के अन्य सभी देश चीन के बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) में शामिल हो गए हैं। हालांकि बांग्लादेश इसका इस्तेमाल सौदेबाजी के लिए नहीं कर रहा है। भारत को बांग्लादेश में निवेश करने, अरबों की सहायता प्रदान करने और उसे व्यापार में पसंदीदा राष्ट्र का दर्जा देने में आसानी हुई है। यह सोचना भोलापन होगा कि दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती मौजूगी से भारत बेपरवाह है। लेकिन इसके सभी पड़ोसियों को, जिसमें पाकिस्तान भी है, बीआरआई को लेकर समस्याएं हैं। रिश्तों में उतार-चढ़ाव बना रहता है। अभी बांग्लादेश की कोयला परियोजना से चीन बाहर हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ढाका का महत्वपूर्ण दौरा करके बांग्लादेश को न केवल दक्षिण एशिया में, बल्कि व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में 'प्रमुख पड़ोसी' और 'मूल्यवान भागीदार' बताया। उन्होंने कहा कि 'बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध हमारी रणनीतिक साझेदारी से ज्यादा हैं। हमारे रिश्ते अब काफी ऊंचे हो गए हैं, और जैसा कि हमने दिखाया कि ऐसा कोई मुद्दा नहीं है, जिस पर हम चर्चा नहीं कर सकते और सौहार्दपूर्ण बातचीत के जरिये हल नहीं कर सकते हैं।'
अपनी पहली बांग्लादेश यात्रा के दौरान मोदी ने वहां के युवाओं की भारी भीड़ को आकर्षित किया था, उम्मीद है कि उन्हें फिर से आकर्षित करेंगे। उनके एजेंडे में शेख मुजीब को श्रद्धांजलि देना शीर्ष पर है। बंगबंधु पर एक बायोपिक अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमुख फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल के निर्देशन में मुंबई स्टूडियो में निर्माण के अंतिम चरण में है। मोदी उनकी हत्या की जगह और मकबरे का दौरा करेंगे, और दुनिया को सार्वभौमिक संदेश देने के लिए सिनेमा का सहारा लेंगे। अगस्त, 1975 में मुजीब की हत्या उनके अपने ही सैनिकों ने कर दी थी। बेनेगल उस घटना को सिनेमा में चित्रित करेंगे, जो अपनी मार्मिकता में शेक्सपीयर रचित त्रासदी से कम नहीं है। मृत्यु मानवीय मूल्यों को कम नहीं करती है।
सौजन्य - अमर उजाला।
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