जहरीली हवा (जनसत्ता)

वायु प्रदूषण के मामले में भारत के शहरों की दिनोंदिन बदतर होती स्थिति बड़े खतरे का संकेत है। हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया के सबसे ज्यादा तीस प्रदूषित शहरों में से बाईस शहर भारत के हैं और इनमें भी ज्यादातर इलाके वे हैं जो दिल्ली से सटे हैं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आते हैं।

स्विस टेक्नोलॉजी कंपनी आइक्यूएअर ने एक सौ छह देशों में वायु गुणवत्ता पर किए गए अध्ययन में बताया है कि दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है वायु प्रदूषण के मामले में और भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है। ऐसे शोध अध्ययनों के नतीजे और वायु गुणवत्ता सूचकांक हर साल आते हैं और दिल्ली सहित भारत के शहरों की स्थिति भी कमोबेश यही रहती है। शहरों की हवा लगातार खराब हो रही है, यह तो चिंता का विषय है ही, लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि पिछले कई सालों से चली आ रही इस स्थिति में सुधार जरा भी नहीं आया है, बल्कि हालात बिगड़ते जा रहे हैं।

आइक्यूएअर की रिपोर्ट बता रही है कि उत्तर भारत के राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार आदि में हालात ज्यादा विकट हैं। उत्तर प्रदेश के आठ शहरों का दुनिया के तीस सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल होना बेहद गंभीर स्थिति का संकेत है। कानपुर और लखनऊ की हालत तो इतनी खराब है कि कौन-सा शहर ज्यादा प्रदूषित है, यह देखने-बताने का कोई मतलब नहीं रह जाता। मुख्य बात यही है कि उत्तर भारत के ज्यादातर शहरों में वायु प्रदूषण के कारण हालात खराब हैं और इन शहरों के लोग जहरीली हवा में सांस लेने को विवश हैं।

अक्तूबर से दिसंबर तक तो उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य धुएं की चादर में लिपटे रहते हैं। यह धुआं पराली जलाने, कारखानों और वाहनों से इस्तेमाल होने वाले र्इंधन और कूड़ा जलाने से पैदा होता है। इसलिए अगर भारत के शहर गंभीर वायु प्रदूषण की मार झेल रहे हैं तो उसकी बड़ी वजह यही है कि इन राज्यों की सरकारें घोर लापरवाह हैं और प्रदूषण से निपटना उनकी प्राथमिकता नहीं लगता। वरना आज ऐसी हालत नहीं होती कि लाखों लोग हर साल सिर्फ वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मर जाएं।

वायु प्रदूषण को कम करने के उपायों को लेकर हालांकि पिछले कुछ सालों में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को कसा है। किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों को सख्ती बरतने को कहा गया। पर्यावरण मंत्रालय भी सतर्क हुआ, लेकिन इन सबका बहुत उत्साहवर्धक नतीजा देखने को नहीं मिला। आज भी किसान पराली जला रहे हैं और सरकारें देख रही हैं।

कूड़ा जलाने की घटनाएं तो आम हैं। पुराने वाहन देशभर में समस्या बने हुए हैं। लाखों ऐसे वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं जिनकी अवधि पूरी हो चुकी है और सरकारों के पास ऐसा कोई इंतजाम नहीं है जो इन्हें सड़क पर न आने दे। ज्यादातर शहरों में प्रदूषण फैलाने वाले छोटे-बड़े उद्योग धड़ल्ले से चल रहे हैं। ऐसे में प्रदूषण बढ़ेगा ही।

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रदूषण की समस्या सरकारों की लाचारी और लापरवाही की देन है। कई मामलों में जनता की लापरवाही और अज्ञानता देख कर भी निराशा होती है। बिना जनसहयोग के प्रदूषण तो क्या, किसी समस्या से नहीं निपटा जा सकता। अगर शहरों को प्रदूषणमुक्त बनाना है तो इसके लिए हर स्तर पर सतत प्रयासों की जरूरत है। ठोस योजनाएं बनें, उन पर ईमानदारी से अमल हो और नियम-कायदों को सख्ती से लागू कराया जाए, तभी हम प्रदूषण के खिलाफ जंग जीत पाएंगे।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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