भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों के चलते सरकारी कामकाज को पारदर्शी बनाने के साथ उसमें तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाया जाना चाहिए। आज ऐसी तकनीक सहज उपलब्ध है जिसका इस्तेमाल कर सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों को बदला जा सकता है।
भ्रष्टाचार के संदेह में देश के करीब सौ ठिकानों में केंद्रीय जांच ब्यूरो की छापेमारी से ऐसा कुछ संकेत भले ही मिले कि भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई की गई, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि इस तरह की छापेमारी पहले भी की जा चुकी है और नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। यदि सरकार अथवा सीबीआइ की ओर से यह सोचा जा रहा है कि रह-रहकर होने वाली छापेमारी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में सफलता मिलेगी तो ऐसा कुछ होने वाला नहीं है, क्योंकि अभी तक का अनुभव यही कहता है कि ऐसी कार्रवाई न तो कोई नजीर पेश करने में सक्षम है और न ही भ्रष्ट तत्वों के मन में भय का संचार करने में। इसी कारण बार-बार छापेमारी करने की नौबत आती है। नि:संदेह सीबीआइ की छापेमारी के दौरान सरकारी अधिकारियों की घूसखोरी अथवा आय से अधिक संपत्ति के जो मामले मिलते हैं, उन पर आगे कार्रवाई भी होती है, लेकिन यह मुश्किल से ही पता चलता है कि किसे कितनी सजा मिली? किसी को यह बताना चाहिए कि सीबीआइ की छापेमारी का अंतिम नतीजा क्या रहता है?
आमतौर पर भ्रष्टाचार से जुड़े मामले वर्षो चलते हैं। इन मामलों का जब तक निपटारा होता है, तब तक आम जनता के साथ ही उन विभागों के लोग भी सब कुछ भूल चुके होते हैं, जिनके यहां के अधिकारी-कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए होते हैं। यदि भ्रष्टाचार में सजा पाए कर्मियों का कोई विवरण संबंधित विभागों में चस्पा किया जाए तो कुछ असर पड़ सकता है, लेकिन हालात तो तब बदलेंगे, जब सरकारी कामकाज को पारदर्शी और नौकरशाहों को जवाबदेह बनाया जाएगा। समझना कठिन है कि दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें ठंडे बस्ते में क्यों पड़ी हुई हैं? भ्रष्टाचार नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक तंत्र में सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के साथ ही नौकरशाहों की उस प्रवृत्ति पर भी लगाम लगानी होगी, जिसके तहत वे सब कुछ अपने नियंत्रण में रखने की मानसिकता से लैस हो गए हैं। यह मानसिकता भ्रष्टाचार को जन्म देती है। इसी के साथ ऐसा भी कुछ करना होगा, जिससे लोग पिछले दरवाजे से या फिर कुछ ले-देकर अपना काम करवाने की आदत का परित्याग करें। जब तक पिछले दरवाजे से काम कराने की गुंजाइश बनी रहेगी, तब तक इसकी कोशिश भी होती रहेगी। जीएसटी चोरी के मामले इसका प्रमाण भी हैं। यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि सरकारी कामकाज को पारदर्शी बनाने के साथ उसमें तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाया जाए। आज ऐसी तकनीक सहज उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल कर सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों को बदला जा सकता है।
सौजन्य - दैनिक जागरण।
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