एक बार फिर कोरोना संक्रमण में तेजी आने से स्वाभाविक ही सरकारों के माथे पर बल नजर आने लगा है। इस संक्रमण को शुरू हुए एक साल हो गया। इस पर काबू पाने के लिए शुरू में पूरे देश में पूर्णबंदी लगाई गई थी। फिर चरणबद्ध तरीके से उसे हटाया गया और जांचों और इलाज में तेजी लाई गई। लोगों को जागरूक बनाने और कोविड नियमों का कड़ाई से पालन कराने पर जोर दिया गया।
इसके चलते संक्रमण की दर घट कर काफी नीचे चली गई। लगने लगा कि इस विषाणु से अब निजात मिलने वाला है। पिछले महीने से इसके टीकाकरण अभियान में भी तेजी लाई गई, तो यह भरोसा और मजबूत हुआ कि जल्दी ही कोरोना को जड़ से खत्म किया जा सकेगा। मगर इसकी दूसरी लहर आ गई और इसका वेग बहुत खतरनाक दिखाई दे रहा है। अब इसमें कोरोना विषाणु के कई बदले हुए रूप शामिल हो गए हैं, जो पहले वाले विषाणु की अपेक्षा अधिक खतरनाक माने जा रहे हैं।
इनका संक्रमण पहले की अपेक्षा दोगुनी रफ्तार से फैल रहा है। बुधवार को बावन हजार से अधिक लोग संक्रमित हुए। संक्रमितों के ठीक होने की दर भी पहले की अपेक्षा धीमी है। इस तरह कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा चिंता का कारण बनी हुई है।
होली नजदीक है। कई राज्यों ने सार्वजनिक रूप से होली का त्योहार मनाने पर रोक लगा दी है। दिल्ली और दूसरी जगहों पर सार्वजनिक सभाओं, धरना-प्रदर्शनों आदि पर रोक लगाने के बारे में सोचा जा रहा है। मगर चूंकि बाजारों, सार्वजनिक वाहनों, अस्पतालों वगैरह में भीड़भाड़ पहले की तरह जमा हो रही है, इसलिए इस लहर में संक्रमण का चक्र तोड़ना बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। पूर्णबंदी के अनुभव कुछ अच्छे नहीं रहे। अर्थव्यवस्था पर उसकी बहुत बुरी मार पड़ी है।
उसके चलते लाखों लोगों के रोजगार, नौकरियां और कारोबार छिन गए। बाजार अब तक पटरी पर नहीं लौट सका है। इसलिए सरकारें पूर्णबंदी जैसा कदम उठाने से बच रही हैं। पर सीमित समय के लिए कर्फ्यू और बंदी जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। इससे लोगों की गतिविधियों को नियंत्रित करने में कुछ तो मदद मिलेगी। संवेदनशील इलाकों की पहचान कर छोटे-छोटे हिस्सों में बांट कर बंदी लागू करने पर विचार हो रहा है।
इस तरह संक्रमितों की पहचान और उनका इलाज करने में काफी मदद मिल सकती है। मगर इन तमाम प्रयासों के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण है कि लोग खुद अनुशासन बरतें। हाथ धोने, उचित दूरी का पालन करने, प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने वाले टीके लगवाने के लिए तत्पर हों, तो इस विषाणु पर काबू पाने का भरोसा कुछ अधिक बढ़ेगा।
मगर देखा जा रहा है कि बहुत सारे लोग जैसे मान बैठे हैं कि कोरोना का भय अब समाप्त हो चुका है। दूर-दराज के गांवों में इसके संक्रमण को लेकर उतनी चिंता नहीं है, जितना शहरों और कस्बों में है। शहरों की अबादी सघन होती है और सार्वजनिक वाहनों, बाजारों, दफ्तरों, अस्पतालों आदि में भीड़ को नियंत्रित करना अक्सर कठिन हो जाता है।
उसमें बहुत सारे लोग ठीक तरीके से नाक-मुंह ढंकना तक जरूरी नहीं समझ रहे। अब तक की महामारियों के अनुभव यही रहे हैं कि अगर लोग में जागरूकता आए और वे बीमारी से निपटने में सहयोग करें, तो उस पर जल्दी काबू पा लिया जाता है। मगर कोरोना को लेकर अगर लोगों में अपेक्षित जागरूकता नहीं दिखाई दे रही है तो सरकारों को कुछ सख्त कदम उठाने ही चाहिए, नहीं तो यह दूसरी लहर अधिक नुकसान कर सकती है।
सौजन्य - जनसत्ता।
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