जुगल किशोर, वरिष्ठ जन-स्वास्थ्य विशेषज्ञ
भारत में कोरोना का संक्रमण फिर से बढ़ने लगा है। गुरुवार को देश भर में 23,285 नए मामले सामने आए, जो 23 दिसंबर, 2020 के बाद एक दिन में नए मरीजों की सर्वाधिक संख्या है। इनमें से 60 फीसदी से अधिक (14,317 मामले) मरीज तो अकेले महाराष्ट्र में मिले हैं, जबकि केरल में 2,133 और पंजाब में 1,305 नए मरीजों का पता चला। रोजाना के मामलों में नई बढ़ोतरी कर्नाटक (783), गुजरात (710) और तमिलनाडु (685) जैसे राज्यों में भी दिख रही है। इस तरह से देश में सक्रिय मरीजों की संख्या 1.97 लाख से ज्यादा हो गई है, जो कुल संक्रमित मरीजों का 1.74 प्रतिशत है। महाराष्ट्र को लेकर विशेष चिंता है। यहां 21 फरवरी को कोविड-19 मरीजों की संख्या 21 लाख को पार कर गई थी, पर 22 लाख के आंकडे़ को छूने में इसे बमुश्किल 13 दिन लगे, जबकि 21 जनवरी को यह 20 लाख पर पहुंचा था। संक्रमण की इस बढ़ती रफ्तार के कारण ही नागपुर व अकोला जैसे इलाकों में लॉकडाउन लगाकर जनजीवन को रोक दिया गया है, और पुणे में रात्रिकालीन कफ्र्यू का एलान किया गया है। मुंबई में भी पॉजिटिविटी रेट (प्रति 100 जांच पर पॉजिटिव मामलों की दर) बढ़कर 7-7.5 फीसदी हो गई है और कहा गया है कि अगर यह दर 15 फीसदी के करीब पहुंच जाएगी, तो कई दूसरे प्रतिबंध आयद किए जाएंगे।
साफ है, संभलते हालात दोबारा से बिगड़ने लगे हैं। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। पहला कारण यह हो सकता है कि वायरस लगातार म्यूटेट (अपना चरित्र बदलना) कर रहा है। यह उसका नैसर्गिक गुण है। वह जितना अधिक फैलता है, उतना अधिक म्यूटेट करता है। अपने यहां हर महीने कम से कम दो बार वायरस अपना रूप बदल रहा है। चूंकि इसके संक्रमण को हम पूरी तरह से रोक नहीं पाए हैं, इसलिए इसका म्यूटेशन होता रहेगा। उल्लेखनीय है कि म्यूटेट वायरस फिर से पूरी आबादी के लिए खतरा बन जाता है। इससे संक्रमण का एक नया चरण आ सकता है। पिछली सदी के स्पेनिश फ्लू में हमने यह देखा था कि संक्रमण का दूसरा दौर जान-माल का भारी नुकसान दे गया।
दूसरा कारण यह हो सकता है कि हमारे शरीर में इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो गई हो। छह-सात महीने में इसका खत्म होना स्वाभाविक है। हमारी तकरीबन 55-60 फीसदी आबादी इस वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर चुकी थी। चूंकि महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली जैसे राज्यों में शुरुआत में ही वायरस का प्रसार हो गया था, इसलिए बहुत मुमकिन है कि यहां ‘हर्ड इम्यूनिटी’ (करीब 60-70 फीसदी जनसंख्या में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने की स्थिति) खत्म हो गई हो। नतीजतन, लोग फिर से संक्रमित होने लगे हैं। कई ऐसे मामले सामने आए भी हैं, जिनमें एक बार कोरोना से ठीक हुआ मरीज दोबारा इसकी गिरफ्त में आ गया है। ऐसे में, फिर से सीरो सर्वे कराने की जरूरत आन पड़ी है। इसमें ब्लड सीरम की जांच करके यह पता लगाया जाता है कि कोई आबादी वायरस से किस हद तक लड़ चुकी है। अब तक तीन देशव्यापी सर्वे हो चुके हैं। भले ही हर सर्वे में वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती दिखी, लेकिन जिस रफ्तार से इसके बढ़ने का अनुमान लगाया गया था, वह हो नहीं सका। यह बताता है कि मानव शरीर में एंटीबॉडी संभवत: खत्म हो रही है।
तीसरी वजह यह हो सकती है कि नए इलाकों में संक्रमण का प्रसार हो रहा होगा। महाराष्ट्र में अमरावती और नागपुर जैसे क्षेत्रों से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं, जबकि कभी धारावी जैसे इलाके कोविड-19 का केंद्र हुआ करते थे। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी पूर्वी हिस्से की तुलना में मध्य दिल्ली और बाहरी सीमावर्ती इलाकों से अधिक मरीज मिलने के अनुमान हैं। इसका यह मतलब है कि जिन्हें पहले यह रोग नहीं हुआ है, उन पर खतरा कहीं ज्यादा है। हालांकि, संक्रमण की नई लहर नवजात शिशुओं की संख्या बढ़ने से भी आ सकती है, लेकिन कोरोना का नवजातों और बच्चों में अब तक कम असर दिखा है। मानवीय गतिविधियों के बढ़ने के कारण भी उछाल आए हो सकते हैं। भले ही अनलॉक की प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से की गई, लेकिन अब सारा आर्थिक जनजीवन पटरी पर लौट आया है। इस कारण बाजार में चहल-पहल बढ़ गई है। अच्छी बात यह है कि अपने यहां मृत्यु-दर अब भी कम है। यह 1.5 फीसदी के आसपास रुकी हुई है, जो संकेत है कि संक्रमण में यह उछाल जानलेवा नहीं है। यह हमारी बेहतर होती चिकित्सा व्यवस्था व स्वास्थ्य सेवाओं का नतीजा है। बहरहाल, वैज्ञानिक नजरिए से देखें, तो अब लॉकडाउन से संक्रमण को थामना मुश्किल है। बेशक पिछले साल इसी उपाय पर हमारा पूरा जोर था, लेकिन इसका फायदा यह मिला कि कोरोना के खिलाफ हमने अपनी तैयारी चाक-चौबंद कर ली। अस्पतालों की सेहत सुधार ली। लेकिन अब ऐसी कोई जरूरत नहीं है। सावधानी ही बचाव का सबसे जरूरी उपाय है। मास्क पहनना, शारीरिक दूरी का पालन करना और सार्वजनिक जगहों पर जाने से बचना कहीं ज्यादा जरूरी है। हमें ‘न्यू नॉर्मल’ को अपनाना ही होगा। कोरोना संक्रमण के शुरुआती महीनों में इन पर ध्यान तो दिया गया था, लेकिन अब लापरवाही बरती जाने लगी है। यह काफी खतरनाक हो सकता है। कई लोग ‘न्यू नॉर्मल’ के नीरस होने का बहाना बनाते हैं, क्योंकि उन्होंने यह धारणा बना ली है कि इसमें उन्हें घर में कैद होना पड़ेगा। ऐसा कतई नहीं है। मानसिक और सामाजिक सेहत के लिए हमारा घर से बाहर निकलना जरूरी है। मगर हां, निकलते वक्त हमें पूरी सावधानी बरतनी होगी। टीकाकरण भी फायदेमंद उपाय है और इस पर खास तौर से ध्यान दिया जा रहा है। मगर हाल के महीनों में पूरी आबादी को टीका लग पाना संभव नहीं है। इसके अलावा, यह भी अब तक साफ नहीं हो सका है कि टीका लेने मात्र से कोरोना से सुरक्षा संभव है। इसलिए बचाव के बुनियादी उपायों को अपने जीवन में ढालना ही होगा। तभी इस वायरस का हम सफल मुकाबला कर सकेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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