नई दवाइयों और परीक्षण पर शोध आवश्यक (पत्रिका)

- डॉ. महावीर गोलेच्छा

हर वर्ष 24 मार्च को सम्पूर्ण विश्व में टीबी (ट्यूबरलोसिस) दिवस मनाया जाता है। यह दिवस इसलिए मनाया जाता है, ताकि इस बात की जागरूकता लाई जा सके कि इस भयानक रोग से मानव जाति को अभी मुक्ति मिलना बाकी है। इस रोग की रोकथाम और उपचार के संबंध में किए जा रहे प्रयासों की समीक्षा भी होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वैश्विक टीबी रिपोर्ट-2020 के अनुसार एड्स के बाद टीबी विश्व की सबसे गम्भीर स्वास्थ्य समस्या है। लगभग 20 साल पहले डब्ल्यूएचओ ने टीबी को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकालीन समस्या घोषित किया था। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए प्रयासों से टीबी की रोकथाम में कुछ सफलता मिली, लेकिन ये पर्याप्त साबित नहीं हुए। लाखों लोगों को टीबी का उपचार प्राप्त होता है, परन्तु जो लोग इससे वंचित रह जाते हैं या जिनमें इस रोग की जांच नहीं हो पाती है, वे सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हैं। इसलिए इस रोग के प्रति जागरूकता पैदा करना बहुत जरूरी है।

भारत में विश्व के सर्वाधिक टीबी रोगी हैं। टीबी के उपचार में सबसे बड़ी चुनौती इस क्षेत्र में नई दवाइयों तथा परीक्षण पर ध्यान नहीं देना है। एसटेंसिवली ड्रग रजिस्टेंट (एसडीआर) तथा मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी का इलाज बहुत ही मुश्किल है, जांच करना भी कठिन है। इसलिए इलाज के लिए नई तकनीक एवं दवा के लिए शोध की गति बढ़ाना बहुत जरूरी है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं जैसे जांच के लिए प्रयोगशालाओं, गुणवत्तापूर्ण दवाओं और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी टीबी उन्मूलन में सबसे बड़ी बाधा है। सरकार को इस पक्ष पर ध्यान देना चाहिए।

टीबी के आधे से ज्यादा मरीज निजी चिकित्सालयों में इलाज कराते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि ऐसे कुछ संस्थानों में टीबी की दवाओं का तार्किक रूप से सही उपयोग नहीं किया जाता है। जिन मरीजों को यह बीमारी नहीं होती, उनको भी टीबी की दवा दे दी जाती है। गौण रोगों के लिए एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती हैं, जिससे एमडीआर टीबी होने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए सरकारी एवं निजी चिकित्सकों को इससे जुड़ा विशेष प्रशिक्षण भी देना चाहिए। भारत में बिना चिकित्सकीय परामर्श के भी एंटीबायोटिक दवाइयां मिल जाती हैं। सख्त कानून बनाकर इस प्रवृत्ति को रोकना जरूरी है। सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर टीबी उन्मूलन के लिए साझा प्रयास करने चाहिए। पोलियो उन्मूलन हमारे सामने साझा प्रयासों का उदाहरण है।

यद्यपि भारत ने टीबी उन्मूलन के लिए काफी सराहनीय प्रयास किए हैं। डॉट्स कार्यक्रम को वैश्विक स्तर पर सराहा जाता है। लेकिन टीबी उन्मूलन के लिए अभी काफी लंबी लड़ाई लडऩी होगी। यदि भारत अपनी राष्ट्रीय स्ट्रेटेजिक योजना को प्रभावी रूप से मजबूत राजनीतिक इरादों एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक प्रशासनिक एवं नीतिगत सुधारों के साथ लागू करे, तो हम डब्ल्यूएचओ के 2050 के टीबी मुक्त विश्व के सपने को साकार कर सकते हैं।

सौजन्य - पत्रिका।
Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment