अजय शाह
क्रिप्टोकरेंसी वैकल्पिक मुद्रा के रूप में उभर रही हैं। ये लेनदेन के काम आ रही हैं तथा पैसे और सोने जैसी पारंपरिक मुद्राओं की तरह विभिन्न प्रकार के निपटान का काम कर रही हैं। मौजूदा क्रिप्टोकरेंसी में कमियां हैं लेकिन अभी वे एकदम शुरुआती चरण में हैं और समय के साथ वैज्ञानिक उन्हें बेहतर बनाएंगे। पारंपरिक मुद्राएं तैयार करने वालों को क्रिप्टोकरेंसी की विशेषताओं पर ध्यान देना चाहिए और अपनी पेशकश में सुधार करना चाहिए। इन बातों का असर आम लोगों, कंपनियों और सरकारों पर भी पड़ेगा।
लेनदेन को कई अलग-अलग तरीके से समझा जा सकता है। दुनिया ने सोना, सोने द्वारा समर्थित मुद्रा और बिना किसी समर्थन की मुद्राएं भी देखी हैं। इस मिश्रण में अब क्रिप्टोकरेंसी के साथ-साथ, ऐसे गणित और एल्गोरिदम को शामिल करने का प्रयास है जिसकी मदद से मुद्राएं बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के काम करती हैं।
आज की क्रिप्टोकरेंसी में कई खामियां हैं। उदाहरण के लिए बिटकॉइन बहुत अधिक बिजली का दुरुपयोग करता है। हालांकि एक लाख करोड़ डॉलर के बाजार पूंजीकरण के साथ वैज्ञानिक नवाचार की काफी संभावना है जिसकी मदद से इन समस्याओं से निपटा जा सकता है। कुछ वर्षों में ऐसा ही होगा। एल्गोरिदम में कई बदलाव देखने को मिलेंगे। हमें तात्कालिक हालात की सोच से बाहर निकलना चाहिए और अधिक रणनीतिक स्तर पर विचार करना चाहिए। क्योंकि बिटकॉइन एक ऐसी ताकत है जो नई तस्वीर को आकार देगी।
कुछ देश जहां इस नए घटनाक्रम को लेकर चिड़चिड़ाहट में हैं, वहीं आमतौर पर प्रतिस्पर्धा का बढऩा लाभप्रद होता है। यह हमेशा बेहतर होता है कि दो कदम पीछे हटकर राज्य समर्थित मुद्राओं से उपजने वाली कठिनाइयों पर विचार किया जाए। इन्होंने ही क्रिप्टोकरेंसी के लिए बाजार अवसर तैयार किया। यदि पारंपरिक मुद्राओं में इतनी दिक्कतें नहीं होतीं तो शायद क्रिप्टोकरेंसी का आविष्कार ही नहीं हुआ होता। इनमें से प्रत्येक तत्त्व सरकार समर्थित मुद्राओं की प्रतिस्पर्धी प्रतिक्रिया का हिस्सा हो सकता है।
जब संपत्ति नकदी में भंडारित की जाती है तो मुद्रास्फीति के कारण उसका मूल्य कम होता है। मुद्रास्फीति दो तरह की होती है, प्रत्याशित और अप्रत्याशित। क्रिप्टोकरेंसी ने एल्गोरिदम की ऐसी बुनियाद तैयार की है जो वादा करती है कि स्थायित्व की स्थिति में कीमतों में स्थिरता रहेगी। वे मानव संस्थानों की कमजोरी से प्रभावित नहीं होतीं। पारंपरिक मुद्रा लंबे समय से इस समस्या को लेकर काम कर रही है। सन 1980 के दशक के आखिर से ही दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति को लक्ष्य बनाया है और मौद्रिक नीति समिति का ढांचा यहीं से तैयार हुआ। फिलहाल दुनिया भर में मुद्रास्फीति को कोई बड़ी समस्या नहीं माना जा रहा है। यानी क्रिप्टोकरेंसी के लिए यह कोई बहुत बढ़त वाली बात नहीं है। परंतु भविष्य में यदि कोई केंद्रीय बैंक कम मुद्रास्फीति की प्रतिबद्धता में चूक करता है तो इससे बाजार हिस्सेदारी प्रभावित होगी।
विभिन्न देशों ने व्यापक निगरानी प्रणाली विकसित की है जिसकी सहायता से पारंपरिक मुद्रा के क्षेत्र में तमाम इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन पूरे किए जाते हैं। मनुष्यों को ज्यादा निजता की आकांक्षा होती है। फिलहाल नकदी और सोने में सबसे अधिक गोपनीयता है। दोनों ही पक्षों में राज्य का विधिक हस्तक्षेप कम करना संभव है। क्रिप्टोकरेंसी गोपनीयता बढ़ाने संबंधी ढांचा तैयार कर सकती हैं और व्यापक निगरानी व्यवस्था के विरुद्ध संवैधानिक व्यवस्था पारंपरिक मुद्रा के प्रयोग में अतिक्रमण कम कर सकती है।
