भारत के पड़ोसी और नजदीकी देशों में अशांति पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड आंदोलनों के घेरे में (पंजाब केसरी)

इस समय भारत के चार पड़ोसी और नजदीकी देश पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल और थाईलैंड अशांति की चपेट में हैं। जैसे-जैसे इन देशों में सत्तारूढ़ धड़ों में निरंकुशता और स्वार्थलोलुपता बढ़ रही है, उसी अनुपात में लोगों में असंतोष पैदा हो रहा है और

इस समय भारत के चार पड़ोसी और नजदीकी देश पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल और थाईलैंड अशांति की चपेट में हैं। जैसे-जैसे इन देशों में सत्तारूढ़ धड़ों में निरंकुशता और स्वार्थलोलुपता बढ़ रही है, उसी अनुपात में लोगों में असंतोष पैदा हो रहा है और वे आंदोलन की राह पर चल पड़े हैं। पाकिस्तान में महंगाई, भ्रष्टाचार, लाकानूनी, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार आदि के विरुद्ध पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पी.एम.एल.(एन) और पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की पार्टी (पी.पी.पी.) सहित देश के 11 विरोधी दलों ने प्रधानमंत्री इमरान खान के विरुद्ध जोरदार अभियान छेड़ रखा है और सड़कों पर उतरे हुए हैं। 

यहां तक कि उत्तेजित भीड़ ने कुछ समय पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा के रिश्तेदार के कराची स्थित शॉपिंग मॉल को लूट कर आग भी लगा दी थी। हालांकि इमरान खान ने पिछले दिनों अपने विरुद्ध विरोधी दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में विजय प्राप्त कर ली है परंतु कहना मुश्किल है कि उनकी सरकार कब तक टिकेगी। इसी प्रकार पड़ोसी म्यांमार में सेना की तानाशाही से आजादी के लिए आंदोलन इन दिनों जोरों पर है। वहां सेना द्वारा 1 फरवरी के तख्ता पलट के बाद लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेता  ‘आंग-सान-सू-की’ समेत अन्य नेताओं को जेल में डालने के विरुद्ध आंदोलन में 240 लोगों की मौत हो चुकी है। सड़कें युद्ध का मैदान बन गई हैं। हर ओर आंसू गैस व धुएं के बादल छाए हुए हैं। 

1948 में अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद भी वहां के लोगों को आजादी नहीं मिली और वे तब से अब तक अधिकांश अवधि तक सैनिक जुंडली के गुलाम ही रहे हैं। उल्लेखनीय है कि 1962 में जनरल ‘ने-विन’ ने ‘विन मोंग’ की सरकार का तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया था और उसके सनकपूर्ण फैसलों की वजह से म्यांमार दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल हो गया। 

1988 में ने-विन की सरकार के विरुद्ध छात्रों ने विद्रोह कर दिया। उसी आंदोलन में ‘आंग-सान-सू-की’ विपक्ष की नेता बन कर उभरीं। जनरल ने-विन के बाद जनरल ‘सीन ल्विन’, जिसे आंदोलनकारियों के क्रूरतापूर्वक दमन के लिए ‘रंगून का कसाई’ कहा जाता था, ने सत्ता संभाली परंतु सत्रह दिनों के बाद ही ने-विन ने उसका तख्ता पलट कर पुन: सत्ता हथिया ली और फिर 20 वर्षों तक सत्तारूढ़ रहा। 

म्यांमार में 2015 में चुनाव हुए और 2016 में ‘आंग-सान-सू-की’ को राष्ट्रपति ‘हति क्वा’ की सरकार में ‘शिक्षा तथा विद्युत ऊर्जा मामलों’ की विदेश मंत्री तथा ‘स्टेट काऊंसलर’ बनाया गया और अब 1 फरवरी को उनकी सरकार का तख्ता पलट देने के समय वह म्यांमार के सर्वोच्च निर्वाचित नेता ‘स्टेट काऊंसलर’ के पद पर थीं। सैनिक दमन के विरुद्ध म्यांमार के साथ लगते देशों में रहने वाले लोगों द्वारा भी प्रदर्शन शुरू कर दिए गए हैं। 21 मार्च को ताईवान के ‘ताइपे’ में ‘आजादी चौक’ पर म्यांमार मूल के सैंकड़ों लोगों ने सेना के विरुद्ध प्रदर्शन किया। 

म्यांमार के साथ ही पड़ोसी नेपाल में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार के विरुद्ध जनआक्रोष भड़का हुआ है और जनता राजतंत्र तथा हिन्दू राज की बहाली के लिए आंदोलन कर रही है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ‘ओली’ की  सरकार की असफलताओं से देश का युवा वर्ग निराश है क्योंकि देश में राजतंत्र की समाप्ति के बाद भी कोई विकास नहीं हुआ। नेपाल ने 2015 में नया संविधान अपनाया और उसके बाद नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के के.पी. शर्मा ‘ओली’ प्रधानमंत्री बने। 2017 के चुनाव में वहां फिर कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई परंतु ‘ओली’ की तानाशाहीपूर्ण नीतियों और मनमानियों के विरुद्ध लोग सड़कों पर उतर आए और उनका कहना है: 

‘‘अब कम्युनिस्ट पार्टी के नेता नए राजा बन गए हैं। वे वही काम कर रहे हैं जो उन्हें लाभ पहुंचा रहा है। न्याय पालिका, जिसे शक्तिशाली होना चाहिए था, अब नेताओं की जेब में है। सत्तारूढ़ व विपक्षी धड़ा दोनों ही अपाहिज हैं।’’ पड़ोसी पाकिस्तान, म्यांमार और नेपाल के बाद अब एक अन्य एशियाई देश थाईलैंड में भी राजशाही के विरुद्ध और देश में लोकतंत्र की बहाली की मांग के लिए हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। गत शनिवार को देर रात लोगों ने बैंकाक स्थित ‘ग्रैंड पैलेस’ के बाहर आग लगा दी और प्रदर्शन किया जो आधी रात तक जारी रहा। 

देश में राजशाही समाप्त करने की मांग कर रहे लोकतंत्र समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे, उन पर पानी की बौछारें छोड़ीं तथा रबड़ की गोलियां भी चलाईं जिनसे दर्जनों लोग घायल हो गए। उपरोक्त स्थितियों से स्पष्ट है कि इस समय भारत के पड़ोसी व नजदीकी देश अशांति की चपेट में हैं, जिसे देखते हुए सरकार को एक-एक कदम फूंक-फूंक कर उठाने और सुरक्षा प्रबंध तथा अपनी गुप्तचर प्रणाली को और मजबूत तथा चाक-चौबंद रखने की आवश्यकता है।—विजय कुमार 


सौजन्य - पंजाब केसरी।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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