हादसे की आग (जनसत्ता)

कोलकाता में एक बहुमंजिला इमारत में लगी आग और उसमें नौ लोगों की मौत की खबर ने फिर व्यवस्था में घुल चुकी लापरवाही को ही रेखांकित किया है। इस तरह की अनदेखी के तहत जब तक कोई बड़ा हादसा सामने नहीं आ जाता है, तब तक यही माना जाता है कि सब कुछ ठीक है। 


गौरतलब है कि कोलकाता के स्ट्रैंड रोड स्थित एक इमारत की सत्रहवीं मंजिल पर सोमवार की शाम आग लग गई। आग इतनी भयावह थी कि उसका धुआं कई मंजिल नीचे तक फैल गया। खबर के मुताबिक उसे बुझाने के लिए दमकलकर्मी जब लिफ्ट से ऊपर जा रहे थे तो वे भी रास्ते में फंस गए। नतीजतन, दम घुटने से चार दमकलकर्मियों सहित कुल नौ लोगों की जान चली गई। फिलहाल आग लगने के कारण सामने नहीं आए हैं, लेकिन यह माना जा सकता है कि किसी लापरवाही या हर हालत में सुरक्षित होने के भाव से उपजी अनदेखी की स्थिति की वजह से ही इतना बड़ा हादसा हो गया। 


आग बुझाने के लिए जल्दबाजी में एक असावधानी शायद यह भी हो गई कि दमकलकर्मियों ने सत्रहवीं मंजिल की ओर जाने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल किया। जबकि आग लगने की स्थिति में लिफ्ट का इस्तेमाल खतरे से खाली नहीं होता है। जो हो, जब व्यवस्थित तरीके से बनाई गई और सुरक्षित मानी जाने वाली इमारत में इस तरह का हादसा हो सकता है तो बाकी जगहों के बारे में सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है। इस हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को दस-दस लाख रुपए की मदद की घोषणा की गई है, लेकिन ऐसी सहायता से जान के नुकसान की भरपाई शायद मुमकिन नहीं हो पाती। यों कोलकाता में आग लगने की घटनाएं कुछ अंतराल पर सामने आती रही हैं, जिसमें जानमाल की व्यापक क्षति होती है। 


आमतौर पर हर मामले में बहुत मामूली लापरवाही ही बड़े हादसे की वजह बन जाती है। जब ऐसी लापरवाहियों पर सवाल उठाए जाते हैं तो प्रशासन की ओर से एक रटे-रटाए जवाब के तौर पर कहा जाता है कि मामले की जांच कराई जाएगी। सवाल है कि क्या हर हादसे के बाद यह मान लिया जाता है कि अब आगे ऐसी कोई घटना नहीं होगी! यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर रिहाइशी और व्यावसायिक इलाके में शॉर्ट सर्किट सहित आग लगने के जोखिम वाली हर परिस्थिति पर निगरानी हो, अगर कहीं कोई खराबी या लापरवाही हो, तो उसे तुरंत दूर किया जाए। किसी भी हादसे का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि भविष्य में वैसी घटना से बचाव के पुख्ता इंतजाम किए जाएं। कोलकाता की बसावट इस तरह है कि वहां हादसों की आशंका को लेकर हर वक्त किसी निश्चिंत भाव में रहने के लिए सब कुछ दुरुस्त होना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 


इसमें कोई शक नहीं कि आग लगने जैसे हादसों में कोई जानबूझ कर लापरवाही नहीं करता, लेकिन कोई छोटी चूक किस नतीजे की ओर बढ़ जाए, कहा नहीं जा सकता। घनी बस्तियों में घरों तक बिजली पहुंचाने के लिए तारों को जिस तरह एक जाल की बुनावट में देखा जाता है, उसमें शॉर्ट सर्किट की आशंका हमेशा बनी रहती है। ऐसी बस्तियों में आग की एक चिंगारी बड़े हादसे का जरिया बन सकती है। 


इसलिए सीधे आग जलाने के साथ-साथ खासतौर पर घरों में बिजली की आपूर्ति वाले तारों को पूरी तरह दुरुस्त रखने के लिए सावधानी और नियमित निगरानी की जरूरत है। इस व्यवस्थागत दायित्व को कमतर महत्त्व का काम मानना और खुद लोगों के बीच जागरूकता और प्रशिक्षण का अभाव भी आग लगने और जानमाल के नुकसान की घटनाओं की वजह बन जाता है। 

सौजन्य - जनसत्ता।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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