पारंपरिक मुद्रा में लेनदेन में ऋण जोखिम समाप्त करने के लिए केंद्रीय बैंक के साथ चालू खाते तक पहुंच आवश्यक है। जब इसे रोका जाता है तो उपभोक्ताओं के समक्ष ऋण जोखिम और बैंक शुल्क की समस्या आती है। भारत में निजी क्षेत्र के लोगों को केंद्रीय योजनाओं के नियोजन के लिए मजबूर किया जाता है। एनपीसीआई और यूपीआई इसके उदाहरण हैं। क्रिप्टोकरेंसी इन समस्याओं से मुक्त हैं। पारंपरिक मुद्रा इस प्रतिस्पर्धी दबाव की प्रतिक्रिया में केंद्रीय बैंक के साथ चालू खाते की पहुंच सहज कर सकती है।
कुछ देशों में पूंजी नियंत्रण की समस्या पारंपरिक मुद्रा के साथ जुड़ी होती है। क्रिप्टोकरेंसी सोने की तरह हैं। ऐसे में पूंजी नियंत्रण की सीमा से बचना आसान है। यदि पूंजी नियंत्रण हटा दिया जाए तो पारंपरिक मुद्रा अधिक आकर्षक हो सकती है।
एक प्रतिस्पर्धी माहौल में क्रिप्टोकरेंसी को पारंपरिक मुद्रा के विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। एक ओर क्रिप्टोकरेंसी को अपनी बुनियाद मजबूत करनी है और स्वयं को बेहतर बनाना है। वहीं दूसरी ओर पारंपरिक मुद्रा भी खामोश नहीं रहेगी। विभिन्न देश एक लाख करोड़ डॉलर आकार की प्रतिक्रिया देते हुए मुद्रास्फीति को बेहतर लक्षित करेंगे ताकि मूल्यह्रास को कम किया जा सके। वे वित्तीय लेनदेन पर व्यापक निगरानी कम करेंगे, लेनदेन में अपनी बढ़त को नकदी की सहायता से बढ़ाएंगे, केंद्रीय बैंक के साथ चालू खाते की पहुंच को सहज बनाएंगे और पूंजी नियंत्रण कम करेंगे।
विमानन की शुरुआत के वक्त हर देश के पास एक विमान सेवा थी। समय बीतने के साथ कुछ विमान सेवाएं बचीं और अधिकांश गतिविधियां दुनिया की 25 विमान सेवाओं के पास सीमित हो गईं। इसी प्रकार शायद दशक भर में मुद्रा बाजार भी शायद 25 मुद्राओं में संगठित हो जाए। जिस देश के पास बौद्धिक विश्लेषण की अधिक क्षमता होगी और जिसमें मौद्रिक या वित्तीय सुधार की दिक्कतों को समझने की सलाहियत होगी, उसके पास अहम मुद्राएं होंगी। इन देशों के वित्त मंत्रालयों को राजस्व में बढ़त हासिल होगी।
क्रिप्टोकरेंसी ने भारत में कई लोगों को नाराज किया लेकिन यह जिन्न बोतल में वापस नहीं जाने वाला। यह याद करना उचित होगा कि भारत ने सोने के आयात पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया था। दशकों तक तस्करी रोकने के प्रयास के बाद उसे आम परिवारों द्वारा सोने की नि:शुल्क खरीद की इजाजत देनी पड़ी थी। सोने को लेनदेन में मुद्रा जैसी अहमियत मिली और नि:शुल्क स्वर्ण आयात के रूप में स्वत: पूंजी परिवर्तनीयता हासिल हुई।
भारत में कई लोग उस बिंदु के करीब आ रहे हैं जहां यह ध्यान रखना जरूरी होगा कि क्रिप्टोकरेंसी में क्या चल रहा है। यह भी देखना होगा कि यह उनकी गतिविधियों को किस प्रकार प्रभावित करेगी। व्यक्तिगत और फर्म के स्तर पर क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन और नकदी की नई अवधारणाएं पेश करेगी। वित्तीय कंपनियों के लिए क्रिप्टोकरेंसी और अधिक अहम होगी क्योंकि उपयोगकर्ता मांग से जुड़ी वित्तीय सेवाओं की इच्छा व्यक्त करेंगे। भारतीय आईटी उद्योग के लिए निर्यात आधारित आईटी सेवा कार्य होगा जिसके लिए समकालीन उपायों और अवधारणाओं से करीबी संबंध जरूरी होंगे। इस प्रकार समझें कि अगर भारत में मोबाइल फोन पर प्रतिबंध होता तो भारतीय इंजीनियरों को विश्व बाजार के फोनों के लिए सॉफ्टवेयर बनाने में दिक्कत होती। संभावना यह भी है कि भारतीय वैज्ञानिकों और विभिन्न फर्म को वैश्विक स्तर पर नवाचार का अवसर मिल सकता है क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ा नवाचार यहां आकार ले सकता है।
(लेखक स्वतंत्र आर्थिक विश्लेषक हैं)
सौजन्य - बिजनेस स्टेंडर्ड।
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