मार्क डेनियल डेविस (टेक्नोलॉजी रिपोर्टर)
इंटरनेट आज जहां लोगों की जरूरत बन चुका है, वहीं वर्ष 2020 में दुनिया की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट शटडाउन दर्ज किया गया। इससे लाखों लोग प्रभावित हुए। डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक समूह 'एक्सेस नाउ' की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में 29 देशों में कम से कम 155 बार इंटरनेट पर पाबंदी लगी। 28 बार पूरी तरह से इंटरनेट ब्लैकआउट रहा, कुछ मामलों में पूरे शहर 'डिजिटल अंधेरे' में डूब गए। इंटरनेट बंद करने में सबसे आगे अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया के देश रहे।
एक्सेस नाउ से जुड़ीं फेलिशिया एंथोनिओ के मुताबिक कोविड महामारी ने लोगों को ऑफलाइन की जगह ऑनलाइन काम करने को मजबूर किया है। ऐसे में जब सरकारें जानबूझकर इंटरनेट बाधित करती हैं तो वह लोगों को शिक्षा, व्यापार जारी रखने तथा महामारी से जुड़ी सूचनाएं हासिल करने के अवसरों से वंचित करती हैं। हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता छिपाने, विरोध-प्रदर्शन रोकने और असहमतियों को दबाने की कोशिशों के तहत सरकारों की ओर से यह पाबंदी लगाई गई। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा कम से कम 109 बार इंटरनेट एक्सेस रोका गया। दूसरे स्थान पर यमन रहा, जहां छह बार इंटरनेट पर रोक लगी। भारत में विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून और कश्मीर के विशेष स्वायत्तता दर्जे को खत्म करने समेत हाल के वर्षों में हुए प्रदर्शनों के दौरान अधिकारियों ने इंटरनेट बंद किया। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने महत्त्वपूर्ण फैसले में कहा कि कश्मीर में अनिश्चितकाल तक इंटरनेट बंद करना अवैध है, सिविल सोसाइटी समूहों की असहमतियों को रोका नहीं जा सकता।
सरकार का तर्क था कि अव्यवस्था फैलने से रोकने, फर्जी खबरों और अभद्र भाषा पर रोक के लिए यह जरूरी हो गया था। रिपोर्ट में बताया गया है कि इथियोपिया में सरकार ने कम से कम चार बार पूरी तरह इंटरनेट बंद किया। एक बार तो दो हफ्ते से ज्यादा समय तक पूरे देश में इंटरनेट बंद रहा जिसके चलते 10 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए। म्यांमार के राखीन और चिन राज्यों में मोबाइल नेटवर्क में व्यवधान 19 महीनों तक जारी रहा। फरवरी 2021 में सैन्य विद्रोह के बाद म्यांमार की जुंटा ने हालांकि इंटरनेट सेवा बहाल कर दी थी, लेकिन तभी से 'ब्लैकआउट' के नए आदेश जारी किए जा रहे हैं। रिसर्च समूह 'टॉप10 वीपीएन' के अनुसार, 2020 में 2019 की तुलना में 49% से ज्यादा लम्बे समय तक व्यवधान रहा। इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था को 4 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, जिसमें तीन चौथाई नुकसान अकेले भारत का हुआ। एंथोनिओ कहती हैं कि इंटरनेट शटडाउन से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। इंटरनेट बंद करने का मतलब, रोजमर्रा की गतिविधियों, वंचितों के अधिकारों और उनके जीवन में व्यवधान डालना है।
सौजन्य - पत्रिका।
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