खतरे की घंटी (जनसत्ता)

सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, देश के दूसरे राज्यों में भी फिर से कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी आना चिंता पैदा करने वाली बात है। अभी तक माना जा रहा था कि भारत में महाराष्ट्र और केरल जैसे इक्का-दुक्का राज्यों को छोड़ दें तो देश में अब कोरोना संक्रमण का फैलाव थम गया है या फिर जहां भी नए मामले मिल रहे हैं, वहां नाममात्र के हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों में यह बात गलत साबित हो गई है। ढाई महीने में पहली बार ऐसा हुआ जब देशभर में शुक्रवार को तेईस हजार से ज्यादा मामले आए।

इसमें चौदह हजार तीन सौ मामले अकेले महाराष्ट्र के हैं। जिन राज्यों में फिर से संक्रमण के मामलों में तेजी देखने को मिली है, उनमें महाराष्ट्र और केरल के अलावा पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक और तमिलनाडु शामिल हैं। देश में संक्रमण के कुल मामलों में छियासी फीसद मामले इन्हीं राज्यों से हैं। इसलिए यह खतरे की घंटी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही चेतावनी दे चुका है कि महामारी का खतरा अभी टला नहीं है और कई देशों को इसकी दूसरी, तीसरी लहर का सामना करना पड़ सकता है।

ताजा हालात पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़े और गंभीर खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के पीछे बड़ा कारण लोगों का फिर से लापरवाह हो जाना है। पिछले कुछ दिनों में अलग-अलग शहरों में एक ही जगह पर संक्रमण के कई मामले देखने को मिले। मुंबई की इमारत में सौ से ज्यादा लोग संक्रमित निकले।

राजस्थान के उदयपुर जिले में एक छात्रावास में बीस लड़कियां संक्रमित पाई गईं। कई शहरों में इसी तरह के संक्रमण के मामले आए हैं। इससे यह साफ पता चलता है कि संक्रमण के फैलाव की रफ्तार कम नहीं पड़ी है। कहने को जनजीवन पहले की तरह सामान्य हो चला है और बाजारों में खासी भीड़ है। लेकिन देखने में आ रहा है कि बड़ी संख्या में लोग बिना मास्क लगाए घूम रहे हैं। सुरक्षित दूरी का कोई पालन नहीं हो रहा। संक्रमण से बचाव के लिए जो भी सावधानियां बरती जानी चाहिए, उनकी कोई परवाह नहीं हो रही। ऐसे में कौन संक्रमण का वाहक होगा, कोई नहीं जान सकता।

हैरानी की बात यह है कि संक्रमितों की पहचान के लिए जिस बड़े पैमाने पर राज्य सरकारों को आरटी-पीसीआर जांच का अभियान चलाना चाहिए था, उसे लेकर राज्यों ने गंभीरता नहीं दिखाई। बल्कि लापरवाही की हद तो यह है कि चल रहे जांच शिविरों को भी यह मान कर बंद कर दिया गया कि अब तो कोरोना का प्रकोप कमजोर पड़ चुका है। इस जांच से संक्रमितों का पता चलता और उन्हें एकांतवास में रखा जाता, ताकि संक्रमण फैलने का खतरा काफी कम हो जाता। देश में अब टीकाकरण का अभियान भी जोरों पर है। लेकिन टीका आ जाने और लगवाने लेने का मतलब यह भी नहीं कि हम बचाव के उपायों को ताक पर रख दें।

पर्याप्त संख्या में लोगों की जांच, टीकाकरण और बचाव के नियमों का सख्ती से पालन ही संक्रमण को पैलने से रोकने का एकमात्र उपाय है। लेकिन इन सभी मोर्चों पर घोर लापरवाही देखने को मिल रही है। टीकाकरण को लेकर लोगों के मन में तमाम तरह की भ्रांतियां बनी हुई हैं और इसी का नतीजा है कि लोग पहली खुराक के बाद दूसरी खुराक लेने से बच रहे हैं। भलाई इसी में है कि हम महामारी विशेषज्ञों की इस चेतावनी को बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें कि जरा-सी लापरवाही भी देश को फिर से संकट में डाल देगी।

सौजन्य - जनसत्ता।
Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment