वर्चुअल समाज का बढ़ता दायरा (प्रभात खबर)

By अंबरीश गौतम 

 

 

वैश्वीकरण को एक प्रक्रिया के रूप में समूचे विश्व को एकीकृत करने का माध्यम माना गया है. इसमें दूरस्थ से निकटस्थ को और निकट स्थान से दूरस्थ क्षेत्रों को जोड़ने की क्षमता है. इसी क्षमता के कारण ही वैश्वीकरण ने भूमंडल के विभिन्न क्षेत्रों, भूखंडों, स्थलों और जनसांख्यिकीय आकृति को एक-दूसरे से जोड़ने में सफलता प्राप्त की है. इन्हें जोड़ने में पूंजी, तकनीक, संसाधन, वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद-बिक्री की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इसी प्रक्रिया ने पूरे विश्व को एकीकृत किया है, जहां पर भाषा, राजनीति, शिक्षा, संस्कृति, शासन और आचार-विचार के विविध स्वरूपों में एकरूपता बनाने का प्रयास किया गया है.



यह उसी तरह से है, जैसे किसी विस्तृत जमीन का समतलीकरण करते हुए उसे खेल के मैदान में रूपांतरित कर दिया जाता है. यह प्रक्रिया इस प्रकार से की जाती है कि खेल के मैदान के एक छोर से दूसरे छोर तक आसानी से नजर रखी जा सके और संपर्क बनाये रखा जा सके.



वैश्वीकरण के माध्यम से विश्व की सभी संस्थाओं, जैसे आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक माध्यमों को इस प्रकार के सांचे में ढाला गया है कि वे भी खेल के मैदान के विभिन्न बिंदुओं के रूप में कार्य कर सकें. साथ ही उनमें कुछ इस प्रकार का समन्वय स्थापित किया जा सके कि एक छोर से खींची जाने वाली रस्सी दूसरे छोर पर स्थित संस्था संरचना को जोड़ कर उसमें वांछित परिवर्तन कर सके. कहने का तात्पर्य है कि यदि एक छोर पर राजनीतिक बयार बहे, तो अंतिम छोर की भी राजनीति प्रभावित हो. यदि एक छोर पर क्रांति आये, तो अंतिम छोर भी उसी के अनुरूप परिवर्तित हो सके.


हालांकि वैश्वीकरण द्वारा संपन्न समतलीकरण की इस प्रक्रिया में एक तत्व कहीं न कहीं छूटा हुआ दिखाई पड़ता है, वह है- विभिन्न क्षेत्रों के बीच आपसी संपर्क एवं संवाद. संपर्कों और संवादों की यह व्यवस्था मानव रहित नहीं स्थापित की जा सकती है, क्योंकि उससे न तो उसमें पूर्णता आ पायेगी और न ही भविष्य में होनेवाली किसी मानवीय भूल से इनकार किया जा सकता है.


ऐसी स्थिति में संपर्क एवं संवाद के माध्यम के रूप में वर्चुअलीकरण की प्रक्रिया आरंभ की गयी है. यह प्रक्रिया मूल रूप से सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना तकनीक पर आधारित है. इसमें समतल किये गये खेल के मैदान के विभिन्न बिंदुओं के रूप में रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नॉन-ह्यूमन कम्युनिकेशन, इंटरनेट, सेटेलाइट, टेक्नोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी और नैनो पार्टिकल्स आदि का प्रयोग आरंभ हो चुका है.


आज के दौर में आरंभ की गयी यह प्रक्रिया रोबोटिक्स पर आधारित है, जहां पर मनुष्य का मनुष्य के बीच संपर्क फाइबर ऑप्टिक्स पर टिका है. इन फाइबर ऑप्टिक्स के माध्यम से संचालित की जाने वाली सूचनाएं बिना गलती और बिना छेड़छाड़ के एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजी जा रही हैं. इसमें लेशमात्र की भी गलती की गुंजाइश नहीं रहती है. इस तकनीकी उन्नति की ही देन है कि मानवीय न्यूरॉन से बनने वाले संपर्क सूत्र अब ऑप्टिकल न्यूरॉन से बनते हुए संचालित किये जा रहे हैं.


संचालन की यह प्रक्रिया सिर्फ वैश्विक स्तर की विभिन्न संस्थाओं के बीच संपर्क सूत्र का माध्यम नहीं रही है, बल्कि मानव जीवन के उपयोग में आने वाली छोटी-छोटी संस्थाओं जैसे परिवार, सामाजिक सरोकार, मनुष्यों के आपसी संबंध, बात-व्यवहार, शिक्षा आदि सभी गतिविधियों को अपने घेरे में ले चुकी है. यह परिवर्तन इतना प्रभावी रूप ले चुका है कि इससे वर्तमान में विश्व का कोई भी व्यक्ति अपने आपको अलग नहीं कर पा रहा है.


वास्तव में मनुष्य की ऑप्टिकल फाइबर पर बढ़ती हुई यही निर्भरता वर्चुअल दुनिया का निर्माण कर रही है. आज के दौर का कोई संस्थान इस तकनीकी बदलाव से अछूता नहीं है. दूसरे शब्दों में कहें, तो यह तकनीक, क्षमता उन्नयन और विकास की वाहक बन रही है. चाहे स्कूल, कॉलेज हों, सरकारी कार्यालय हों या पूजा-पाठ हों, व्यापार या वाणिज्य हों, खाद्यान हों, सभी वर्चुअल ग्राउंड बन गये हैं. इसकी खासियत है कि इसमें बिना प्रत्यक्ष उपस्थिति के मनुष्य अपनी समूची आवश्यकताओं की पूर्ति कर पा रहा है. यही वर्चुअल दुनिया है तथा संपादित की जाने वाली प्रक्रिया वर्चुअलाइजेशन. वर्चुअल संरचना के निर्माण में वर्तमान संचार सुविधाओं ने क्रांतिकारी योगदान दिया है.


ऐसा लगता है कि समाज के स्तर पर पूर्व में स्थापित सामाजिक संरचना के सामानांतर एक नयी वर्चुअल सामाजिक संरचना निर्मित हो गयी है, जिसमें व्यक्तियों का आमने-सामने होना आवश्यक नहीं है, बल्कि यह वर्चुअल सामाजिक संरचना लोगों को आपस में जोड़े हुए है. इसे वर्चुअल सामाजिक संपर्क कहा जा सकता है. इसमें क्रिया है, प्रतिक्रिया है और अन्तः क्रिया भी है, जिसमें सभी सामाजिक गतिविधियां सिमट-सी गयी हैं. सामाजिक गतिविधियों में हो रहे इस बदलाव के कारण नये सामाजिक परिदृश्य का निर्माण हो रहा है. हालांकि,


इस प्रक्रिया से मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव भी दिखाई पड़ रहे हैं, जिसमें चिड़चिड़ापन, मानसिक अव्यवस्था, अकेलापन, विलगाव जैसी स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं. मानसिक अस्वस्थता और अकेलेपन जैसी चिंताओं से समाज में नयी-नयी प्रकार की बीमारियां भी उत्पन्न हो रही हैं. हालांकि, इन परिस्थितियों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि निश्चित तौर पर हम वैश्विक समाज से निकल कर वर्चुअल समाज का निर्माण कर रहे हैं. यही वैश्विक समाज के बाद का वर्चुअल समाज है.

सौजन्य - प्रभात खबर।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment