पिछले अक्टूबर में मुंबई में हुए असाधारण पावर कट को लेकर अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स में हुआ खुलासा पहली नजर में चौंकाने वाला भले न लगे, पर इसके निहितार्थ बहुत गंभीर हैं। एकबारगी यह चौंकाता नहीं तो इसलिए क्योंकि हैकरों द्वारा विभिन्न देशों की संवेदनशील वेबसाइटों में घुसपैठ करने, उन्हें हैक करने या जाम कर देने की कोशिशों से जुड़ी खबरें अक्सर आती रहती हैं। जो बात मौजूदा खुलासे को खास बनाती है, वह है इसकी पृष्ठभूमि। मध्य जून में भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं में हुई हिंसक भिड़ंत के बाद दोनों तरफ तनाव चरम पर था। न सिर्फ दोनों देशों के सैनिक बड़ी संख्या में आमने-सामने डटे हुए थे बल्कि एक-दूसरे की हर चाल पर चौकस निगाह भी रखे हुए थे। भारत का खास जोर इस बात पर था कि चीनी सेना मई से पहले की स्थिति में वापस जाए। इसी सबके बीच अक्टूबर में भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में ऐसा बिजली संकट आता है कि न केवल लोकल ट्रेनें बैठ जाती हैं बल्कि शेयर मार्केट की गतिविधियां भी कई घंटे ठप रहती हैं और तमाम इमर्जेंसी सेवाएं प्रभावित होती हैं। जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
मुंबई में बिजली गुल...क्या भारत को अंधेरे में डुबो सकता है चीन? ड्रैगन पर खुलासे से उठे गंभीर सवाल
अब यह रिपोर्ट बता रही है कि इसके पीछे चीन का हाथ था। चीनी हैकर ग्रुप रेड ईको ने इसे अंजाम दिया था। हालांकि भारत सरकार ने अभी आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि उसके द्वारा करवाई गई जांच भी इसी तरफ इशारा करती है। दरअसल हैकिंग ऐसी चीज है जिसमें अंतिम तौर पर कोई निष्कर्ष स्थापित होना और उसका सत्यापित होना खासा मुश्किल होता है। अगर चीनी हैकरों का हाथ साबित हो गया तो भी यह सिद्ध करने का काम रह जाता है कि वे चीनी सरकार के निर्देश पर उसके अंग के रूप में काम कर रहे थे। बहरहाल, उससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। अगर यह माना जाए कि रिपोर्ट की सारी बातें सही हैं तो यह आधुनिक युद्ध के बदलते स्वरूप का पहला ठोस उदाहरण है। अब तक हम एलएसी के विभिन्न हिस्सों में अपनी सेना के बरक्स चीनी सेना के प्लस-माइनस पर विचार करते थे। यह कभी किसी के ध्यान में ही नहीं आया कि दुश्मन देश सीमा से इतर हमारी वित्तीय राजधानी को तहस-नहस करने के लिए साइबर अटैक का सहारा ले सकता है। अगर इन रिपोर्टों की सचाई स्थापित नहीं होती है तब भी चीनी हैकरों का खतरा तो एक वास्तविकता है ही। ऐसे में रक्षा नीति के एक अहम हिस्से के रूप में सायबर सुरक्षा को शामिल करने और इस मोर्चे पर खुद को मजबूत करने के अजेंडे पर अमल का काम अब और नहीं टाला जा सकता। हमारे लिए यह और ज्यादा जरूरी इसलिए है क्योंकि आम तौर पर हम सुरक्षात्मक नजरिया अपना कर ही आगे बढ़ते हैं जबकि सायबर बुलीइंग या सायबर अटैक के मामले में जवाबी हमले का डर ही सबसे प्रभावी प्रतिरोध माना जाता है।
सौजन्य - नवभारत टाइम्स।
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