बीते तीन दशकों की आर्थिक यात्रा के बाद आज भारत शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है. कोरोना काल को छोड़ दें, तो आर्थिक वृद्धि की गति भी अच्छी रही है, लेकिन व्यापार घाटे को पाटने में हमें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है यानी आयात के मुकाबले हम अधिक निर्यात कर पाने में कामयाब नहीं हो सके हैं. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर, 2020) में जरूर व्यापार अधिशेष सकारात्मक रहा और इस कारण आगामी वित्त वर्ष में चालू खाता अधिशेष सकल घरेलू उत्पादन का दो प्रतिशत रहने की संभावना है, जो तेरह सालों में ऐसा पहला मौका होगा.
पर ऐसा इसलिए हो सका, क्योंकि उस अवधि में महामारी और लॉकडाउन के कारण मांग में भारी गिरावट होने से हमारे आयात में कमी आयी थी. ऐसे में इस प्रकरण से संतुष्ट होने की बजाय हमें दीर्घकालिक आर्थिक नीतियों पर ध्यान देने की जरूरत है. देश के विकास और ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए तेल, कच्चे माल, तकनीक, मशीनरी आदि का आयात जरूरी है. ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विस्तार और घरेलू निर्माण में बढ़ोतरी के जरिये इसमें कुछ कमी की जा सकती है और इस दिशा में कोशिशें भी हो रही हैं, लेकिन हमारी चिंता का केंद्र उन वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात बढ़ाना होना चाहिए, जहां हम अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं.
भारत सबसे अधिक निर्यात अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, हांगकांग, चीन, सिंगापुर और ब्रिटेन को करता है. इन देशों और अन्य संभावित बाजारों को चिन्हित कर हम अपने निर्यात को बढ़ा सकते हैं. भारत ने बीते सालों में कई व्यापार समझौते किये हैं तथा कुछ समझौतों की समीक्षा भी हो रही है. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ से वाणिज्यिक संबंधों को मजबूत करने के प्रयास हो रहे हैं. इनके साथ भारतीय मुद्रा की कीमत में स्थायित्व लाकर और कुशल कामगारों की संख्या बढ़ाकर भी व्यापार घाटे को कम किया जा सकता है.
बीते साल के संकटों से त्रस्त अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार ने व्यापक राहत पैकेज के साथ नियमन में भी छूट दी है. अगले साल के बजट प्रस्तावों में भी उत्पादन बढ़ाने और इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार के प्रावधान हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने के लिए स्थानीय स्तर पर उत्पादन और उपभोग को बढ़ाने का आह्वान किया है.
ऐसा कर हम न केवल रोजगार और आमदनी में बढ़ोतरी कर सकते हैं, बल्कि बहुत सारी ऐसी वस्तुओं, मसलन- इलेक्ट्रॉनिक चीजें, डिजिटल तकनीक से जुड़े सामान, कपड़े, खिलौने, वाहन, विविध प्रकार के उपकरण आदि- के आयात में भी कटौती कर सकते हैं. बड़े पैमाने पर ऐसे सामानों के निर्यात की गुंजाइश भी है. सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि आत्मनिर्भरता का मतलब वैश्विक बाजार से किनारा करना नहीं है. इसलिए विदेशी पूंजी के निवेश व तकनीक आमद को बढ़ाने की कोशिश हो रही है. लगातार प्रयासों से हम कुछ वर्षों में व्यापार घाटे को कम कर सकते हैं.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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