पूरे देश में महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस चर्चा में है और जिस प्रकार की नकारात्मक चर्चा हो रही है वह मुंबई पुलिस की गौरवशाली परम्परा को कलंकित कर रही है। जिस मुंबई पुलिस की प्रशंसा सम्पूर्ण वि·ा में होती थी‚ उसके द्वारा इस प्रकार से कृत्य किए जाने पर लोग हैरान और परेशान हैं। ये बात सच है सभी क्षेत्रों में आपराधिक लोग रहते हैं और मुंबई पुलिस इससे अछूती नहीं है‚ लेकिन सरकार का काम रहता है उसको किस प्रकार से कंट्रोल किया जाए‚ लेकिन यह सरकार जब स्वयं अपराधियों को संरक्षण देकर अपराध को बढ़ावा दे रही है तो आम जनता तो अब भगवान भरोसे ही रहेगी।
इससे पूर्व मुंबई पुलिस की साख पर बट्टा लगाने की घटनाएं हो चुकी हैं। जैसे कि दया नायक व रविंद्र आंग्रे जैसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट। लखन भैया फर्जी एनकाउंटर मामले में १३ पुलिसकÌमयों को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तेलगी स्टैम्प कांड में भी मुंबई पुलिस के कई आला अफसरों को जेल की हवा खानी पड़ी थी। तत्कालीन पुलिस के रंजीत शर्मा को जेल जाना पड़ा था। साथ में संयुक्त पुलिस आयुक्त श्रीधर वगल व पुलिस उपायुक्त प्रदीप सावंत को भी। किसी भी संस्था की पहचान अच्छी बिल्डिंग से नहीं अपितु वहां बैठे व्यक्ति से होती है। योग्यता और वरिष्ठता को जब आप दरकिनार करके एजेंडे के तहत लोगों को प्रमुख पद देंगे तो यह परिस्थिति उत्पन्न होगी ही।
मुंबई पुलिस में चर्चा है कि एक असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर को सरकार को इतना संरक्षण प्राप्त था कि बहुत सारे आईपीएस अधिकारी तथा सचिन वझे से सीनियर लोग उसे सर कहकर बोलते थे। कारण स्पष्ट था सचिन वझे के द्वारा ट्रांसफर–पोस्टिंग होती थी। सचिन वझे जिस क्राइम ब्रांच के इंटलीजेंस को हेड कर रहा था वह पद पुलिस इंस्पेक्टर का है‚ जिसे एक असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर हेड कर रहा था। कारण स्पष्ट है उस विभाग को सरकार ने वझे के द्वारा वसूली केंद्र बना रखा था। सचिन वझे एक समय शिवसेना पार्टी के प्रवक्ता रहे हैं तथा उनका पीछे का इतिहास भी अपराधियों जैसा रहा है। ख्वाजा यूनुस कांड को याद कीजिए। उस सचिन वझे के लिए भाजपा सरकार में शिव सेना नौकरी में वापस लाने के लिए उद्धव ठाकरे तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को फोन करके सिफारिश कर रहे थे‚ लेकिन देवेंद्र फड़नवीस का संकल्प था कि अपराधियों को सत्ता से दूर रखना जिसके तहत उन्होंने सचिन वझे को नौकरी में वापस नहीं लाया। अब जब स्वयं यह तीन पहियों की सरकार चल रही हो तो वझे की वापसी को कैसे रोका जा सकता है। वझे को लाकर वसूली केंद्र का प्रमुख व्यक्ति उसे नियुक्त कर दिया गया है। वझे की ताकत का आप इसी बात से अंदाजा निकाल सकते हैं‚ वझे मुख्यमंत्री से मीटिंग करते थे‚ गृह मंत्री से मीटिंग करते थे‚ पुलिस आयुक्त से मीटिंग की खबर बनती थी। जो लोग सरकारी व्यवस्था जानते हैं; उनको पता है सरकारी प्रोटोकाल क्या होता है‚ लेकिन महाराष्ट्र सरकार को प्रोटोकाल से क्या लेना देनाॽ ॥ महाराष्ट्र सरकार जिस प्रकार सचिन वझे के बचाव में उतरी थी‚ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कहते हैं सचिन वझे कोई ओसामा बिन लादेन नहीं है। इस तरह का बचाव करना कितना हास्यास्पद है तथा सरकार इस मामले में कितने गहरे तरीके से जुड़ी हुई है। यह मामला यदि एटीएस के पास रहता तो मनसुख हिरेन की हत्या को आत्महत्या सिद्ध करके मामले को रफा–दफा कर देते‚ लेकिन अन्याय के विरुûद्ध लड़ने वाले तथा महाराष्ट्र के हितों को सर्वोपरि रखने वाले देवेंद्र फड़नवीस ने यह मुद्दा इतना जोर से उठाया कि यह आम जनता का मुद्दा हो गया। मुंबई और महाराष्ट्र में रहने वाली आम जनता की प्रतिक्रिया है कि जब मुकेश अम्बानी के विरु द्ध इस प्रकार का षड्यंत्र सरकार से संरक्षण प्राप्त पुलिस अधिकारी कर सकता है तो आम जनता की रक्षा कैसे होगी‚ यह जो डर का माहौल बना हुआ उसका केवल एक मात्र उपाय योग्य लोगों का चुनाव करना ही है।
