दवाई संग कड़ाई (दैनिक ट्रिब्यून)

कुछ दिन पहले तक कोरोना संक्रमण में लगातार आ रही गिरावट से लापरवाह हुए लोग यह भूल गये थे कि यह पलटवार भी कर सकता है। हाल ही के दिनों में हररोज जिस संख्या में संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं, उसने देश की चिंता को बढ़ाया ही है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलानी पड़ी ताकि एक बार फिर से कोरोना के खिलाफ देशव्यापी युद्ध और सतर्कता शुरू की जाये। निस्संदेह, कोरोना संक्रमण की वापसी चौंकाने और डराने वाली है। कहीं न कहीं तंत्र के स्तर पर ढिलाई और सार्वजनिक जीवन में उपजी लापरवाही इसके मूल में है। क्रिकेट स्टेडियमों में उमड़ी भीड़, धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रमों में शारीरिक दूरी और मास्क के बिना लोगों की उपस्थिति पहले ही चिंता के संकेत दे रही थी। विडंबना यह भी है कि चार राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश में चुनावी सभाओं और रोड शो में जिस तरह से भीड़ उमड़ रही है उसे चिंता के तौर पर देखा जाना चाहिए। राजनीतिक रैलियों में तो लापरवाही है ही, शासन-प्रशासन के स्तर पर जो सख्ताई पहले दिखायी दी गई थी, उसमें भी ढील आई है। विडंबना यह भी है कि कोरोना काल में मास्क लगाने, सैनिटाइजर का उपयोग और शारीरिक दूरी की जो हमने आदत डाली थी, उससे हम किनारा करने लगे थे। छोटे शहरों और कस्बों-गांवों की तो स्थिति और विकट है। यही वजह है कि बुधवार को मुख्यमंत्रियों की बैठक में प्रधानमंत्री को विशेष रूप से कहना पड़ा कि गांवों को संक्रमण से बचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, यदि गांवों में संक्रमण बढ़ा तो उसे रोक पाना तंत्र के बूते की भी बात नहीं होगी। इन हालात में राज्य सरकारों को नियमों व बचाव के उपायों के अनुपालन के लिये प्रशासन के स्तर पर सख्ती दिखानी होगी। साथ ही आम लोगों के स्तर तक जागरूकता अभियान में तेजी लानी होगी। चिंता की बात यह है बीते मार्च के जैसे ही हालात पैदा होने लगे हैं।


निस्संदेह अगले कुछ वर्षों के लिये सुरक्षा की दृष्टि से सतर्कता को सामान्य जीवन का हिस्सा मान लेना चाहिए। यानी बचाव के उपायों को अपनी आदत में शुमार कर लेना चाहिए। साथ ही वक्त की नजाकत है कि टीकाकरण अभियान में भी तेजी लायी जाये। जहां कुछ लोगों को अभी तक वैक्सीन का इंतजार है वहीं लापरवाही से तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में बड़ी मात्रा में वैक्सीन खराब हो गई, जिसकी चिंता प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों की बैठक में जतायी है। यह विडंबना है कि  अग्रिम मोर्चे का एक वर्ग टीकाकरण को लेकर शंकित है और टीका लगाने से बचता नजर आया है।  सरकारों का भी दायित्व बनता है कि ऐसी तमाम आशंकाओं का निवारण करके टीकाकरण अभियान में तेजी लायी जाये। यह अच्छी बात है कि हमारे देश में टीकाकरण अभियान तेजी से चल रहा है और हम तेजी के मामले में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर हैं। यह भी कि भारतीय वैक्सीन के किसी तरह के विशेष नकारात्मक प्रभाव भी सामने नहीं आये हैं। निस्संदेह कोरोना वैक्सीन समय से हासिल करने से कोरोना योद्धाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है। तभी मुख्यमंत्रियों की बैठक में प्रधानमंत्री ने देशवासियों से कहा कि घबरायें नहीं और दवाई के साथ कड़ाई की नीति पर चलते हुए हमें कोरोना संक्रमण की नई लहर का मुकाबला करना है। यदि सुरक्षा उपायों में हमने फिर लापरवाही की तो कोरोना लगातार शिकंजा कसता चला जायेगा। रोज कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा पैंतीस हजार के ऊपर पहुंचना और मरने वालों की संख्या में वृद्धि बता रही है कि आने वाला समय चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। अध्ययन करने की जरूरत है कि क्यों महाराष्ट्र में कुल संक्रमितों की संख्या देश के मुकाबले साठ फीसदी है। क्यों फिर से लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू की जरूरत पड़ने लगी है। यह देशवासियों की सजगता पर निर्भर करेगा कि बीते साल जैसे सख्त उपायों को दोहराने की जरूरत न पड़े। देश की अर्थव्यवस्था पहले ही संकट के दौर से उबरने की कोशिश में है।

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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