बाटला की हकीकत ( दैनिक ट्रिब्यून)

बहुचर्चित बाटला हाउस मामले में इंडियन मुजाहिदीन आतंकी आरिज खान को मौत की सजा के साथ मामला तार्किक परिणति तक पहुंचा है। इस मुद्दे पर बड़ा राजनीतिक प्रलाप सामने आया था। पूरे देश में हंगामा खड़ा किया गया। तमाम सियासी दांव-पेच खेले गये थे। मुठभेड़ को फर्जी बताया गया था। 


सपा के कई दिग्गज नेताओं और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इसके विरोध में आयोजित कार्यक्रम का मंच साझा किया था। दावा किया था कि यदि मुठभेड़ सच साबित हुई तो वे राजनीति छोड़ देंगी। दिल्ली पुलिस को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा गया कि समुदाय विशेष के युवाओं को निशाना बनाया जा रहा है। वोट बैंक के लिये सियासी रोटी सेंकने वाले नेताओं ने जांबाज इंस्पेक्टर की शहादत को भी नकारा। अब उसके परिजनों ने न्याय मिलने की बात कही है। 

निस्संदेह फैसला कांग्रेस समेत उन राजनीतिक दलों के लिये सबक है जो तथ्यों को नकार कर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठा रहे थे। निस्संदेह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। सोमवार को दिल्ली की साकेत कोर्ट ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या के लिये आरिज खान को दोषी करार दिया। अदालत ने अभियुक्त पर ग्यारह लाख का जुर्माना भी लगाया, जिसमें से दस लाख रुपये शहीद के परिवार को देने के निर्देश दिये गये हैं। 


दरअसल, दिल्ली पुलिस ने आतंकी आरिज के लिये यह कहकर फांसी की सजा मांगी थी कि यह महज हत्या का ही मामला नहीं वरन न्याय की रक्षा करने वाले कानून के रक्षक की हत्या का भी मामला है। कोर्ट ने माना भी कि आरिज समाज के लिये ही नहीं, राष्ट्र के लिये भी खतरा है। वह प्रशिक्षित आतंकवादी है और उसके सुधरने की उम्मीद नहीं है। आरिज और उसके साथी अन्य राज्यों में बम धमाकों से निर्दोष लोगों की हत्याएं करने की वजह से रहम के हकदार नहीं हैं। 


दरअसल, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 13 सिंतबर, 2008 में बम धमाकों की एक शृंखला में 39 लोग मारे गये थे। करोल बाग, ग्रेटर कैलाश, कनाट प्लेस व इंडिया गेट आदि पांच जगह हुए धमाकों के अलावा तीन जिंदा बम भी बरामद हुए थे। धमाकों से दिल्ली के दहलने के बाद अपराधियों की तलाश में 19 सितंबर, 2008 को बाटला हाउस के एक फ्लैट पर पुलिस ने दबिश दी थी। पुलिस दल की आतंकवादियों से मुठभेड़ में दो संदिग्ध आतंकी मारे गये थे। पकड़े गये एक आतंकी शहजाद को 2013 में उम्रकैद की सजा सुनायी गई थी। तब के भगोड़े आरिज खान को 2018 में भारत-नेपाल सीमा से गिरफ्तार किया गया। घटना के करीब बारह साल बाद फैसला आने से पीड़ित पक्ष ने इसे न्याय की जीत बताया है। वहीं इस मुद्दे पर लंबे चले राजनीतिक विवाद का भी पटाक्षेप हुआ है। अब केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस पर हमलावर है। वह ममता बनर्जी के उस कथन कि यदि मुठभेड़ सच निकली तो राजनीति से संन्यास ले लेंगी, के बाबत वचन निभाने की बात कर रही है। दरअसल, सपा व तृणमूल कांग्रेस ही नहीं, कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह व सलमान खुर्शीद ने भी मोर्चा खोला था। आजमगढ़ से लेकर दिल्ली में जंतर-मंतर तक प्रदर्शन किये गये थे। इसके बावजूद कि इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पड़ताल के बाद दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी गई थी। यह भी कि बाटला हाउस से जुड़े आतंकवादियों के नाम कालांतर अहमदाबाद, फैजाबाद, जयपुर तथा सूरत के बम धमाकों से जुड़े पाये गये थे। बहरहाल, हालिया फैसले ने तुष्टीकरण की राजनीति को ही बेनकाब किया है। बचाव पक्ष ने मामले में हाईकोर्ट जाने की बात कही है। साकेत कोर्ट ने भी फैसले की प्रति हाईकोर्ट को भेजी है क्योंकि निचली अदालत फांसी की सजा तो दे सकती है, मगर अमल हाईकोर्ट की पुष्टि के बाद ही होता है। बहरहाल, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया के बीच यह फैसला कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाने वाला है। 


सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment