यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि देश में कोविड-19 संक्रमण से मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों के हिसाब से दो लाख पार कर गई है। किसी भी देश के लिये इतनी बड़ी जनशक्ति का अवसान वाकई पीड़ादायक है। हालांकि सरकारी आंकड़ों को लेकर सवाल उठाने वाले स्वतंत्र पर्यवेक्षक संख्या को इससे ज्यादा बताते हैं, लेकिन आंकड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है और हमारी विवशता को ही जाहिर करता है। यह हमारे नीति-नियंताओं पर सवाल खड़ा करता है। बताता है कि हम ऐसा स्वास्थ्य तंत्र विकसित नहीं कर पाये हैं जो अनमोल जिंदगियां बचाने का काम कर सके। निश्चय ही सदियों की गुलामी और साम्राज्यवादी ताकतों के अन्यायपूर्ण दोहन से मुक्त होकर हम अपनी आजादी की हीरक जयंती मनाने की दहलीज पर जा पहुंचे हैं, लेकिन देश में स्वास्थ्य विषयक आंकड़े विकासशील देशों की सूची में शर्मसार करने वाले हैं। जनमानस के रूप में भी हम समाज में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा नहीं कर पाये हैं। न ही जनता को इतना विवेकशील बना पाये हैं कि वे राजनेताओं के घोषणापत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राथमिक दर्जा दिला सकें। राजनीतिक दलों ने भी कभी स्वास्थ्य सेवाओं को इतना बजट ही नहीं दिया कि देश में मजबूत स्वास्थ्य तंंत्र विकसित हो सके। हमारा चिकित्सा तंत्र सामान्य दिनों में ही पर्याप्त चिकित्सा हर मरीज को देने में विफल रहा है। दवाओं-चिकित्सा सुविधाओं की किल्लत से लेकर डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की कमी से सरकारी अस्पताल जूझते रहे हैं। तो ऐसे में ये उम्मीद करना बेमानी ही था कि एक अज्ञात संक्रामक रोग के खिलाफ हम मजबूती से लड़ सकें। अस्पतालों के बाहर बेड और ऑक्सीजन पाने के लिये तड़पते मरीज और बदहवास तीमारदार इस बेबसी को ही दर्शाते हैं। निस्संदेह, कोरोना से मरने वालों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो पहले से ही कई घातक रोगों से जूझ रहे थे। लेकिन ऑक्सीजन की कमी से लोगों का मरना हमारी शर्मनाक विफलता को दर्शाता है।
इस हताशा व निराशा के बीच उम्मीद की किरण यह है कि हमने देश में स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन तैयार कर ली और कोविशील्ड का उत्पादन देश में कर रहे हैं। इस महामारी में यदि हमें विदेशी वैक्सीन पर निर्भर रहना पड़ता तो सवा अरब के देश के क्या हालात होते, अंदाजा लगाया जा सकता है। अब रूस की स्पूतनिक समेत कई अन्य वैक्सीनों के रास्ते भी खुले हैं। हम अब तक दुनिया में सबसे तेज गति से पंद्रह करोड़ वैक्सीन लगा चुके हैं। ऐसे वक्त में जब इस महामारी का कोई इलाज नहीं है, वैक्सीन ही हमारा उद्धार कर सकती है। दो चरणों का सफल टीकाकरण हुआ, जिसमें पहले स्वास्थ्य कर्मियों और साठ साल से अधिक के लोगों को और दूसरे चरण में 45 साल से अधिक के लोगों का टीकाकरण किया गया। अब एक मई से देश में 18 वर्ष से अधिक के लोगों को टीका लगाने का काम शुरू हो जायेगा। इसके पंजीकरण का काम बुधवार से शुरू हो गया। इस चरण में अब राज्य सरकारें, निजी अस्पताल और टीकाकरण केंद्र वैक्सीन निर्माता कंपनियों से सीधे वैक्सीन खरीद सकेंगे। यहां तक कि कंपनियां अपने स्टॉक का पचास फीसदी केंद्र को व पचास फीसदी बाकी राज्यों व निजी अस्पतालों को दे सकेंगी। कोविशील्ड खुले बाजार में कुछ माह के बाद उपलब्ध हो सकेगी। सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बॉयोटेक ने केंद्र, राज्यों व निजी अस्पतालों के लिये वैक्सीन की अलग-अलग कीमतें निर्धारित की हैं, जिसको लेकर कहा जा रहा है कि एक देश में अलग-अलग दरें क्यों निर्धारित की जा रही हैं, जबकि वैक्सीन देश के लोगों को ही मिलनी है। सीरम ने कहा है कि मौजूदा ऑर्डर पूरा होने के बाद कंपनी केंद्र को भी राज्यों की दर पर ही वैक्सीन देगी। वहीं भारत बॉयोटेक पहली कीमत पर केंद्र को वैक्सीन उपलब्ध करायेगी। हालांकि, यह राज्यों का अधिकार है कि वे नागरिकों को किस कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध कराते हैं। कुछ राज्यों ने मुफ्त वैक्सीन देने की बात कही है। केंद्र ने वैक्सीन निर्माता कंपनियों को साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराने की घोषणा की है।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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