दूसरी लहर से निपटने की चुनौती: अब लॉकडाउन कोई समाधान नहीं (अमर उजाला)

डॉ. चंद्रकांत लहरिया 

कोविड से मुकाबले में टीके बेहद कारगर साबित होने वाले हैं। अगले तीन महीने में व्यापक टीकाकरण होता है, तो तीसरी लहर को रोका जा सकता है। पर टीकाकरण का पूरा लाभ तभी होगा, जब इससे हिचकने वाले व खतरे की श्रेणी में आने वाले लोग टीका लगवाने आगे आएं।



भारत कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की चपेट में है। बहुत जल्दी हमारे यहां दैनिक संक्रमितों की संख्या पिछले साल के दैनिक संक्रमण के चरम को पार कर जाएगी। दूसरे देशों में भी महामारी की दूसरी या तीसरी-चौथी लहर में पहली लहर की तुलना में दैनिक संक्रमण ज्यादा दिखा है। अपने यहां संक्रमण के मामले अब टियर 2 और 3 शहरों तथा ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहे हैं। सिर्फ यही नहीं कि संक्रमण वृद्धि की दर पहली लहर से अधिक है, बल्कि वायरस के नए वेरिएंट्स भी चिंता का कारण बन रहे हैं। हालांकि दूसरी लहर के दौरान कुछ सकारात्मक चीजें भी हैं।



जैसे, महामारी तथा वायरस के फैलाव के बारे में अब लोगों में बेहतर समझ है। मृत्यु दर भी पहले की तुलना में कम है, हालांकि संक्रमण के नए मामले बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं, ऐसे में, मरने वालों का दैनिक आंकड़ा पिछले साल की तुलना में अधिक हो सकता है। अस्पतालों में पहले की तुलना में महामारी से निपटने की बेहतर तैयारी है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इन दिनों टीकाकरण रफ्तार पकड़ रहा है। सार्स कोव-2 और कोविड-19 महामारी का स्वरूप चौंकाने वाला है। इसलिए देश के सभी राज्यों को संक्रमण की बढ़ती रफ्तार का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना होगा। इसमें पिछले साल सीखे गए सबक सबसे कारगर साबित होंगे।


सबसे बड़ा सबक यह है कि अब लॉकडाउन कोई समाधान नहीं है। लॉकडाउन लागू करने का उद्देश्य हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को महामारी का मुकाबला करने के लिए तैयार करना और लोगों को इसके अनुरूप बदलने के लिए समय देना था। कोविड के कारण लोगों का व्यवहार बदला है और वे लगातार हाथ धोने, मास्क लगाने और व्यक्तिगत दूरी बरतने आदि पर जोर देने लगे हैं। यह बदलाव हममें स्वतः ही आना चाहिए। अगर लोग इन बदलावों को अमल में नहीं लाते, तो उन्हें और समय देने का भी कोई लाभ नहीं होगा। वैसे में हमें वैकल्पिक तरीका अपनाना होगा। यह भी तथ्य है कि लॉकडाउन का आम तौर पर अर्थव्यवस्था पर तथा खासकर गरीबों और हाशिये के लोगों पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ा है। यहां तक कि सप्ताहांत में लगाए जाने वाले कर्फ्यू और प्रतिबंध भी नुकसानदेह साबित होंगे।


इसे ऐसे समझें कि सप्ताहांत के लॉकडाउन का मतलब होगा कि उस दिन लोग काम के लिए बाहर नहीं निकलेंगे। ऐसे में, उसके अगले दिन, जब प्रतिबंध नहीं रहेगा, तब सड़कों और बाजारों में स्वाभाविक ही भीड़ बढ़ जाएगी। इसके बावजूद अधिक संक्रमण वाले इलाकों में, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रभावित होने की आशंका है, प्रतिबंध लगाना एक विकल्प तो है ही। महामारी की दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए सरकार और समाज, दोनों को अपनी जिम्मेदारियां निभानी होंगी। जैसे कि सरकार को खासकर ग्रामीण इलाकों में कोविड की जांच बढ़ानी होगी, कांटेक्ट ट्रेसिंग की शिथिल पड़ चुकी प्रक्रिया को फिर से सक्रिय करना होगा, जरूरतमंदों के लिए क्वारंटीन सुविधाएं तथा आइसोलेशन बेड्स हैं या नहीं, यह देखना होगा। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि खासकर ग्रामीण इलाकों में निजी अस्पतालों में आइसोलेशन बेड्स की व्यवस्था कारगर नहीं होने वाली, क्योंकि वहां आम तौर पर मुफ्त आइसोलेशन बेड्स की ही अपेक्षा रहती है। और कुछ महीनों तक सामाजिक और धार्मिक जमावड़े पर भी प्रभावी तरीके से प्रतिबंध लगाना होगा। दूरस्थ क्षेत्रों और उन जिलों में ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है, जहां पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं।


