के एस तोमर
देश में कोविड-19 के दूसरे विस्फोट से उपजी परिस्थितियों, और 102 साल पहले स्पैनिश इंफ्लुएंजा के प्रकोप से उपजी परिस्थितियों में काफी समानताएं हैं। उसे बॉम्बे फीवर भी कहा गया था। वर्ष 1918 के स्पैनिश इंफ्लुएंजा से दुनिया भर में पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें से बीस फीसदी मौतें अकेले भारत में हुई थीं। कोरोना के संक्रमण के फैलने के साथ आशंका जताई जा रही थी कि हरिद्वार में चल रहे महाकुंभ से यह और फैल सकता है। ऐसे में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुंभ को प्रतीकात्मक रखने की अपील का संतों और अखाड़ों पर प्रभाव पड़ा है।
प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत तौर पर 13 अखाड़ों में से सर्वाधिक प्रभावशाली अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से बात कर कुंभ को सांकेतिक रखने का अपील की थी। स्वामी गिरि ने ट्वीट कर कहा भी कि हमारे लोग और उनकी सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है और हम सभी देवताओं का प्रतीकात्मक विसर्जन कर कुंभ को समाप्त कर रहे हैं। देश भर से हरिद्वार पहुंचे तीर्थ यात्री भी अपने घरों को लौट रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब ये तीर्थ यात्री अपने गांवों, कस्बों और शहरों में लौटेंगे, तो ये कोरोना वायरस को अपने साथ वहां तक ले जा सकते हैं और इससे संक्रमण फैल सकता है।
वास्तव में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रेस में ऐसी अनेक रिपोर्ट्स आई थीं कि लाखों तीर्थयात्रियों के कुंभ के लिए हरिद्वार आने से यह कोविड-19 का 'सुपर स्प्रेडर' बन सकता है। पुलिस और अन्य अर्ध सैनिक बलों को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तैनात किया गया था, लेकिन वे शाही स्नान के दौरान जुटी भीड़ को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए मजबूर नहीं कर सके। केंद्र और राज्य सरकारें भी तीर्थ यात्रियों को नियंत्रित नहीं कर पा रही थीं। हैरानी की बात है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने खुद ही 20 मार्च को अपील कर दुनिया भर से तीर्थयात्रियों को कुंभ में आने की अपील की थी। ऐसे में प्रधानमंत्री की कुंभ को सांकेतिक रखने की अपील ने बड़ा काम किया।
उम्मीद की जा सकती है कि देश के नागरिकों ने जिस तरह से एक सदी पहले महामारी से मुकाबला किया था, वैसा अब भी करेंगे। कोरोना वायरस के मामले जिस तरह से बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए सभी को इसका ध्यान रखना होगा। पूरे देश भर में आधी-अधूरी तैयारियों और नागरिकों के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार से अपने देश में स्थिति और बिगड़ी है और हमने अब ब्राजील को पीछे छोड़ दिया है। सरकार ने दूसरे देशों की वैक्सीन के बारे में फैसला लेने और वैक्सीन के मूल्य निर्धारित करने में विलंब किया है, जिससे निकट भविष्य में दबाव बढ़ सकता है। भारत ने वसुधैव कुटंबकम की भावना के तहत टीका मैत्री की पहल की थी और 80 से अधिक देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की थी। जरूरतमंद देशों को वैक्सीन की आपूर्ति करने के भारत के प्रयास ने चीन को बेचैन कर दिया था।
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने भारत को बदनाम करने के लिए भारतीय वैक्सीन के खिलाफ दुष्प्रचार तक किया, लेकिन वह उसके लिए उल्टा साबित हुआ, क्योंकि भारत की इस पहल की व्यापक रूप से सराहना ही हुई। भारत सरकार की वैक्सीन मैत्री की पहल ने वी-5 यानी टीका उत्पादक देशों के क्लब में देश की जगह सुनिश्चित कर दी। देश में महामारी की नई लहर के बाद दूसरे देशों को टीके की आपूर्ति रोकने का फैसला सही दिशा में उठाया गया कदम है। वास्तव में संक्रमण को रोकने के साथ ही देश के समक्ष अर्थव्यवस्था की गति को बनाए रखने की भी चुनौती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जीडीपी के 11.5 से 12.5 फीसदी की दर से आगे बढ़ने की उम्मीद जताई थी, लेकिन कोविड की नई लहर से इसे धक्का लग सकता है। देश को अभी संक्रमण के फैलाव को जल्द से जल्द नियंत्रित करने के साथ ही अर्थव्यवस्था को ढलान से रोकने की दोहरी चुनौती से जूझना है।
सौजन्य - अमर उजाला।
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