ब्रह्मपुत्र पर बांध (नवभारत टाइम्स)

बीते गुरुवार को चीन की संसद ने वहां की 14वीं पंचवर्षीय योजना के एक हिस्से के रूप में उस हाइड्रोपावर प्रॉजेक्ट को मंजूरी दे दी, जिसे लेकर भारत काफी पहले से चिंता जताता रहा है। इस परियोजना के तहत पूर्वी तिब्बत में अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास यारलुंग त्सांगपो नदी पर एक बहुत बड़ा बांध बनाया जाना है। यह नदी एक तीखी ढलान से उतरकर भारत में आती है। यहां कुछ अन्य नदियों से मिलकर ब्रह्मपुत्र बन जाती है और अरुणाचल प्रदेश तथा असम से गुजरते हुए पूरा बांग्लादेश पार करके समुद्र में जा मिलती है। इसी नदी के ऊपरी हिस्से में प्रस्तावित बिजली परियोजना को लेकर आशंकाएं कई स्तरों पर मौजूद हैं।


पहली बात तो यह कि भूकंप की दृष्टि से यह क्षेत्र काफी संवेदनशील माना जाता है। अतीत में कई भीषण भूकंप निचले क्षेत्रों में जन-धन की अपार क्षति का कारण बने हैं। ऊंचाई पर बना जलाशय आगे ऐसे किसी नुकसान का दायरा बहुत बढ़ा देगा। दूसरी बात यह कि भारत और बांग्लादेश, दोनों देशों की काफी बड़ी आबादी का समूचा जीवन ब्रह्मपुत्र के पानी पर टिका है। अगर चीन ने इस हाइड्रोपावर प्रॉजेक्ट से नहरें निकाल कर इसका कुछ पानी अपनी तरफ मोड़ लिया तो इसका खामियाजा दोनों देशों के इन नागरिकों को भुगतना पड़ेगा।


इसका तीसरा अहम पहलू जैव विविधता से जुड़ा है। इस क्षेत्र में जंतुओं और वनस्पतियों की कुछ ऐसी दुर्लभ किस्में मौजूद हैं जिनका बने रहना पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। चीन का यह कहना सही हो सकता है कि अपने सीमा क्षेत्र में कोई भी परियोजना खड़ी करने का उसे पूरा अधिकार है। लेकिन यहां सवाल उसके अधिकार का नहीं, परियोजना से होने वाले नुकसानों का है, जो दूसरे देशों के हिस्से आने वाले हैं। दुनिया में ऐसी परियोजनाएं कम ही दिखती हैं जिनके सारे फायदे एक देश के खाते में जा रहे हों और सारे नुकसान दूसरे देशों के हिस्से आ रहे हों।


सामान्य स्थिति में इन मुद्दों पर चीन सरकार से बातचीत करने की सलाह दी जा सकती थी, मगर पिछले साल भारत-चीन सीमा पर हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आए तनाव को देखते हुए यह उतना सहज नहीं रह गया है। बावजूद इसके, बातचीत का कोई विकल्प नहीं है। चीन कहता भी रहा है कि वह इस परियोजना से जुड़ी भारत और बांग्लादेश की चिंताओं का ध्यान रखते हुए ही आगे बढ़ेगा।



भारत और चीन के बीच ऐसा एक मैकेनिज्म पहले से बना हुआ है। दोनों देशों ने 2006 में सीमा के आर-पार जाने वाली नदियों से जुड़े मुद्दों को लेकर एक एक्सपर्ट लेवल मैकेनिज्म (ईएलएम) गठित किया था। इसमें बांग्लादेश को भी शामिल करके विवादित मुद्दों पर त्रिपक्षीय सहमति बनाने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सकती है। इस क्रम में अगर तीनों देश किसी जल-संधि तक पहुंचते हैं तो इससे आपसी रिश्तों में एक नया आयाम जुड़ेगा।

सौजन्य - नवभारत टाइम्स।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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