कोविड की पिछली लहर के विपरीत इस दूसरी लहर में परिवार के अनेक सदस्यों के एक साथ संक्रमित होने की रिपोर्टें आ रही हैं। इसका सामाजिक असर पड़ सकता है, लिहाजा इससे निपटने के लिए प्रभावितों के वेतन या उनकी मजदूरी के नुकसान की भरपाई करने जैसे विशेष कदम भी उठाए जाने चाहिए। हमने यह देखा है कि जन भागीदारी के बगैर कानूनी उपाय बहुत प्रभावी और स्थायी नहीं होते। यह स्पष्ट है कि महामारी से मुकाबला लंबा चलेगा, इसमें कम से कम छह से नौ महीने लगेंगे। इसलिए सरकारों द्वारा शहरी इलाकों में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन तथा ग्रामीण इलाकों में पंचायत सदस्यों के साथ बेहतर तालमेल बनाने की जरूरत है। सिविल सोसाइटी संगठनों की भी इसमें सक्रियता जरूरी है, जिसमें पार्षदों तथा विधायकों जैसे स्थानीय प्रतिनिधियों की मौजूदगी भी होनी चाहिए। इसके जरिये स्थानीय स्तर लोगों में महामारी के बारे में जागरूकता फैलाने तथा लोगों को इसके अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।


इस पहल से कोविड के टीके के प्रति लोगों में जो एक हिचक है, उसे भी दूर किया जा सकेगा। देश में टीकाकरण चल रहा है, और कोविड से मुकाबले में टीके बेहद कारगर साबित होने वाले हैं। हालांकि टीके का दूसरा डोज लेने के दो सप्ताह बाद प्रतिरोधक क्षमता बनती है। यानी यह प्रतिरोधक क्षमता टीके के पहले डोज के छह से दस सप्ताह बाद बनती है। इसलिए महामारी की इस लहर में टीके का लाभ न्यूनतम ही है। लेकिन अगले तीन महीने में अगर व्यापक टीकाकरण होता है, तो इससे महामारी की संभावित  तीसरी लहर को रोका जा सकता है या फिर उसके असर को कम किया जा सकता है। संभव है कि टीका लगाने वाले ज्यादातर लोग वही हों, जिन्होंने कोविड के दौरान अपना रहन-सहन बदला है और जो ज्यादा जागरूक हैं। ऐसे में, टीकाकरण बढ़ाने और अलग-अलग आयु वर्ग के लिए इसे खोलने का भी बहुत लाभ नहीं होगा। टीकाकरण का लाभ तभी होगा, जब इससे हिचकने वाले तथा खतरे की श्रेणी में आने वाले लोग टीका लगवाने के लिए स्वत: आगे आएं।


कोविड की दूसरी लहर के बीच अनेक राज्य सभी बालिगों के टीकाकरण की मांग कर रहे हैं। लेकिन यह सही रणनीति नहीं होगी, क्योंकि ऐसे में, हमारे सीमित स्वास्थ्य संसाधन पूरी तरह टीकाकरण पर ही केंद्रित हो जाएंगे, जबकि दूसरी लहर का मुकाबला करने के साथ-साथ गैर कोविड आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं बरकरार रखना भी जरूरी है। अगर टीकाकरण अभियान अपने लक्ष्य पर खरा उतरा, तो महामारी की अगली लहर को रोकने में हम कामयाब हो सकते हैं। भारत ने अतीत में कई चुनौतियों का सामना किया है और साथ मिलकर इस चुनौती से भी हम बाहर निकल आएंगे।


-लेखक जननीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ हैं।


सौजन्य - अमर उजाला।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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