हरियाणा का अदूरदर्शी कानून (बिजनेस स्टेंडर्ड)

हरियाणा सरकार ने एक कानून की अधिसूचना जारी की है जिसके तहत निजी कंपनियों के लिए स्थानीय लोगों को रोजगार में आरक्षण देना अनिवार्य होगा। हरियाणा स्टेट एंप्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट्स ऐक्ट, 2020 के तहत सभी कंपनियों, सोसाइटी, न्यास, साझेदारी फर्म और सीमित जवाबदेही वाली साझेदारी फर्म को ऐसे रोजगारों में से 75 प्रतिशत रोजगार स्थानीय प्रत्याशियों को देने होंगे, जिनमें मासिक वेतन 50,000 रुपये तक का है। इस कानून के संभावित असर को उद्योग जगत की प्रतिक्रिया से आंका जा सकता है। उद्योग जगत आमतौर पर सरकार की आलोचना करने से बचता है। परंतु एक औद्योगिक संगठन ने उचित ही कहा कि यह राज्य के औद्योगिक विकास के लिए एक त्रासदी साबित होगा। बल्कि इसका असर केवल राज्य तक सीमित भी नहीं रहेगा।

यह कानून कई स्तरों पर समस्या से भरा है। उदाहरण के लिए विधि विशेषज्ञों का कहना है कि यह असंवैधानिक है। भारतीय संविधान जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं देता। यह नागरिकों को अधिकार देता है कि वे कहीं भी जाएं और किसी भी पेशे को अपनाएं। ऐसे में लगता नहीं कि यह कानून संवैधानिक परीक्षा में खरा उतरेगा। चिंता की बात यह है कि हरियाणा ऐसा कानून बनाने वाला पहला राज्य नहीं है। आंध्र प्रदेश सरकार ने 2019 में ऐसा ही कानून बनाया था जिसे अदालत में चुनौती दी गई और मामला अब भी निर्णयाधीन है। इससे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री ने 2018 में कहा था कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में 80 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों को मिलनी चाहिए। कई अन्य राज्यों ने भी ऐसे कानून बनाने की बात कही है। एक तरह से देखें तो यह दर्शाता है कि राज्य इस विषय को कैसे देखते हैं। रोजगार बढ़ाने के बजाय यहां कोशिश यह है कि इन्हें ऐसे वितरित किया जाए ताकि तात्कालिक चुनावी लाभ मिल सके। अलग तरह से देखें तो ऐसे कानून के प्रवर्तन का इरादा यही दर्शाता है कि राज्य पर्याप्त रोजगार तैयार करने में अक्षम हैं। 


ऐसा कानून केंद्र सरकार की कारोबारी सुगमता की प्रतिबद्धता को भी चुनौती देता है। केंद्र सरकार ने हाल के समय में कारोबारी सुगमता में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें श्रम कानूनों को सहज बनाना और कंपनी कानून के आपराधिक बनाने वाले प्रावधानों को समाप्त करना प्रमुख है। परंतु राज्यों के कानूनों द्वारा श्रमिकों की उपलब्धता को यूं प्रतिबंधित करना कारोबारी माहौल को प्रभावित करेगा। इससे श्रम की लागत बढ़ेगी और उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता में कमी आएगी। यह इंस्पेक्टर राज की ओर वापसी का कदम भी होगा। भारत वैसे भी अपने सस्ते श्रम का लाभ लेने में कामयाब नहीं हो सका है। ऐसे कानून इस संभावना को पूरी तरह समाप्त कर देंगे। इस संदर्भ में यह पूछना उचित होगा कि निवेशक इन बातों पर विचार किए बिना भारत में लंबी अवधि का निवेश क्यों करना चाहेंगे?


व्यापक तौर पर देखें तो समग्र आर्थिक संभावना को प्रभावित करने के साथ-साथ ऐसे कानून क्षेत्रीय असंतुलन को भी जन्म देंगे। इससे ऐसे केंद्र ठप होंगे जो अन्यथा श्रमिकों की उपलब्धता से आसानी से विकसित हुए होते। निराश करने वाली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने ऐसा कानून बनाया है। क्षेत्रीय दलों के उलट भाजपा से आशा की जाती है कि वह व्यापक तस्वीर पर गौर करेगी। भाजपा शासित कुछ अन्य राज्यों ने भी ऐसा अदूरदर्शी कानून पारित करने का इरादा जताया है। इनकी संवैधानिक वैधता का सवाल अदालत में हल होगा लेकिन भाजपा नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हरियाणा सरकार को रोकना चाहिए था। फिलहाल मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है देश को दीर्घावधि की स्थायी वृद्धि की राह पर डालना। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली सरकार ने ऐसी कोशिशों को तगड़ा झटका दिया है।

सौजन्य - बिजनेस स्टेंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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