लंबे समय से लोग इस इंतजार में हैं कि अब तो महंगाई कम हो और राहत मिले। लेकिन हाल में आए थोक और खुदरा महंगाई के आकंड़े जो हालात बयां कर रहे हैं, उनसे नहीं लगता है कि निकट भविष्य में महंगाई से निजात मिलने वाली है। इस साल फरवरी में थोक महंगाई की दर 4.17 फीसद तक पहुंच गई, जो जनवरी में 2.03 फीसद थी, यानी एक ही महीने में दो गुनी से ज्यादा। चिंताजनक यह है कि फरवरी में थोक महंगाई दर पिछले सत्ताईस महीनों में सबसे ज्यादा रही।
इससे पहले नवंबर 2018 में थोक महंगाई दर 4.47 फीसद तक चली गई थी। अगर खुदरा महंगाई दर की बात करें तो यह और सिर चढ़ कर रुला रही है। फरवरी की खुदरा महंगाई दर पांच फीसद से ऊपर रही। कहा जा रहा है कि प्याज, दालों, दूध, फल, सब्जियों, पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ने से थोक महंगाई बढ़ी है। पिछले कुछ समय में पेट्रोल और डीजल के दामों ने आम आदमी पर जो कहर बरपाया है, उसका नतीजा महंगाई के रूप में देखने को मिल रहा है। लेकिन लगता है कि महंगाई की मार झेल रही विशालकाय आबादी की पीड़ा शायद सरकार के कानों तक नहीं पहुंच रही। वरना सरकार कुछ तो ऐसे कदम उठाती जो राहत देने वाले होते।
पेट्रोल और डीजल महंगा होने के साथ ही रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजें भी महंगी होती चली जाती हैं। हर सामान का दाम सीधे ढुलाई से जुड़ा है। आम आदमी को महंगाई इसलिए भी ज्यादा रुलाती है कि डीजल के दाम बढ़ते ही उन चीजों के दाम आसमान छूने लगते हैं जिनके बिना गुजारा संभव नहीं है, जैसे- दूध, सब्जियां, फल, दालें, प्याज। शराब, सिगरेट महंगी हो जाएं, या कारें और दूसरे उपभोक्ता सामान महंगे होते रहें तो इतना असर नहीं पड़ता।
लेकिन जब गरीब की थाली पर भी महंगाई की बेरहमी दिखने लगेगी तो वह क्या खा पाएगा? रसोई गैस सिलेंडर दो महीने में ही सवा दो सौ रुपए तक महंगा हो गया। यह नहीं भूलना चाहिए कि देश में करोड़ों की आबादी ऐसी है जिसकी आमदनी औसत दस हजार रुपए महीना भी नहीं है। इसी में उसे रहने, खाने, कपड़े, दुख-बीमारी, बच्चों की शिक्षा, परिवहन का खर्च जैसी जरूरतें पूरी करनी होती हैं। ऐसे में यह कम चिंताजनक बात नहीं है कि कैसे एक आम परिवार अपना गुजारा कर पा रहा होगा! फिर पिछले एक साल में कोरोना महामारी संकट के कारण भी करोड़ों लोगों की माली हालत बदतर हो गई है। अभी भी बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में महंगाई का चाबुक भी चल रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि हाल की महंगाई की जड़ पेट्रोल और डीजल के बढ़े हुए दाम हैं। तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होने के तर्क दे रही हैं। लेकिन असल समस्या यह है कि लंबे समय से केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क, मूल्य वर्धित कर (वैट) जैसे करों को थोप कर अपना खजाना भरने में लगी है। यह पैसा आम आदमी की जेब से ही निकल रहा है।
सरकारें इस हकीकत को बखूबी समझती हैं कि मरता क्या न करता। दूध, सब्जी और दालें तो लोग खरीदेंगे ही, चाहे कितनी महंगी क्यों न होती जाएं। जनता के प्रति यह असंवेदनशील रुख ही महंगाई में आग में घी का काम कर रहा है। पिछले दिनों वित्त मंत्री ने संसद में कहा था कि केंद्र और राज्यों को मिल कर पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाले करों में कटौती करके लोगों को राहत देनी चाहिए। फिर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में भी लाने की बातें उठीं। पर अब तो सरकार ने फिलहाल इससे मुंह ही फेर लिया है। ऐसे में कैसे महंगाई से निजात मिलेगी!
सौजन्य - जनसत्ता।
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