शशांक, पूर्व विदेश सचिव
करीब 15 महीने पहले 31 दिसंबर, 2019 को वुहान (चीन) प्रशासन ने पहली बार यह बताया कि वहां के अस्पतालों में दर्जन भर निमोनिया मरीजों का इलाज चल रहा है, जिनकी बीमारी की वजह स्पष्ट नहीं है। मगर तब यही कहा गया था कि यह वायरस इंसान से इंसान को संक्रमित नहीं कर रहा है। इसके एक पखवाडे़ के अंदर ही 11 जनवरी, 2020 को वहां के मीडिया ने वायरस से पहली मौत की पुष्टि कर दी। इसके पहले सरकार ने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी, इसलिए लाखों लोग नए साल का जश्न मनाने के लिए अपने-अपने घर आए और उत्सव मनाकर वापस देश-विदेश में अपनी कर्मभूमि पर लौट गए। वैज्ञानिकों का मानना है कि यही वह मोड़ था, जब कोरोना वायरस वुहान से पूरे चीन में और फिर विश्व भर में पहुंच गया। इसमें कोई शक नहीं कि अगर इसे वुहान शहर में ही थाम लिया जाता, तो दुनिया यूं घरों में दुबकने को मजबूर नहीं होती। हालांकि, अब भी इस वायरस के जन्म का ठीक-ठीक पता नहीं चल सका है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इसके बारे में अपनी जांच कर रहा है, लेकिन यह धारणा कुछ ठोस वजहों से बनी हुई है कि दुनिया को दर्द देने वाला कोरोना वायरस चीन की देन है।
आखिर ये कारण हैं क्या? दरअसल, चीन ने शुरू से ही सूचनाओं को छिपाने का भरसक प्रयास किया और अभी भी उसकी नीति कोई बदली नहीं है। वुहान सेंट्रल हॉस्पिटल के नेत्र-रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ली वेनलियांग ने जब अपने साथी डॉक्टरों को बताया कि सार्स जैसे वायरस के लक्षण कुछ मरीजों में दिख रहे हैं, तो स्थानीय पुलिस ने न सिर्फ उन्हें अपना मुंह बंद रखने को कहा, बल्कि वहां का प्रशासन भी उदासीन बना रहा। मगर जल्द ही ली की बातें सच साबित हुईं और खुद ली भी इस वायरस से अपनी जान गंवा बैठे। यही वजह है कि चीन सरकार द्वारा डब्ल्यूएचओ को भ्रम में रखने के आरोप सच जान पड़ते हैं। बल्कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो तब नाराज होकर डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली आर्थिक मदद रोकने का एलान भी कर दिया था और कहा था कि अगर समय पर इस संक्रामक वायरस के बारे में सूचना दी गई होती, तो काफी सारे लोगों की जान बचाई जा सकती थी। चीन से यह शिकायत अन्य देशों की भी है।
आलम यह है कि आज भी बीजिंग में बैठी सरकार हरसंभव बचने की कोशिश करती है। जैसे, डब्ल्यूएचओ की टीम जब महामारी के स्रोत का पता लगाने वुहान जाना चाहती थी, तब शुरुआत में उसे इसकी अनुमति नहीं दी गई। फिर कोरोना के शुरुआती मामलों से जुड़े आंकड़े तक उसे नहीं दिए गए। हालांकि, अब जांच टीम वुहान की उस प्रयोगशाला तक पहुंच चुकी है, जहां से इस वायरस के ‘लीक’ होने का अनुमान है। फिलहाल इसके विस्तृत नतीजों का सभी देश इंतजार कर रहे हैं।
कोरोना जैसी महामारी देने और छिपाने से चीन को खासा नुकसान पहुंचा है। यूरोप के मित्र राष्ट्र तो अब भी उससे खफा हैं, क्योंकि वे भी यही मानते हैं कि समय पर जानकारी मिलने से वहां हुए जान-माल के भारी नुकसान को टाला जा सकता था। चीन साख के संकट से भी जूझ रहा है। कोरोना संक्रमण-काल से पहले वह ‘विनिर्माण का गढ़’ माना जाता था, लेकिन अब मोबाइल उपकरण, दवा निर्माण जैसे क्षेत्रों की कंपनियां वहां से मुंह मोड़ने लगी हैं। वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भी चीन की भागीदारी घटी है और भारत समेत तमाम अन्य अर्थव्यवस्थाओं को इसका फायदा मिला है। कोरोना-काल में जिस निम्न गुणवत्ता के चिकित्सा-उपकरण चीन ने दूसरे देशों को निर्यात किए, उससे भी उसकी छवि को दाग लगा है।
यह वैश्विक संकट भारत के लिए नए अवसर लेकर आया है। हमारी अर्थव्यवस्था बेशक चीन के मुकाबले छोटी है, लेकिन ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का हमें फायदा मिलने लगा है। मैन्यूफैक्चरिंग के लिए अब कई देश हमारे यहां आने लगे हैं। यही नहीं, विश्व स्तर पर हमारी उपलब्धियों को दरकिनार करने वाले देश भी हमें अब सिर आंखों पर बिठाने को तैयार हैं। श्रीलंका, मालदीव जैसे एशियाई देश बीजिंग के बजाय नई दिल्ली को महत्व देने लगे हैं। नेपाल ने शुरुआत में भले ही चीन का समर्थन किया, मगर अब वहां की जनता सरकार के विरोध में सड़कों पर उतर आई है। दुनिया के ज्यादातर देशों में चीन की वैक्सीन को महत्व नहीं मिल रहा है और उसने अपने वैक्सीन के प्रचार के लिए जरूरी उदारता का भी प्रदर्शन नहीं किया है। ब्राजील के राष्ट्रपति ने तो भारत से टीके मिलने के बाद बाकायदा हनुमान जी की तस्वीर ट्वीट की, जिसका संकेत था कि जिस तरह से रामायण में लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आए थे, उसी तरह से ये टीके उनके नागरिकों की जान बचाने के लिए भारतवर्ष की तरफ से भेजे गए हैं। कभी हम अनेक चीजों के लिए चीन का मुंह ताका करते थे। मगर जरूरत के समय खराब उत्पाद भेजकर जब उसने अपनी भद पिटवाई, तो भारत सरकार ने खुद ही इन्हें बनाने का फैसला किया। इन सबका हमें काफी कूटनीतिक लाभ मिला है। 2020 के अमेरिकी चुनाव में कहा जा रहा था कि यदि डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव जीतेगी, तो नई सरकार का झुकाव चीन की तरफ होगा, जबकि रिपब्लिकन के सत्तारूढ़ होने पर भारत को तवज्जो मिलेगी। मगर जो बाइडन की सरकार ने चीन को आईना दिखा दिया है। क्षेत्रीय सुरक्षा के मद्देनजर गठित क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत की संयुक्त पहल) को लेकर अमेरिकी सरकार खासा संजीदा है। हालांकि, पिछले दिनों हुई इसकी बैठक में चीन को सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा गया, लेकिन यह स्पष्ट दिखा कि अमेरिका एशिया में सत्ता संतुलन बनाने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है। साफ है, नए साल में चीन की वैश्विक राह थमती नजर आ रही है, जबकि भारत को आगे बढ़ने का रास्ता मिला है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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