कायनात काजी
लेह और लद्दाख शहर के लिए जब श्रीनगर से सफर की शुरुआत की, तो एक ओर प्रकृति के दिलफरेब नजारे थे, दूसरी ओर मेरा कैमरा। करगिल-लेह हाइवे पर जन्स्कार और सिन्धु नदी के संगम ने मानो बांध लिया। ऐसा अनोखा दृश्य जो कि आंखों में न समाए। हरा और नीला पानी और भूरी पहाडिय़ां, नीले आकाश तले ऐसे एकाकार हो रहे होते हैं जैसे दो बिछड़े प्रेमी।
इन दृश्यों में ऐसे खोती चली गई कि कब लेह पहुंची, पता ही नहीं चला। लेह का सबसे बड़ा आकर्षण लेह पैलेस है। इसका निर्माण 15वीं सदी में राजा सेंगगे नामग्याल ने करवाया था। इस पैलेस का फ्रंट हिस्सा लहासा के पोटाला पैलेस से मिलता-जुलता है। नौ-मंजिला इस पैलेस में एक शानदार संग्रहालय है जिसमें लद्दाख डायनेस्टी की अहम कृतियों का संग्रह है। पैलेस की ऊंचाई से पूरा लेह शहर और नेपथ्य में स्टोककांगड़ी पर्वत शृंखला दिखाई देती है। मुख्य बाजार के पीछे सेंट्रल एशियन म्यूजियम है, जो प्रमाण है कि शताब्दियों से लेह शहर सिल्क रूट का अहम पड़ाव रहा है। इस रूट पर तिब्बत, चीन और मध्य एशिया से व्यापारी आया जाया करते थे। यह संग्रहालय उन्हीं बीते दिनों की याद ताजा करने के लिए एक अलग पहचान रखता है। इस संग्रहालय के तीन तल हैं। हर तल एक अलग सभ्यता को समर्पित है। प्रथम तल पर लद्दाखी संस्कृति, द्वितीय तल पर तिब्बत की संस्कृति और तीसरे पर चीन की संस्कृति से जुड़ी मूल्यवान एंटीक कलाकृतियां रखी गई हैं। लेह से मात्र 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ठिकसे गोम्पा। यह केवल एक गोम्पा
नहीं, बल्कि बौद्ध संस्कृति का विशाल केंद्र है। बारह मंजिला यह गोम्पा बौद्ध धर्म की शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केंद्र है। यहां एक बड़ा पुस्तकालय भी है, जहां प्राचीन बौद्ध ग्रंथों का मूल्यवान संग्रह मौजूद है। लेह शहर से बाहर एअरपोर्ट के नजदीक हॉल ऑफ फेम संग्रहालय है, जो भारतीय सेना की वीरता और उपलब्धियों की कहानियां संजोए है। इस संग्रहालय का शुमार एशिया के 25 शानदार संग्रहालयों में किया जाता है।
(लेखिका फोटोग्राफर, ब्लॉगर, स्टोरीटेलर और सोलो फीमेल ट्रैवलर हैं)
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