कोरोना का दंश (जनसत्ता)

गुजरे एक साल में कोरोना संकट ने करोड़ों भारतीयों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है। महामारी फैलने से तो हालात भयावह हुए ही, उससे भी बुरा असर यह पड़ा कि आमजन का जीवन पटरी से उतर गया और माली हालत दयनीय होती चली गई। महामारी से उपजे इस आर्थिक संकट ने लोगों को किस कदर बेहाल कर दिया, इसका पता भारतीय रिजर्व बैंक के हाल के एक आकलन से चलता है।

केंद्रीय बैंक ने अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि पिछले एक साल में बड़ी संख्या में भारतीय परिवार कर्ज में डूब गए और बचत की दर में भी भारी गिरावट आई। परिस्थितिों के कारण यह दुश्चक्र बनना ही था। देश में पूर्णबंदी लागू होने से आर्थिक गतिविधियां एकदम से ठहर गर्इं थी। ऐसे में लोग क्या करते? गुजारा चलाने के लिए कर्ज और अपनी थोड़ी-बहुत बचत ही एकमात्र सहारा रह गए थे। यह संकट अभी खत्म नहीं हुआ है।

चालू वित्त वर्ष के आंकड़े यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था कैसे चौपट होती चली गई। पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद शून्य से चौबीस फीसद तक नीचे चला गया था। सबसे बड़ा और गंभीर संकट तो यह खड़ा हुआ कि पूर्णबंदी के कारण देश के ज्यादातर छोटे और मझौले उद्योग धंधे बंद हो गए थे। इनमें से कई तो आज भी चालू नहीं हो पाए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था का पचास फीसद से ज्यादा हिस्सा छोटे उद्योगों और असंगठित क्षेत्र पर ही निर्भर है।


इनका नब्बे फीसद कारोबार नगदी पर चलता है। इसमें काम करने वालों की तादाद भी सबसे ज्यादा है। औद्योगिक प्रतिष्ठान बंद होने से कामगारों की छुट्टी कर दी गई। ऐसे में लोगों के समक्ष रहने से लेकर खाने तक संकट खड़ा हो गया और इसी वजह से लाखों प्रवासी कामगार अपने घरों को लौटने को विवश हुए थे। गैर-सरकारी क्षेत्र में ज्यादातर कंपनियों ने खर्च में कटौती और नुकसान का हवाला देते हुए लोगों को नौकरियों से निकाला और कर्मचारियों के वेतन में भारी कटौती की। यह मध्यवर्ग और निन्मवर्ग के लिए संक्रमण से भी ज्यादा बड़ा संकट बन गया। ऐसे में लोगों के सामने बचत के पैसे ही घर चलाने की मजबूरी रह गई। लाखों लोगों को भविष्य निधि तक से पैसे निकालने को मजबूर होना पड़ा। ऐसे में लोग कहां से पैसा बचाते?

पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था में मांग, उत्पादन, खपत और बचत बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जिनके पास पैसा है भी, वे आज भी भविष्य को लेकर आशंकित हैं। इसलिए लोग अभी भी बहुत जरूरी मदों में ही खर्च कर रहे हैं। लोगों को घर, कार आदि के कर्ज की किस्तें चुकाना भारी पड़ रहा है। करोड़ों लोगों के सामने नियमित आमद का संकट बना हुआ है। जब तक लोगों के पास रोजगार नहीं होगा और नियमित आय की गांरटी नहीं होगी, तब तक किसी के लिए भी बचत या निवेश के बारे में सोच पाना तो सपना ही होगा।

बचत के बारे में लोग तभी सोच सकते हैं जब नियमित और अच्छी आय हो। पर अब हालात साल भर पहले जैसे नहीं रह गए हैं। अब महंगाई ने आमजन की कमर तोड़ दी है। केंद्र और राज्य सरकारें अलग अपनी कंगाली का रोना रो रही हैं। इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत रोजगार सृजन के उपायों पर काम करने की है, ताकि लोगों को काम मिले और उनके हाथ में पैसा आना शुरू हो। वरना आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी के दलदल में और धंसता चला जाएगा।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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