इस मामले की जांच एनआईए कर रही है। सचिन वझे गिरफ्तार भी हो चुके हैं। बहुत सारे राज खुलेंगे‚ संरक्षण देने वाले भी गिरफ्त में आएंगे ऐसी लोगों की आशा है। मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह का तबादला करके उनको डीजी होमगार्ड कर दिया गया। हेमंत नगराले मुंबई के नये पुलिस आयुक्त बनाए गए हैं। हेमंत नगराले ने चार्ज सम्भालते ही कहा मुंबई पुलिस की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा है उसको बहाल करना चुनौती है। सवाल यह है जब तक सरकार माफियाओं को पालने की मानसिकता से नहीं निकलेंगी तब तक इस प्रकार की गतिविधियां चलती रहेंगी। राजनीति का अपराधिकरण होना अच्छा नहीं है‚ जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो प्रदेश किस तरफ जाएगा उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह सरकार अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सम्मान की रक्षा करने में भी नाकामयाब रही है। तभी तो महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार से आईपीएस लॉबी बुरी तरह से नाराज हो गई है। वरिष्ठ आईपीएस संजय पांडे ने मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखकर कहा है कि उनके साथ अन्याय हुआ है।
पुलिस फोर्स में उनके कॅरियर को लेकर एक मजाक बना दिया गया है। सबसे वरिष्ठ अधिकारियों में से एक संजय पांडे को होमगार्ड डीजी के पद से हटाकर दूसरी जगह भेज दिया गया है। पांडे़ आरोप लगाते हैं कि ‘वझे पर निश्चित ही किसी का हाथ है। बिना किसी सीनियर के सपोर्ट के वह यह सब कैसे कर सकता हैॽ इसकी जांच होनी चाहिए वझे के पीछे कौन हैॽ उनको पकड़ना चाहिए। यूपीएससी के नियमों का महाराष्ट्र में किस तरह से मजाक बनाया जा रहा है‚ उसका नतीजा आज सबके सामने है। जिस तरह से जूनियर अधिकारियों को बड़ी पोस्ट मिलती है‚ उसी का नतीजा है कि सचिन वझे या एंटीलिया जैसे केस होते हैं।' पांडे़ कहते हैं मैं नाराज नहीं हुआ हूं बल्कि जुल्म हुआ है मेरे ऊपर। मैंने मुख्यमंत्री और गृह मंत्री को लिखा है। बहुत से लोग नाराज हैं। मैं किसी का नाम नहीं लूंगा। आज संकट के दौर में महाराष्ट्र खड़ा है तथा देवेंद्र फड़नवीस के सुशासन को याद कर रहा है। मुंबई पुलिस की इस दुर्दशा से अच्छे और ईमानदार अधिकारी बहुत ही मायूस दिख रहे हैं।
राजनीति का अपराधिकरण होना अच्छा नहीं है‚ जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो प्रदेश किस तरफ जाएगा उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह सरकार अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सम्मान की रक्षा करने में भी नाकामयाब रही है। तभी तो महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार से आईपीएस लॉबी बुरी तरह से नाराज हो गई है। वरिष्ठ आईपीएस संजय पांडे ने मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखकर कहा है कि उनके साथ अन्याय हुआ है॥
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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